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तो क्या पाकिस्तान में वंशवाद की राजनीति को खत्म करने के लिए हुई है नवाज की गिरफ्तारी!

पाकिस्तान की सियासत में लंबे समय तक भुट्टो और शरीफ परिवार का वर्चस्व रहा, लेकिन अब इनके लिए गर्दिश का समय है।

Updated on: 14 Jul 2018, 11:47 PM

नई दिल्ली:

पाकिस्तान की सियासत में लंबे समय तक भुट्टो और शरीफ परिवार का वर्चस्व रहा, लेकिन अब इनके लिए गर्दिश का समय है।

बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी मुख्य मुकाबले से बाहर हो गई थी। उनके उत्तराधिकारी पुत्र विलावल भुट्टो को गंभीरता से नहीं लिया गया। बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी को जितना मिला, वही उनकी हैसियत से बहुत ज्यादा था। 

यह कुनबा सियासत ही थी, जिसने उन्हें मुल्क के सबसे ऊंचे ओहदे पर पहुंचाया था, लेकिन वह भी कोई जनाधार नहीं बना सके। बचा शरीफ परिवार, लेकिन वह भी सेना और कोर्ट के सितम शिकार हुआ। केवल नवाज शरीफ को सजा मिलती तो गनीमत थी, उनकी पुत्री मरियम उत्तराधिकार संभालने को मोर्चे पर आ गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भी नहीं बख्शा। 

नवाज के दोनों पुत्रों को भगोड़ा घोषित किया गया है। भाई अभी तक पंजाब की राजनीति तक सीमित रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह सब सेना और कोर्ट सुनियोजित रणनीति के तहत हो रहा है। पाकिस्तान में वंशवाद की राजनीति को हाशिये पर पहुंचाया जा रहा है।

इनकी जगह क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान को कमान सौंपने की तैयारी चल रही है। वहां के चुनावी प्रजातंत्र की हकीकत जगजाहिर है। सेना की मर्जी इसमें भी निर्णायक हो होती है।

इस्लामाबाद जवाबदेही कोर्ट ने नवाज शरीफ को दस वर्ष और मरियम को सात साल जेल की सजा सुनाई है। इसके अलावा पनामा पेपर्स घोटाले के एक मामले में राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो से सहयोग न करने के लिए एक वर्ष जेल की सजा दी गई है।

नवाज शरीफ तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी त्रासदी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। तीनों बार वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग ऐन के सामने भी संकट आ गया है। पाकिस्तान की सेना और न्यायपालिका ने शरीफ परिवार को सत्ता और राजनीति से बेदखल करने का निर्णय लिया था। पनामा लिक्स ने उन्हें आसान मौका दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने एक वर्ष पहले नवाज को प्रधानमंत्री पद से हटाने का फैसला सुनाया था। इसके लिए सैनिक तानाशाह रहे जियाउल हक के समय किये गए संविधान संशोधन को आधार बनाया गया था। आम चुनाव से कुछ दिन पहले इस निर्णय के राजनीतिक मतलब साफ है।

विकल्प के तौर पर मरियम के शौहर मोहम्मद सफदर भी सियासत में सक्रिय थे। लेकिन उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। वह रावलपिंडी में एक रैली में शामिल होने आए थे। यही उन्हें गिरफ्तार किया गया। पनामा पेपर घोटाला में उन्हें भी सजा सुनाई गई है।

मरियम ने कहा कि उनके पिता नवाज शरीफ दस दिनों के भीतर पाकिस्तान लौटेंगे और सजा के खिलाफ अपील करेंगे। 

लेकिन इस समय सेना और कोर्ट का जो रुख है, उसे देखकर नवाज को खास राहत की उम्मीद नहीं है। उनको चुनाव लड़ने से रोकने का इंतजाम हो चुका है। नवाज शरीफ पर सुप्रीम कोर्ट के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद मरियम के हाथ में ही पाकिस्तान मुस्लिम लीग नून की कमान आ गई थीं। 

पाकिस्तान में पच्चीस जुलाई को होने आम चुनाव है। मरियम लाहौर से उम्मीदवार थीं। लेकिन जवाबदेही कोर्ट के फैसले के बाद अब वह चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। वह पांच वर्ष पहले सक्रिय राजनीति में उतरी थीं। अपने पिता के पिछले चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी।

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उन्हें प्रधानमंत्री युवा कार्यक्रम की चेयरपर्सन बनाया गया था। लेकिन विपक्ष की आपत्ति के चलते उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।

भारत के लिए पाकिस्तान की यह अस्थिरता ठीक नहीं है। वहां जब अस्थिरता का माहौल बनता है, तब सेना भारत विरोधी गतिविधियां तेज करती है। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार रिपोर्ट भी ऐसी ही गतिविधि का हिस्सा थी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार प्रकोष्ठ के प्रमुख हुसैन ने यह रिपोर्ट पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों के इशारे पर बनाई थी। 

रिपोर्ट में भारत शासित क्षेत्र एवं पाकिस्तान शासित क्षेत्र दोनों जगह मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात कही गई थी।

इसकी अंतर्राष्ट्रीय जांच कराने की भी मांग की गई। राद अद हुसैन के पाकिस्तान से जुड़े तार उजागर हो गए हैं। झूठी जानकारियों पर विश्वास करके ये रिपोर्ट तैयार की गई थी। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच का दुरुपयोग माना गया।

बच्चों और सशस्त्र संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र संघ प्रमुख ऐंटिनियो गुटेरेस की रिपोर्ट के पीछे पाकिस्तान की साजिश बेनकाब हो चुकी है।

पाकिस्तान में सेना की सत्ता पर पकड़ कोई नई बात नहीं है। लेकिन नवाज शरीफ के हटने के बाद उसकी भारत के विरोध में चलने वाली गतिविधियां बढ़ रही हैं। जहां तक उनके प्रजातंत्र की बात है, तो उसे भी इसी तरह सेना के इशारे पर ही चलना है।

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(आलेख में लेखक के निजी विचार हैं)