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पाकिस्तान को भिखारी बनाने के पीछे इमरान का सबसे बड़ा हाथ, 13 माह के कार्यकाल में इतना लिया कर्ज

अस्तित्व में आने के बाद से बीते 71 साल में जितना कर्ज पाकिस्तान (Pakistan) पर चढ़ा है, उसमें इतना हिस्सा अकेले इमरान सरकार (Imran Khan) के 13 महीने के कार्यकाल में लिए गए कर्ज का है.

Updated on: 22 Nov 2019, 07:40 PM

नई दिल्‍ली:

अस्तित्व में आने के बाद से बीते 71 साल में जितना कर्ज पाकिस्तान (Pakistan) पर चढ़ा है, उसमें 35 फीसदी हिस्सा अकेले इमरान सरकार (Imran Khan) के 13 महीने के कार्यकाल में लिए गए कर्ज का है. पाकिस्तानी मीडिया में प्रक्राशित रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज लेने के मामले में इमरान सरकार ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग-नवाज को बहुत पीछे छोड़ दिया है.

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पाकिस्तान स्टेट बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 30 जून 2018 को पाकिस्तान का कुल ऋण व उत्तरदायित्व 29879 अरब रुपये (पाकिस्तानी) था जो 30 सितंबर 2019 को बढ़कर 41489 अरब रुपये (पाकिस्तानी) हो गया. यह वृद्धि 15 महीनों में हुई जिनमें से 13 महीने इमराननीत पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी के कार्यकाल के हैं। कर्ज में यह वृद्धि कुल 38.8 फीसदी की है.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग-नवाज की 2008 से 2018 के दौरान की अलग-अलग हुकूमतों में 23 हजार अरब रुपये कर्ज की वृद्धि को इमरान खान ने विपक्ष के नेता के रूप में जोरशोर से उठाया था. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान और इसके लोगों का वास्तविक नुकसान इसी कर्ज की वजह से हुआ है.

प्रधानमंत्री बनने के बाद खान ने एक कर्ज आयोग का गठन कर यह पता लगाने को कहा कि 'इस कर्ज (23000 अरब रुपये) का पैसा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग-नवाज के किन-किन नेताओं की जेब में गया है.' लेकिन, अब आम लोगों ही नहीं बल्कि सरकार में शामिल कई लोग भी इससे निराश हैं कि इमरान सरकार महज 13 महीने में ही कर्ज में 10 हजार अरब का इजाफा कर चुकी है.

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यह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग-नवाज द्वारा दस साल में लिए गए कर्ज का कुल 40 फीसदी है. हालांकि, यह भी अपनी जगह सही है कि 2007 में पाकिस्तान पर जो कर्ज 6691 अरब रुपये का था, वह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग-नवाज के दस साल के शासनकाल में ही बढ़कर करीब 30 हजार अरब रुपये हो गया था.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस बारे में सरकार के एक प्रतिनिधि ने कहा कि इमरान सरकार को पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए काफी कर्ज लेना पड़ा है. सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था. अगर वह ऐसा नहीं करती तो पाकिस्तान दिवालिया हो गया होता.