कुलभूषण जाधव से पहले पाकिस्तान के कैदी रहे सरबजीत, कश्मीर सिंह, रवींद्र कौशिक की कहानी
कई ऐसे भारतीय भी हैं, जो कुलभूषण जाधव की तरह भाग्यशाली नहीं रहे. इनमें से कई ने पाकिस्तान की जेलों में नारकीय दिन काटते हुए अपनी जान गंवाई. कुछ यंत्रणा झेलने के बाद वापस लौटे.
highlights
- कुलभूषण जाधव से पहले जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में बंद रहे कई भारतीय.
- सबसे चर्चित रवींद्र कौशिक पर तो फिल्म ही बनी थी 'एक था टाइगर'.
- नारकीय जीवन बिता कुछ को मौत ने दी राहत, तो कुछ वापस लौटे.
नई दिल्ली.:
अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) में भारत ने कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा फिलहाल रुकवाने में सफलता हासिल कर ली है. हालांकि उनकी वतन वापसी या रिहाई में अभी अड़चनों भरा काफी लंबा सफर बाकी है. एक तरह से देखें तो कुलभूषण जाधव काफी सौभाग्यशाली हैं कि बदलते दौर में भारत की बढ़ती वैश्विक धमक ने उनकी जिंदगी लंबी कर दी. हालांकि कई ऐसे भारतीय भी हैं, जो कुलभूषण जाधव की तरह भाग्यशाली नहीं रहे. इनमें से कई ने पाकिस्तान की जेलों में नारकीय दिन काटते हुए अपनी जान गंवाई. कुछ यंत्रणा झेलने के बाद वापस लौटे. एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही नामों पर,
सरबजीत सिंहः सिर्फ लाश ही आई वापस
नशे की हालत में गलती से सीमा पार गए सरबजीत सिंह को पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ने अगस्त 1990 में पकड़ा. पाकिस्तान का आरोप था कि वह पाक विरोधी गतिविधियों में शामिल थे. हालांकि भारत यही कहता रहा कि वह गलती से सीमा पार चले गए थे.पाक सरकार ने सरबजीत पर आतंकी गतिविधियों खासकर बम धमाकों का मुकदमा चलाया और फांसी की सजा दी. भारत में सरबजीत की बहन दलबीर कौर और कुछ एनजीओ ने रिहाई के लिए नाकाम मुहिम तक चलाई. लाहौर की कोट लखपत जेल में 2 मई 2013 को सरबजीत पर कैदियों ने हमला कर दिया. 23 साल तक पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में बंद रहे सरबजीत की बाद में अस्पताल में मौत हो गई. इसके बाद सरबजीत की लाश ही वतन आई. सरबजीत पर बाद में एक फिल्म भी बनी.
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कश्मीर सिंहः 35 साल तक हर रोज 'फांसी'
दो जून की रोटी कमाने के लिए कश्मीर सिंह 1971 में पाकिस्तान गए थे. वह पंजाब के होशियारपुर जिले के नांगलचोरां गांव के रहने वाले थे. वहां 32 साल की उम्र में 1973 में रावलपिंडी से कश्मीर सिंह को जासूसी के आरोप में दबोच जेल में ठूंस दिया गया. अदालत ने कश्मीर सिंह को मौत की सजा सुनाई. 28 मार्च 1978 को फांसी होनी थी, लेकिन वह किसी न किसी कारण टलती रही. इस तरह 35 साल तक कश्मीर सिंह जिंदगी और मौत की ऊहापोह में झूलते रहे. 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उनकी सजा माफ कर दी. इसके बाद कश्मीर सिंह 4 मार्च 2008 को वाघा सीमा से होते हुए भारत अपने घर आ गए..
रवींद्र कौशिकः चर्चित जासूस
राजस्थान में जन्मे रवींद्र कौशिक 25 साल तक पाकिस्तान में रहे और उनकी मौत भी जेल में हुई. पाकिस्तान में भारतीय जासूसी के सबसे चर्चित किस्सों में रवींद्र कौशिक का भी किस्सा है. कहते हैं कि सलमान खान की 'एक था टाइगर' फिल्म उनके ही जीवन से प्रेरित थी. बताते हैं कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना में मेजर तक का पद हासिल किया. पाक का कहना है कि उर्दू भाषा और इस्लाम धर्म के बारे में विशेष शिक्षा के बाद कौशिक को नबी अहमद शाकिर नाम से पाकिस्तान भेजा गया और वे कराची यूनिवर्सिटी में दाखिला भी पा गए. रवींद्र कौशिक को पाकिस्तान की कई जेलों में 16 साल तक रखा गया और 2001 में उनकी मौत हो हुई.
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रामराजः 6 साल बंद रहे पाक जेल में
जासूसी के आरोप में रामराज को 6 साल तक वहां की जेल में रखा गया. 2004 में लाहौर में पकड़े गए रामराज को पाकिस्तान पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया था. जासूसी के आरोप में रामराज को छह साल की सजा हुई. अपनी सजा पूरी कर वापस स्वदेश पहुंचे.
गुरबख्श रामः वापस आते धरे गए
कई साल पाकिस्तान में बिताने के बाद 1990 में गुरबख्श राम को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह वापस भारत जा रहे थे. गुरबख्श राम को पाकिस्तान में शौकत अली के नाम से जाना जाता था. वह 18 साल तक पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में रहे. 2006 में 19 अन्य भारतीय कैदियों के साथ कोट लखपत जेल से उन्हें रिहाई मिली. वतन वापसी पर उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके परिवार को कोई सुविधाएं नहीं मिली.
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सुरजीत सिंहः फांसी से आजीवन कारावास तक
2012 में 69 वर्षीय सुरजीत सिंह लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा होकर भारत लौट आए थे. 30 साल बाद भारतीय सीमा में प्रवेश करते ही सुरजीत को सेना के अधिकारी और पुलिस वाले अपने साथ ले गए. उनका कहना था कि सरबजीत से उनकी नियमित मुलाकात होती थी और वे हर तरह की बात करते थे. भारत के लिए जासूसी करने के आरोपी सुरजीत की मौत की सजा राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान ने आजीवन कारावास में बदल दी थी.
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