चीन ने नहीं बदली नीति तो 2050 तक आबादी भारत की 65 फीसदी होगी: विशेषज्ञ
चीन की विवादास्पद परिवार नियोजन नीति का अंत करने का आह्वान करते हूए एक चीनी विशेषज्ञ ने दावा करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा लागू की गई एक बाल नीति के कारण दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की जनसंख्या 2050 तक भारत का केवल 65 प्रतिशत रह जाएगी।
नई दिल्ली:
चीन के एक विशेषज्ञ ने चीन की विवादित 'परिवार नियोजन नीति' का अंत करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि सरकार द्वारा लागू की गई एक बच्चे की नीति के कारण दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की जनसंख्या 2050 तक भारत का केवल 65 प्रतिशत रह जाएगी।
हालांकि चीन ने 2016 में अपनी दशकों पुरानी वन चाइल्ड पॉलिसी को खत्म किया था और पति-पत्नी को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी। इस नीति के कारण युवाओं की संख्या घट रही थी और बुजुर्गों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी।
चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अगस्त 2017 में कहा था, 2016 के अंत में चीन में 60 या उससे अधिक उम्र के 230.8 मिलियन से अधिक लोग थे, जो कि देश की कुल आबादी का 16.7% है।
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, एक देश या क्षेत्र को 'वृद्ध समाज' माना जाता है जब 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में कुल आबादी का कम से कम 10 प्रतिशत शामिल होता है।
अमेरिकी शोधकर्ता यी फक्सियन ने राज्य संचालित ग्लोबल टाइम्स को बताया कि 'चीन ने कम प्रजनन दर में प्रवेश किया है और देश में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या आर्थिक विकास में बाधा डालेगी। चीन को अपनी सामाजिक संरचना में जबरदस्त सुधार करना चाहिए और इसमें पहला कदम नीति को खत्म करना है।'
उन्होंने बताया कि यदि चीन की उर्वरता दर 2050 और 2100 तक 2.1 बनी रहती है तो इसकी जनसंख्या भारत की जनसंख्या का क्रमशः 65% और 32% होगी।
चीन ने 1979 में अपनी वन चाइल्ड परिवार नियोजन नीति लागू की और जनवरी 2016 में इसे दो-बाल नीति के साथ बदल दिया।
चीनी अधिकारियों का अनुमान है कि 1979 में शुरू हुई वन चाइल्ड पॉलिसी ने 4 करोड़ जन्मों को रोका है।
यी ने तर्क दिया कि परिवार नियोजन नीति ने 2005 की बजाय 2018 तक 4 करोड़ जन्मों को कम करने में मदद की है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) का हवाला देते हुए यी ने कहा, 'अगर देश ने अपनी परिवार नियोजन नीति नहीं बदली, तो चीन की प्रजनन दर और आर्थिक विकास दोनों में गिरावट आ जाएगी।'
सूचकांक तीन मानदंडों का उपयोग करता है: जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और क्रय शक्ति समानता।
उन्होंने कहा कि भारत ने ऐसी नीति कभी लागू नहीं की है, लेकिन फिर भी इसकी प्रजनन दर 1970 में 5.6 से घटकर 2017 में 2.18 हो गई। 'चीन का एचडीआई भारत से कहीं अधिक है। अगर चीन ने नीति में बदलाव नहीं किए तो तो प्रजनन दर में गिरावट भारत की तुलना में भी तेज होगी।'
रिपोर्ट्स का कहना है कि चीन परिवार नियोजन नीति को पूरी तरह से खत्म करने की योजना बना रहा है।
बीजिंग स्थित चीन जनसंख्या और विकास अनुसंधान केंद्र के पूर्व प्रमुख मा ली ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि '1970 के दशक में, तेजी से जनसंख्या वृद्धि के कारण, चीन ने परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किया था। नीति के बिना, चीन की उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देना और देश को कम आमदनी के जाल से बाहर निकालना मुश्किल होता।'
मा ने कहा, 'यह नीति आर्थिक विकास को फिर से बढ़ाने में महत्वपूर्ण है।'
उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के प्रचार के साथ अब चीनी नागरिक अपने बच्चों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं करते हैं। प्रजनन दर में गिरावट अनिवार्य है लेकिन सरकार को परिवार नियोजन नीति में बदलाव करने की जरूरत है। साथ ही कहा कि परिवार का बोझ कम करने के लिए स्कूल फीस को कम करने जैसी नीतियां लागू करनी चाहिए।
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