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म्यांमार ने मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों को खारिज किया

म्यांमार सेना पर अगस्त 2017 में सैन्य अभियान के दौरान रोहिंग्याओं के गांवों को जलाने, हत्या करने और उनकी महिलाओं, लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप हैं।

Updated on: 14 Mar 2018, 11:33 PM

यांगून:

संयुक्त राष्ट्र द्वारा म्यांमार के रखाइन प्रांत में 'नस्लीय संहार और सफाए' की रपट देने के बाद म्यामांर ने मानवाधिकार उल्लंघन के इन आरोपों को खारिज कर दिया।

सरकार के मुखपत्र 'ग्लोबल न्यू लाइट ऑफ म्यांमार' ने अपने संपादकीय में लिखा, 'म्यांमार विदेश प्रायोजित और आर्थिक सहायता प्राप्त आतंकवाद का सामना करने के बावजूद रखाइन प्रांत में स्थिरता लाने और उसे विकास के मार्ग पर लाने का प्रयास कर रहा है।'

समाचार पत्र ने कहा कि 'यह अगस्त 2017 में अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) के आतंकवादियों का हमला था, जिसके बाद रखाइन में सैन्य अभियान चलाया गया जिससे लोगों, विशेषकर रोहिंग्या मुस्लिमों को पलायन कर बांग्लादेश जाना पड़ा।'

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समाचार पत्र के अनुसार म्यांमार अधिकारियों द्वारा रखाइन प्रांत में लोगों से इंटरव्यू करने पर पता चला कि 'कई लोगों ने रोजगार की कमी, भोजन और एआरएसए की धमकियों के कारण पलायन किया।'

एफे न्यूज के अनुसार सोमवार को म्यांमार में मानवाधिकार मामलों को देखने वाले संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि यांघी ली ने जेनेवा में कहा कि रोहिंग्याओं के खिलाफ हुए अपराधों के लिए सेना के साथ-साथ म्यांमार की आंग सान सू की की सरकार जिम्मेदार है।

म्यांमार सेना पर अगस्त 2017 में सैन्य अभियान के दौरान रोहिंग्याओं के गांवों को जलाने, हत्या करने और उनकी महिलाओं, लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप हैं।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के स्थाई प्रतिनिधि यू ह्टिन लिन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को नकार दिया है और क्षेत्र में पुनर्वास और लोकतंत्र स्थापित करने में मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है।

दैनिक समाचार पत्र ने लिन के हवाले से कहा कि रखाइन प्रांत में जो हुआ है, इतिहास उसका निर्णय करेगा।

लिन ने कहा कि म्यांमार का नेतृत्व और सरकार अपराध को सहन नहीं करेंगे। सबूत मिलने पर म्यांमार कार्रवाई करने को तैयार है।

नवंबर 2017 में म्यांमार और बांग्लादेश ने एक समझौता किया था जिसके तहत रखाइन से बांग्लादेश पलायन करने वालों को म्यांमार वापस लेगा।

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