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भारतीय अदालतों ने 2017 में 109 लोगों को मृत्युदंड सुनाया : एमनेस्टी

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि भारत की अदालतों ने पिछले वर्ष 109 लोगों को मौत की सजा सुनाई, मगर एक भी व्यक्ति को फांसी नहीं दी गई।

Updated on: 13 Apr 2018, 11:43 PM

संयुक्त राष्ट्र:

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि भारत की अदालतों ने पिछले वर्ष 109 लोगों को मौत की सजा सुनाई, मगर एक भी व्यक्ति को फांसी नहीं दी गई। 

मानवाधिकार संस्था ने गुरुवार को जारी अपनी एक रपट 'मृत्युदंड व सजा की तामील-2017' में कहा है कि 2016 में 136 लोगों को प्राणदंड की सजा सुनाई गई थी, जिसके मुकाबले 2017 में मौत की सजा पाने वालों की तादाद 27 कम है। 

लंदन मुख्यालय वाली इस संस्था ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑन डेथ पेनल्टी के हवाले से बताया कि पिछले साल 51 हत्यारोपियों को मौत की सजा सुनाई गई है। यह संख्या 2016 के मुकाबले 87 कम है। 

यौन अपराध से संबंधित हत्या के आरोपों में 43 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है, जबकि दो लोगों को नशीली दवाओं से संबंधित मामलों में मृत्यदंड का आदेश दिया गया है। 

रपट में कहा गया है कि संस्था प्राणदंड के मामलों पर रोजाना नजर रखती है और इस संबंध में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के आंकड़े, उसके आंकड़े कम है। 

भारत में मौत की सजा का सामना कर रहे लोगों की कुल तादाद 371 है। 

पिछली बार 2015 में भारत में याकूब मेमन को 1993 के मुंबई आतंकी हमले के लिए फांसी की सजा दी गई थी। वर्ष 1993 में मुंबई में बम विस्फोटों में 257 लोग मारे गए थे। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल में कानून व नीति मामलों के वरिष्ठ निदेशक तवांडा मुतासाह ने संवाददाताओं को बताया कि 2018 के दौरान दुनिया में सबसे ज्यादा मौत की सजा चीन में दी गई, जिसकी तादाद हजारों में है। 

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उन्होंने बताया कि चीन में प्राणदंड पाने वालों की सही आंकड़ों का पता नहीं चल पाया, क्योंकि वहां इसे गुप्त रखा जाता है। 

इस मामले में दूसरा स्थान ईरान का है, जहां 507 लोगों को मौत की सजा दी गई। तीसरे स्थान पर सऊदी अरब है, जहां 146 लोगों को मौत की सजा दी गई। इराक में 125 से अधिक लोगों को मौत की सजा मिली। वहीं पाकिस्तान में मृत्यदंड की सजा पाने वालों की संख्या 60 है। 

अमेरिका में 23 लोगों को मौत की सजा दी गई। वहीं यूरोप में सिर्फ बेलारूस में दो लोगों को 2017 में प्राणदंड दिया गया। 

मुतसाह ने बताया कि पिछले साल फांसी की सजा पाने वालों में चार फीसदी की कमी आई है, जबकि प्राणदंड की सजा सुनाए जाने के मामलों में 14 फीसदी कमी दर्ज की गई है। 

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