वैश्विक पर्यावरण को लेकर गंभीर होने की जरूरत, प्रकृति दे रही है स्पष्ट संदेश : एरिक सोलहेम
भारत बदलाव नहीं कर रहा है, क्योंकि वह जलवायु कार्रवाई के बोझ को अपने कंधों पर उठाना चाहता है। चूंकि यह आर्थिक परिप्रेक्ष्य से सही है, इसलिए इस तरह अन्य देशों को इससे सीखने की जरूरत है।
सैन फ्रांसिस्को:
हमारी पृथ्वी कार्रवाई करने और वह भी एक छोटी अवधि के अंदर कार्रवाई करने का एक स्पष्ट संदेश दे रही है, अन्यथा स्थितियों को बदलने की क्षमता हम गंवा बैठेंगे। यह कहना है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के कार्यकारी निदेशक एरिक सोलहेम का। एरिक ने आईएएनएस के साथ एक विशेष बातचीत में कहा, 'तूफान और बाढ़ नए नहीं हैं, लेकिन हम अधिक गंभीर और अधिक चरम मौसमी घटनाओं की बारंबारता के एक व्यापक पैटर्न को देख रहे हैं।'
एरिक ने यह बात ऐसे समय में कही है, जब बुधवार से तीन दिवसीय वैश्विक जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन (जीसीएएस) शुरू हो रहा है। कैलिफोर्निया में हो रहे इस सम्मेलन में दुनिया भर से 4,000 से अधिक लोग हिस्सा ले रहे हैं, जिसमें व्यवसायी और राजनेता, निवेशक, नागरिक और सरकारी प्रतिनिधि शामिल हैं।
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उन्होंने कहा, 'यह (प्राकृतिक आपदाएं) वही हैं, जिनकी वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की थी और अब हम इसे अपनी आंखों के ठीक सामने देख रहे हैं। हमारा ग्रह हमें एक स्पष्ट संदेश दे रहा है। हमें कार्रवाई करनी होगी। और हमारे पास चीजों को बदलने की क्षमता खोने से पहले ऐसा करने के लिए थोड़ा समय है।'
वह भारत में केरल के लोगों और जापान में ओसाका के लोगों के लिए उनके विचारों पर एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे, जो हाल ही में बाढ़ और तूफान से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। एरिक भी शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, जिसका लक्ष्य अपनी महत्वाकांक्षाओं को अगले स्तर पर ले जाना और विश्व भर के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को उत्सर्जन कम करने की दिशा में तेजी लाने के लिए राजी करना है। एरिक ने कहा, 'कुल बात यह है कि हमें इस महत्वाकांक्षा के लिए कदम उठाने और एक गति पैदा करने की जरूरत है।'
वैश्विक उत्सर्जन को कम करने में भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई है। इस पर उन्होंने कहा, 'बिल्कुल'। एरिक ने कहा, 'मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी ने नवीकरणीय ऊर्जा में बदलाव लाने और भारत को एक हरित, स्वच्छ अर्थव्यवस्था के रूप में चलाने के लिए अविश्वसनीय नेतृत्व दिखाया है। नवाचार जो हम देख रहे हैं, वह न केवल नवीकरणीय ऊर्जा के संदर्भ में, बल्कि एक आर्थिक मॉडल में व्यापक बदलाव वास्तव में उत्साहजनक है।'
भारत से महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा वैश्विक जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे प्रतिनिधियों में शामिल हैं।
13 सितंबर को विस्तृत सत्र के दौरान वह बताएंगे कि कितनी कंपनियों ने विज्ञान-आधारित लक्ष्य अपनाए हैं, जो पेरिस समझौते के तहत प्रदूषण में कमी की योजनाओं को चिन्हित करते हैं।
एरिक ने विज्ञान आधारित जलवायु लक्ष्यों को अपनाने वाली कंपनियों में व्यावसायिक मूल्य पर ध्यान दिया। उन्होंने कहा, 'हम ऐसा करने के इच्छुक अधिक से अधिक उदाहरण देख रहे हैं और इस पथ पर विश्व के दिग्गज लोग हैं।'
एरिक बताते हैं, 'मेरे लिए यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले कंपनियां दिखा रही हैं कि कैसे कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) की परंपराओं के बजाए सतत प्रक्रियाएं व्यापार का मुख्य हिस्सा बन सकती हैं। वे सार्वजनिक संबंधों से आगे बढ़ रही हैं।'
उन्होंने दूसरा कारण बताते हुए कहा, 'ऐसा करने वाली कंपनियां शेयरधारकों और निवेशकों से मजबूत समर्थन हासिल कर रही हैं। वे यह समझ रही हैं कि ये लक्ष्य दक्षता और नवाचार के बारे में भी हैं। इससे व्यापार पर्यावरणीय जोखिम से दूर रहता है, जो व्यापार के लिए भी अच्छा है।'
वह कहते हैं, 'भारत में जब मैंने हैदराबाद के इंफोसिस परिसर का दौरा किया तो मैं वास्तव में प्रभावित हुआ था। उनके पास अपशिष्ट, कूलिंग, बिजली की खपत और समग्र दक्षता पर स्पष्ट लक्ष्य हैं, जो पर्यावरण परिप्रेक्ष्य से ही सराहनीय नहीं हैं, बल्कि एक आकर्षक निवेश भी करते हैं।'
बैटरी वाहनों का विकल्प चुना जा सकता है, जो अर्थव्यवस्था के डीकाबोर्नाइजिंग में भूमिका निभाएंगे। इस पर एरिक ने कहा, 'हमें परिवहन में आवश्यक व्यापक परिवर्तन के हिस्से के रूप में बैटरी वाहनों की शुरुआत देखनी है। इसमें अधिक सार्वजनिक परिवहन या परिवहन-साझाकरण समाधान शामिल हैं।'
उन्होंने कहा कि विकसित देशों को यह परिवर्तन एक बाधा या दायित्व के रूप में नहीं, बल्कि अधिक ऊर्जा सुरक्षा के अवसर के रूप में देखना चाहिए। इससे एक अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था जन्म लेगी, जिसपर स्वास्थ्य की देखभाल का कम बोझ होगा, जो प्रदूषण के कारणों से निपटने के कारण सामने आता है।
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भारत के मामले में संयुक्त राष्ट्र अधिकारी एरिक कहते हैं, 'भारत बदलाव नहीं कर रहा है, क्योंकि वह जलवायु कार्रवाई के बोझ को अपने कंधों पर उठाना चाहता है। चूंकि यह आर्थिक परिप्रेक्ष्य से सही है, इसलिए इस तरह अन्य देशों को इससे सीखने की जरूरत है।'
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