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साल 2019 में अमेरिकी ट्रंप सरकार को चीन, उत्तर कोरिया और ईरान के साथ करना पड़ सकता है युद्ध का सामना: रिपोर्ट

न्यूयॉर्क स्थित विदेश मंत्रालय के अधीन परिषद 'सेंटर फ़ॉर प्रिवेंटेटिव एक्शन' ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि साल 2019 में वैश्विक अस्थिरता का दौर देखने को मिलेगा, संभव है कि विश्व तीसरी बार युद्ध का गवाह बनेगा.

Updated on: 19 Dec 2018, 03:02 PM

नई दिल्ली:

साल 2018 में अमेरिकी प्रशासन के साथ चीन, ईरान और उत्तर कोरिया के बीच संबंधों में काफी तनाव देखने को मिला. न्यूयॉर्क स्थित विदेश मंत्रालय के अधीन परिषद 'सेंटर फ़ॉर प्रिवेंटेटिव एक्शन' (New York-based Council on Foreign Relations' Center for Preventative Action) ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि साल 2019 में वैश्विक अस्थिरता का दौर देखने को मिलेगा, संभव है कि विश्व तीसरी बार युद्ध का गवाह बनेगा. रिपोर्ट में युद्ध को लेकर तीन कैटेगरी परिभाषित किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध की 'प्रबल', 'मध्यम' और हल्की संभावना है. इस रिपोर्ट में उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु मुक्त वार्ता के टूटने की संभावना और उसपर विवाद की संभावना भी जताई गई है.

उत्तर कोरिया
उत्तर कोरिया के साथ चल रही परमाणु मुक्त वार्ता के टूटने की स्थिति में यह अनिश्चिता बनी रहेगी कि क्या किम जोंग उन अपने देश को बचा पाएंगे और अपने नेतृत्व में अगले साल के शुरुआत में दूसरा सम्मेलन करा पाएंगे. हालांकि अब तक यही कोशिश रही है कि उत्तर कोरिया के साथ शांति की पहल की जाए और किम जोंग उन को परमाणु हथियार छोड़ने के लिए मना लिया जाए. इसके बावजूद इसे पूरी तरह से धरातल पर नहीं उतारा जा सका है.

गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और किम ने अपनी पहली बैठक में कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में काम करने को लेकर सहमति जताई थी, लेकिन इस दिशा में स्पष्ट रूट मैप के आभाव की वजह से यह प्रगति काफी हद तक प्रतीकात्मक ही बनी रही.

अमेरिका ने उत्तर कोरिया को परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाने का आग्रह किया है, जबकि प्योंगयांग ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले अपनी सुरक्षा के लिए गारंटी की मांग की है.

जी20 सम्मेलन के दौरान, ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात की और उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने तक, उस पर लगे प्रतिबंध पर टिके रहने पर सहमति जताई.

ट्रंप ने कहा है कि वह उत्तर कोरिया के नेता से 2019 में जनवरी या फरवरी में दूसरी बार मुलाकात करने की उम्मीद कर रहे हैं और सम्मेलन के लिए तीन स्थानों पर विचार किया जा रहा है. ट्रंप ने अर्जेटीना से जी20 सम्मेलन में भाग लेने के बाद वाशिंगटन आने के दौरान एयर फोर्स वन में कहा, "मुझे लगता है कि हम जल्द ही मुलाकात करने वाले हैं- जनवरी या फरवरी में."

ट्रंप ने कहा कि उन्होंने सम्मेलन के लिए तीन स्थलों के बारे में चर्चा की है, लेकिन कोई निर्णय नहीं किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक समय आएगा जब वह अमेरिका में भी किम की आगवानी करने के लिए तैयार होंगे.

राष्ट्रपति ने सितंबर में कहा था कि वह किम के साथ दूसरा सम्मेलन करना चाहते हैं. हालांकि वार्ता में कुछ गतिरोध से मुलाकात की योजना में देरी हुई है.

ईरान
रिपोर्टो में अमेरिका और ईरान के बीच हाल के तनावपूर्ण स्थिति और परमाणु संधि के करार को तोड़ने को लेकर भी चर्चा की गई है. बता दें कि जुलाई 2015 में वियना समझौता (ईरान परमाणु समझौते) के तहत अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के छह शक्तियों ने ईरान पर कई आर्तिक कड़े प्रतिबंध लगाए थे. इन शर्तों के मुताबिक यह तय हुआ कि ईरान अपना अल्प संवर्धित यूरेनियम रूस को देगा और सेंट्रीफ्यूजों की संख्या घटाएगा. इसके बदले में रूस ईरान को करीब 140 टन प्राकृतिक यूरेनियम येलो-केक के रूप में देगा. संधि की शर्त यह भी थी कि आईएईए को अगले 10 से 25 साल तक इस बात की जांच करने की स्वतंत्रता होगी कि ईरान संधि के प्रावधानों का पालन कर रहा है या नहीं. जिसके बाद ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार कर ली थी.

हालांकि मई-2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौता ही तोड़ दिया. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी घोषणा करते हुए कहा, 'ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है, इसलिए मैं ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने की घोषणा कर रहा हूं.' जिसके बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये.

ट्रंप ने दूसरे मुल्क़ों को आगाह करते हुए कहा कि जो कोई भी ईरान की मदद करेगा उन्हें भी प्रतिबंध झेलना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि इस फैसले से दुनिया में यह संदेश जाएगा कि अमेरिका सिर्फ धमकी ही नहीं देता है, बल्कि करके भी दिखाता है. अमेरिका के इस फ़ैसले का नतीज़ा ह हुआ कि यूरोप की कुछ बड़ी कंपनियां जो पहले ईरान के साथ कारोबार करने के लिए तत्पर रहती थीं अब वे कारोबार के लिए अमेरिका और ईरान के बीच में से किसी एक को चुनने के लिए विवश है.

प्रतिबंध तोड़ने को लेकर अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि ईरान परमाणु समझौते का गलत इस्तेमाल कर रहा है. ईरान परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने में कर रहा है और इससे परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है. वह सीरिया, यमन और इराक में शिया लड़ाकों और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को हथियार सप्लाई कर रहा है.

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चीन

वहीं रिपोर्ट में हिंद महासागर में चीन का बढ़ता दबदबा और अमेरिका की आपत्ति का भी ज़िक्र किया गया है. बता दें कि चीन दुनिया के सागरों में अपना दबदबा बना रहा है और दुनिया के व्यस्ततम जलमार्ग का दावा ठोकते हुए विदेशों में नौसेना का अड्डा बना रहा है. हालांकि चीन की नौसेना अमेरिकी नौसेना के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता, लेकिन दुनिया के जलमार्गो पर इसके बढ़ते वर्चस्व से वाशिंगटन, टोकियो, कैनबरा और नई दिल्ली की चिंता बढ़ी हुई है.

यह परियोजना चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के तहत साउथ चाइना सी इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलोजी की अगुवाई में चल रही है, जो दुनिया के महासागरों में अमेरिका को चुनौती देने की दिशा में बीजिंग के इरादे से प्रेरित अभूतर्व सैन्य प्रयास का हिस्सा मालूम पड़ता है.

चीन ने पानी के नीचे अपनी निगरानी का जाल बिछाया है, जिससे उसकी नौसेना को सही ढंग से जहाज का पता लगाने में मदद मिलेगी. इस तरह चीन हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में अग्रणी की भूमिका में अपनी पकड़ बानए रख पाएगा.

हांगकांग के दक्षिण सागर मार्निग पोस्ट के मुताबिक, इस तंत्र से पानी के भीतर की सूचना एकत्र की जाती है, जिसमें खासतौर से पानी का तापमान और लवणता संबंधी सूचना जिसका उपयोग करके नौसेना को जहाज के बारे में सही जानाकारी मिल सकती है. इस तरह नौवहन में सहायता मिलती है.

बता दें कि दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र में सैन्य बल बढ़ाने को लेकर अकसर अमेरिका और चीन में तनातनी होती रहती है. दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर चीन, ताइवान, वियतनाम, मलयेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस के दावों के चलते यह क्षेत्र विवाद का केंद्र बना हुआ है.

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अमेरिका में बड़े आतंकी और साइबर हमले की संभावना

इन सबके अलावा रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि अमेरिका आने वाले समय में बड़ा साइबर अटैक या भयंकर आतंकी हमला भी झेल सकता है.