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Lok Sabha Election 2019 : आइए जानते हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र गुना के बारे में

गुना लोकसभा सीट पर सिंधिया के आगे कोई नहीं टिकता, ज्योतिरादित्य सिंधिया 4 बार सांसद चुने गए हैं

Updated on: 11 Mar 2019, 03:07 PM

ग्वालियर:

गुना लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की वीआईपी सीट है. आंकड़ें बता रहे हैं कि यहां सालों से सिंधिया परिवार का ही कब्ज़ा रहा है. गुना लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक ऐसा लोक सभा क्षेत्र है जहां अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में विजयाराजे सिंधिया 7 बार, माधवराव सिंधिया 3 बार और ज्योतिरादित्य सिंधिया 4 बार चुने गए हैं. कुल 16 चुनावों में 14 चुनाव तो सिंधिया परिवार ने ही जीते हैं. इस सीट पर सिंधिया राजघराने के सदस्य का ही राज रहा है. ग्वालियर चंबल अंचल की दो ही सीट ऐसी हैं जहां सिंधिया चुनाव लड़ना पसंद करते हैं, इनमें एक गुना और दूसरी ग्वालियर है. ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही इस सीट पर ज्यादातर जीतते आए हैं. फिलहाल पिछले 4 चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली है. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के जयभान सिंह को भारी मतों से हराया था.

गुना लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास

सन 1957 में गुना लोकसभा सीट पर पहली बार आम चुनाव हुआ था. पहले चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को हराया था. इसके अगले चुनाव में यहां से कांग्रेस के रामसहाय पांडे मैदान में उतरे. उन्होंने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को मात दी.1967 के उपचुनाव में यहां पर कांग्रेस को हार मिली और स्वतंत्रता पार्टी के जे बी कृपलानी जीते थे. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में स्वतंत्रता पार्टी की ओर से कांग्रेस की पूर्व नेता विजयाराजे सिंधिया लड़ीं. उन्होंने कांग्रेस के डीके जाधव को शिकस्त दी. शुरुआती दो चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस को लगातार 3 चुनावों में हार मिली. साल 1971 में विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया मैदान में उतरे. वह यहां से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े. पहले ही चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की.

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माधवराव सिंधिया 1977 के आम चुनाव में एक बार फिर मैदान में उतरे और इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद वह 1980 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से लड़ते हुए जीत हासिल की. वह लगातार 3 चुनावों में यहां विजयी रहे. 1984 के चुनाव में माधवराव ग्वालियर से लड़े और दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हराया. तब कांग्रेस ने यहां से महेंद्र सिंह को टिकट दिया था और उन्होंने बीजेपी के उद्धव सिंह को हराया था. 1989 के चुनाव में यहां से विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर लड़ीं और तब के कांग्रेस के सांसद महेंद्र सिंह को शिकस्त दी.

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इसके बाद से विजयाराजे सिंधिया ने यहां पर हुए लगातार 4 चुनावों में जीत का परचम लहराया. माधवराव सिंधिया के ग्वालियर चले जाने से कांग्रेस यहां पर कमजोर होती गई. ऐसे में 1999 में माधवराव सिंधिया ग्वालियर छोड़कर फिर गुना आ गए. उन्होंने इस सीट पर कांग्रेस की वापसी कराई. 1999 के चुनाव में उन्होंने यहां से जीत हासिल की. 2001 में उनके निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से लड़ा. गुना की जनता ने उन्हें निराश नहीं किया. अपने पहले ही चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जीत हासिल की. इसके बाद गुना की जनता उनको जीताती ही आ रही है. यहां तक कि 2014 में मोदी लहर में जब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था तब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे. गुना लोकसभा सीट पर ज्यादातर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है.

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कांग्रेस को यहां पर 9 बार जीत मिली है. वहीं बीजेपी को 4 बार और 1 बार जनसंघ को जीत मिली है. ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर एक ही परिवार के तीन पीढ़ियों का राज रहा है. बीजेपी इस सीट पर तब ही जीत हासिल की है जब विजयाराजे सिंधिया उसके टिकट पर चुनाव लड़ीं. विजयाराजे सिंधिया के बाद बीजेपी को यहां पर कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं मिला जो माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहां हरा सके. दोनों को हराने की बीजेपी की हर कोशिश यहां पर नाकामयाब ही रही है. गुना लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. यहां पर शिवपुरी, बमोरी, चंदेरी, पिछोर, गुना, मुंगावली, कोलारस, अशोक नगर विधानसभा सीटें हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.

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2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को हराया था. इस चुनाव में सिंधिया को 517036 वोट मिले थे और पवैया को 396244 वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 120792 वोटों का था. वहीं बसपा के लाखन सिंह 2.81 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
इससे पहले 2009 के चुनाव में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को जीत मिली थी. उन्होंने इस बार बीजेपी के दिग्गज नेता नरोत्तम मिश्रा को हराया था. सिंधिया को 413297 वोट मिले थे तो नरोत्तम मिश्रा को 163560 वोट मिले थे. सिंधिया ने 249737 वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं बसपा 4.49 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.

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गुना लोकसभा सीट का इतिहास

मध्य प्रदेश के उत्तर में गुना शहर है. यहां से 38 किमी दूर जो कि राजस्थान की सीमा है. इसे मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है और ग्वालियर संभाग में आता है. इसके पश्चिम में राजस्थान स्थित है उत्तर में उत्तर प्रदेश स्थित है पूर्व में छत्तीसगढ़ स्थित है तथा दक्षिण में महाराष्ट्र स्थित है. गुना शहर में मुख्यतः हिन्दू, मुस्लिम तथा जैन समुदाय के लोग रहते हैं. खेती यहां का मुख्य कार्य है. आजादी से पहले गुना ग्वालियर राजघराने का हिस्सा था, जिस पर सिंधिया वंश का अधिकार था.

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गुना संसदीय क्षेत्र में कुल जनसंख्या

2011 की जनगणना के मुताबिक गुना की जनसंख्या 24 लाख 93 हजार 6 सौ 75 हैं. यहां की 76.66 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 23.34 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती हैं. गुना में 18.11 फीसदी लोग अनुसूचित जाति और 13.94 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में गुना में कुल 16 लाख 5 हजार 6 सौ 19 मतदाता थे. जिसमें से 7 लाख 48 हजार 2 सौ 91 महिला मतदाता और 8 लाख 57 हजार 3 सौ 28 पुरुष मतदाता थे.