एनसीआरबी की रिपोर्ट में सामने आया चौंकाने वाला आंकडा, हर 8 मिनट में 1 पुरुष कर रहा है आत्महत्या
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 की तुलना में पुरुष आत्महत्या में दो प्रतिशत का इजाफा हुआ है और अगर पतियों की बात की जाए तो ये आंकड़ा आठ प्रतिशत है। वहीं 2015 में कुल 64,534 पतियों ने आत्महत्या की, जो अब तक दर्ज सबसे बड़ी संख्या है।
highlights
- एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2014 की तुलना में पुरुष आत्महत्या में दो प्रतिशत का इजाफा हुआ है
- इन आंकड़ों के मुताबिक, हर आठ मिनट में एक यानी कि हर दिन 180 पति आत्महत्या कर रहे हैं
लखनऊ:
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2014 की तुलना में पुरुष आत्महत्या में दो प्रतिशत का इजाफा हुआ है और अगर पतियों की बात की जाए तो ये आंकड़ा आठ प्रतिशत है। वहीं 2015 में कुल 64,534 पतियों ने आत्महत्या की, जो अब तक दर्ज सबसे बड़ी संख्या है।
'कानूनी आतंकवाद' के शिकार पुष्कर सिंह की 10वीं स्मृति दिवस पर '64,000 विवाहित पुरुषों की आत्महत्या का जिम्मेदार कौन, हम रहेंगे कब तक मौन' विषय पर यहां के प्रेस क्लब में शनिवार को हुई गोष्ठी में पति-परिवार कल्याण समिति की अध्यक्ष डॉ. इंदु सुभाष ने कहा कि अभिनेता ओम पुरी की मौत एक ताजातरीन उदाहरण है कि 'मर्द को भी दर्द होता है', एक पुरुष भी अपने परिवार के लिए तड़पता है, टूटता है, बिखरता है और थक हारकर अपनी जान तक गवां देता है।
उन्होंने कहा, 'एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट 2015 से चौंकाने वाले सच का खुलासा हुआ है। विगत वर्ष 2014 की तुलना में पुरुष आत्महत्या में दो प्रतिशत का इजाफा हुआ है और अगर पतियों की बात की जाए तो ये आंकड़ा आठ प्रतिशत तक पहुंच जाता है।'
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डॉ. इंदु ने बताया, '2015 में कुल 64534 पतियों द्वारा की गई आत्महत्या इतिहास में दर्ज अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। इन आंकड़ों के मुताबिक, हर आठ मिनट में एक यानी कि हर दिन 180 पति आत्महत्या कर रहे हैं। जबकि इनकी तुलना में पत्नियों की संख्या मात्र 78 है। फिर भी महिला सुरक्षा और कल्याण के लिए इस वर्ष बजट में 178 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है और पुरुषों के लिए शून्य, जबकि टैक्स का 90 प्रतिशत पुरुषों द्वारा जमा होता है।'
गोष्ठी में कहा गया, 'सरकार, समाज और पूरी न्याय व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ महिला सुरक्षा, सम्मान और उत्थान की बात करते हैं। चुनाव में भी जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगने पर तो न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14 के आधार पर प्रतिबंध लगा दिया, मगर इसी अनुच्छेद में धर्म, जाति के साथ साथ लिंग के आधार पर प्रतिबंध नहीं लगाया और सारे राजनैतिक दल खुलेआम धड़ल्ले से महिलाओं के नाम पर आधी आबादी की राजनीति कर रहे हैं। चुनाव आयोग तक अपनी आंखें मूंद लेता है।'
डॉ. इंदु ने कहा, 'पुरुषों की आत्महत्या का मूल कारण हमारी पुरुष प्रधानता सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें उसे अपने पूरे परिवार और समाज की रक्षा और भरण-पोषण की जिम्मेदारी दी गई है और ये कहा गया है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता' वह अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी पूरे तन-मन-धन से निभाता है, लेकिन अपनी समस्याओं और दुख-दर्द को किसी से कह नहीं पाता है। अंदर ही अंदर घुटता रहता है और भावनात्मक सहारा नहीं मिल पाने से बहुत बार वह पूरी तरह से टूट जाता है और आत्महत्या तक कर लेता है।'
उन्होंने कहा, 'इसके अलावा पुरुषों की आत्महत्या में 3.3 प्रतिशत आर्थिक तंगी, दो प्रतिशत बेरोजगारी, 15.6 प्रतिशत बीमारी, 27.6 प्रतिशत पारिवारिक कलह, 4.8 प्रतिशत वैवाहिक दिक्कतें, 3.3 प्रतिशत प्रेम-प्रसंग, 22.2 प्रतिशत अन्य और 12.1 प्रतिशत अज्ञात कारण हैं।'
गोष्ठी में इन आत्महत्याओं के कारण और निवारण गिनाते हुए मांग की गई कि इन आत्महत्याओं व पुरुषों की दिक्कतों के समाधान के लिए पुरुष मंत्रालय और पुरुष आयोग का तुरंत गठन किया जाए।
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रिपोर्ट में कहा गया है, 'पुरुषों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वालों को कठोर दंड देने के कानूनी प्रावधान किए जाए। यही नहीं सभी लिंगभेदी कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए। साथ ही मांग की गई कि सभी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में इन मांगों को शामिल करे। यदि वह ऐसा नहीं करते तो हम 'नोटा' का बटन दबाकर अपना विरोध जताएंगे।'
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