सड़क पर दम तोड़ती इंसानियत और कैमरे में कैद होती मौत
पिछले दिनों दक्षिण के राज्य कर्नाटक में हुए सड़क दुर्घटना के दो वीडियो सामने आये। जिसमें घायल शख्स मदद के लिए तड़पता रहा और उसकी मौत हो गई वहीं भीड़ मदद की बजाय अपने मोबाइल में फोटो उतारता रहा।
नई दिल्ली:
पिछले दिनों दक्षिण के राज्य कर्नाटक में हुए सड़क दुर्घटना के दो वीडियो सामने आये। जिसमें घायल शख्स मदद के लिए तड़पता रहा और उसकी मौत हो गई वहीं भीड़ मदद की बजाय अपने मोबाइल में फोटो उतारती रही। कर्नाटक का मामला ना ही पहला है और ना ही अंतिम। दरअसल कानून का डर और खत्म होती संवेदनशीलता किसी की जिंदगी को अब जिंदगी नहीं समझती।
कोप्पल
कर्नाटक के कोप्पल में गुरुवार को एक युवक (अनवर अली) सड़क हादसे के बाद खून से लथपथ करीब 25 मिनट तक तड़पता रहा, मदद की गुहार लगाता रहा लेकिन वहां जुटी भीड़ वीडियो बनाती रही। लोगों को इस बात का भी डर था कि मदद करने के बाद पुलिसिया पचरे में फंस सकते हैं। आपको बता दें की दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों की रक्षा करने के लिए कानून है।
बाद में युवक ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दी। किसी घायल की जिंदगी बचाने के लिए 25 मिनट काफी होता है। युवक को अगर समय रहते अस्पताल ले जाया गया होता तो उसकी जान बच सकती थी। पुलिस के मुताबिक घटना बुधवार सुबह उस समय हुई जब अनवर अली नाम का युवक साइकिल से बाजार जा रहे थे, उन्हें हुबली से हासपेट जा रही राज्य सड़क परिवहन निगम की एक बस ने टक्कर मार दी थी।
मैसूर
कोप्पल की दुर्घटना से पहले इसी तरह का मामला मैसूर में देखने को मिला था। जहां सड़क दुर्घटना में घायल हुए पुलिस कर्मी को समय रहते अस्पताल नहीं पहुंचाया गया और उन्होंने दम तोड़ दी। जबकि भीड़ वहां मौजूद थी।
लोग क्यों बने रहते हैं मूकदर्शक
दरअसल लोगों को डर रहता है कि अगर घायल को अस्पताल पहुंचाएंगे तो पुलिस बार-बार पूछताछ करेगी। वहीं डॉक्टर भी घायल को अस्पताल ले जाने पर तरह-तरह के सवाल पूछते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक मदद करने वालों से किसी भी तरह की पूछताछ नहीं की जा सकती है।
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2012 में दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गृहमंत्रालय को आदेश जारी किया है कि ऐसे मामलों में मदद करने वाले लोगों को न तो पुलिस परेशान करेगी और न ही उन्हें कानूनी दांव-पेंच में उलझाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश जारी किया था कि वह उनके इन दिशा-निर्देशों को आम जनता, देश के सभी अस्पतालों और सभी पुलिसकर्मियों तक पहुंचाए।
जिसके बाद से राज्य और केंद्र सरकार विज्ञापनों के जरिये जागरुकता अभियान चला रही है। उसके बावजूद मैसूर और कोप्पल जैसे कई मामले सामने आये हैं जहां लोग मदद की बजाय वीडियो बनाते, फोटो खींचते नजर आते हैं। जिसके बाद यह सोचने पर विवश करता है कि क्या लोगों में इंसानियत मर चुकी है। क्या एक जिंदगी की उनके लिए कोई कीमत नहीं है।
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