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कैसे पिछड़े पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी बने मुख्यमंत्री, शशिकला ने जयललिता के पुराने विश्वासपात्र को कैसे दी मात

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर ई के पलानीसामी के शपथ लेते ही राज्य में चल रहा राजनीतिक संकट फिलहाल टल गया है। अब पन्नीरसेल्वम का क्या होगा। क्यों वो जीती बाज़ी हार गये।

Updated on: 16 Feb 2017, 11:43 PM

नई दिल्ली:

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर ई के पलानीसामी के शपथ लेते ही राज्य में चल रहा राजनीतिक संकट फिलहाल टल गया है। अब पन्नीरसेल्वम का क्या होगा। क्यों वो जीती बाज़ी हार गये। अब सवाल ये उठता है कि खुद को जयललिता का उत्तराधिकारी बताने वाले और चिन्नम्मा शशिकला के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम संख्या के मामले में आखिर कैसे पीछे रह गए।

पन्नीरसेल्वम तो जयललिता के चहेते थे। अम्मा जब जेल जाती थीं तो अपने पीछे पन्नीरसेल्वम को ही गद्दी सौंप जाती थीं। फिर जब उनका निधन हुआ तब भी चिन्नम्मा की मदद से ही वो मुख्यमंत्री बने। लेकिन इस बीच चिन्नम्मा की नीयत बदली। पार्टी महासचिव के साथ साथ उनकी मुख्यमंत्री बनने की भी मनोकामना जागी। इसलिये आनन-फानन पन्नीरसेल्वम पर दबाव बनाकर उनसे इस्तीफा लिया गया। बस यहीं पर तमिलनाडु की राजनीति एक करवट लेती है। पन्नीरसेल्वम का एक नया रूप सामने आता है।

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पन्नीरसेल्वम बागी हो गये। चिन्नम्मा को ही चुनौती दे डाली। पासा फेंका ये सोचकर कि अम्मा के असली उत्तराधिकार तो उनके सिवा कोई और नहीं हो सकता। लेकिन शशिकला तो अम्मा की तीस बरस छाया बन कर रहीं। अम्मा की राजनीति के हर गुर उन्होंने आत्मसात कर लिये थे। पन्नीरसेल्वम की चुनौती को स्वीकारा।

मगर पार्टी में फूट पड़ते देर नहीं लगी। विद्रोही शशिकला कैंप में भी थे। समय उनसे टैक्स मांग रहा था। लॉयेल्टी टैक्स। एक तरफ चिन्नम्मा जिसने कभी चुनाव नहीं लड़ा। दूसरी तरफ पन्नीरसेल्वम - अम्मा के खासमखास रहे और तीन बार अम्मा की गद्दी भी संभाली। इसलिये कुछ सांसदों सहित कुछ विधायकों ने भी पाला बदलते देर नहीं की।

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शशिकला को भी इसका आभास था। इसलिये विधायकों को लामबंद करने के लिये माकूल रिसॉर्ट ढूंढ़ा गया। इस बीच पन्नीरसेल्वम को लगा विधायकों की संख्या उनके साथ भले ही न हो, राज्य की जनता और अम्मा के समर्थक उनसे भी सिंपेथी दिखायेंगे। मगर होनी को कुछ और मंज़ूर था।

उधर, शशिकला ने भी अपने तेवर कड़े किये और पन्नीरसेल्वम को पार्टी से निकाल दिया। शशिकला के इस फैसले से पन्नीरसेल्वम के लिये जनता में समर्थन भी दिख रहा था, इसके अलावा वो पार्टी के 11 सांसदों और उतने ही विधायकों का समर्थन मिल रहा था। ऐसा लग रहा था कि रेज़ार्ट में बंद किये गए विधायकों में से भी कुछ लोग पन्नीरसेल्वम के साथ आ सकते हैं। लेकिन एक विधायक सरवणन को छोड़कर दूसरा कोई विधायक उनके साथ नहीं आया।

 

उनकी इस बगावत के बाद शशिकला ने पन्नीरसेल्वम पर डीएमके के साथ नरम रुख अपनाने का भी आरोप लगाया।

इधर, शशिकला और पन्नीरसेल्वम में तनातनी चल रही थी उधर दिल्ली में कुछ और पक रहा था। सुप्रीम कोर्ट में शशिकला के डीए केस पर फैसला कभी भी आ सकता था। शायद इसी वजह से शशिकला के बार-बार आग्रह के बावजूद राज्यपाल सी विद्यासागर राव उन्हें शपथ दिलाने से हिचकिचा रहे थे। कि कहीं कोर्ट का फैसला शशिकला के विरुद्ध गया तो।

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लेकिन कोर्ट का फैसला आया और अदालत ने चिन्नम्मा को दोषी ठहराये जाने के निचले कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। शशिकला बनना चाहती थीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री मगर पोएस गार्डन नहीं, जेल अब उनका नया घर बनने वाला था।

लेकिन पन्नीरसेल्वन खेमे में उत्सव का माहौल था। उन्हें लगा अब बाज़ी उनके हाथ में है। उन्होंने ये समझा कि उधर शशिकला जेल जायेंगी और इधर पार्टी के बाकी विधायक उनके समर्थन में उतर आयेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तमिलनाडु के इस पोलिटिकल ड्रामे में अब एंट्री होती है पलानिसामी की।

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पलानिसामी शशिकला के ट्रंप कार्ड थे। पन्नीरसेल्वम की तरह ये भी जयललिता के असीम भक्त और चहेते। शशिकला ने दांव सोच समझ कर खेला था। जैसे लोहे को लोहा काटता है - पन्नीरसेल्वम को पलानिसामी के कद जैसा ही नेता टक्कर दे सकता था और पार्टी के दो फाड़ होने से बचा सकता था।

पलानिसामी को विधायक दल का नया नेता चुन लिया गया था। पार्टी विधायकों के सामने दो रास्ते थे। शशिकला से बगावत कर पार्टी से बाहर जाये और अनिश्चितता के माहौल में सांस लें। या पन्नीरसेल्वम के साथ नहीं बल्कि पार्टी में बने रहें और सरकार के बचे पूरे चार साल सत्ता का सुख भोगें। अम्मा की याद के सहारे चिन्नम्मा के दरख्तों के साये क्या बुरे थे।

पार्टी विधायकों के अम्मा के साथ साथ चिन्नम्मा के साथ बने रहना ही उचित समझा। नंबर भी उनके पक्ष में थे। और सत्ता की ललक भी कम नहीं थी।

सत्ता की आग पन्नीरसेल्वम में भी कम नहीं थी। दरअसल चिंगारी तो उन्होने ही भड़काई थी। मगर लोकतंत्र में भक्ति और शक्ति दोनो ज़रूरी होती है। यानि लॉयेल्टी एक तरफ और नंबर एक तरफ। भक्ति यानि लॉयेल्टी की काट तो पलानिसामी थे। बस, पन्नीरसेल्वम के पास नंबर भी नहीं थे। और यहीं भाग्य ने पलटी मारी। चिन्नम्मा तो जेल गयीं मगर पलानिसामी गवर्नर हाउस - मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने।

पन्नीरसेल्वम और उनके प्रतिनिधि राज्यपाल को ये विश्वास दिलाने में भी कामयाब नहीं हुए कि पार्टी के ज्यादातर विधायक जबरन बंधक बनाकर होटल में रखे गए हैं और वो उनके समर्थन में आ सकते हैं।

जो स्थिति बनी उसमें राज्यपाल के सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। पलानीसामी को निमंत्रण के साथ ही उन्हें सदन में बहुमत सिद्ध करने का निर्देश भी हो गया।

इस पूरे नाटक में पलानीसामी हीरो के तौर पर उभरे हैं। जबकि पन्नीरसेल्वम ऐंटी-हीरो।

पलानीसामी ने दावा किया है कि पार्टी के 124 विधायकों का समर्थन साथ है। ज़ाहिर है पन्नीरसेल्वम चुप नहीं बैठेंगे। वो कोशिश करेंगे कि विधायक टूटें। इसके लिये वो जयललिता की भतीजी और शशिकला की घोर विरोधी दीपा जयकुमार का भी सहयोग ले सकते हैं। और उन सारी शक्तियों को जुटाने की कोशिश करेंगे जिनसे पलानिसामी की सरकार को सदन के अंदर ही शिकस्त दी जा सके। मगर, फिलहाल ये दूर की कौ़ड़ी लगती है।