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केरल को पछाड़ कर साक्षरता में नंबर वन बना त्रिपुरा

इस साल मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि राज्य की साक्षरता दर 96.82 प्रतिशत है। एक ऐसा सफल कदम जिसका अध्ययन करने अन्य राज्यों से अधिकारी आते हैं।

Updated on: 24 Dec 2016, 09:58 AM

New Delhi:

त्रिपुरा के लिए बीत रहा साल बेहतरीन रहा। 2016 में उग्रवाद की कोई घटना नहीं होने के साथ हिंसा संभावित पूर्वोत्तर में यह सीमावर्ती राज्य शांति का द्वीप बन कर उभरा। साथ ही साक्षरता के मामले में भी करीब 97 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ 94 प्रतिशत वाले केरल को पछाड़ कर अव्वल बन गया।

राजनीतिक मोर्चे पर वाम मोर्चा शासित राज्य में कांग्रेस के लिए उतनी शांति नहीं रही। कांग्रेस में एक तरह से सीधा विभाजन हो गया। उसके 10 में से 6 विधायक पार्टी के अन्य नेताओं के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

साल 1960 के दशक के मध्य से त्रिपुरा उग्रवाद से प्रभावित रहा है। लेकिन दीर्घकालिक उग्रवाद विरोधी उपायों और विकासात्मक कदमों के साथ सरकार धीरे-धीरे आतंकवाद को मात देने में सफल रही।

राज्य के शांति की ओर बढ़ने की बात कहते हुए मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने आईएएनएस से कहा, "समग्र दृष्टिकोण और बहुआयामी रणनीति के कारण हमने त्रिपुरा में दशकों से जारी उग्रवाद पर काबू पाया है।"

उन्होंने कहा, "हालांकि हमने सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम राज्य से हटा लिया है, लेकिन हम संतुष्ट नहीं हुए हैं। हम आतंकवाद के खिलाफ हमेशा सतर्क रहते हैं जो अब भी अपना सिर उठा सकता है।"

राज्य के पूर्व पुलिस प्रमुख ने कहा कि पूरे राज्य में विकासात्मक कार्यक्रम लागू करने की सरकारी नीतियों के अलावा राज्य की आबादी में कमजोर कड़ी वाले समुदायों में विश्वास की भावना भरकर और सरकारी तंत्र के प्रति जनजातियों में फिर से विश्वास बहाली से भी उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई जीती गई है।

न केवल शांति बनाए रखने, बल्कि गरीबी से लड़ने, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र सुनिश्चित करने में शिक्षा की मुख्य भाूमिका को महसूस करते हुए माणिक सरकार ने साल 2011 में राज्यभर में तीन चरणीय साक्षरता अभियान शुरू किया था। उस समय राज्य की साक्षरता दर 87.75 प्रतिशत थी।

इस साल मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि राज्य की साक्षरता दर 96.82 प्रतिशत है। एक ऐसा सफल कदम जिसका अध्ययन करने अन्य राज्यों से अधिकारी आते हैं।

निवर्तमान वर्ष में पूर्वोत्तर भारत के राष्ट्रीय राजधानी के साथ जुड़ने का महत्वपूर्ण क्षण उस समय आया, जब गत 31 जुलाई को रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने नव निर्मित ब्रॉड गेज लाइन पर त्रिपुरा-नई दिल्ली पैसेंजर गाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इससे त्रिपुरा को रेलवे से जोड़ने का 67 साल पुराना आंदोलन शांतिपूर्वक खत्म हो गया।

राजनीतिक उतार-चढ़ाव के लिए भी यह साल याद किया जाएगा। पश्चिम बंगाल वाम दलों के साथ कांग्रेस के गठबंधन के विरोध में पार्टी के दस में से छह विधायक, बड़ी संख्या में नेता और हजारों कार्यकर्ता सबसे पुरानी पार्टी को छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

उधर, दो विधान सीटों पर हुए उप चुनाव में गत 18 वर्षो से माकपा नीत वाम मोर्चा शासित राज्य में भाजपा की स्थिति में सुधार दिखा। तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहीं, जबकि कांग्रेस चौथे स्थान पर चली गई।

इतना ही नहीं, मनरेगा कानून के तहत रोजगार देने में भी त्रिपुरा लगातार सातवें साल शीर्ष स्थान पर बना रहा। राज्य में प्रति परिवार 94.46 व्यक्ति दिन काम दिया गया, जबकि राष्ट्रीय औसत 48.51 दिन है।