logo-image

जेएनयू ने छात्रों के प्रशासनिक ब्लॉक की घेरेबंदी को अपराध कहा

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के 'ऑकूपाय एड-ब्लॉक' आंदोलन का रविवार चौथा दिन है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों के लिए एक और निंदा-पत्र जारी किया है और उनके विरोध प्रदर्शन को आपराधिक कृत्य करार दिया है।

Updated on: 12 Feb 2017, 09:45 PM

नई दिल्ली:

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के 'ऑकूपाय एड-ब्लॉक' आंदोलन का रविवार चौथा दिन है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों के लिए एक और निंदा-पत्र जारी किया है और उनके विरोध प्रदर्शन को आपराधिक कृत्य करार दिया है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, 'प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों के पास प्रशासनिक ब्लॉक की इमारत पर कब्जा करने, कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशासनिक भवन में प्रवेश करने से रोकने का कोई आधार नहीं है। यह अपराध है और कानून का उल्लंघन है।'

विद्यार्थी विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ब्लॉक में धरने पर बैठे हुए हैं, जहां विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालय हैं। विद्यार्थी एम.फिल और पीएच.डी प्रवेश पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की एक अधिसूचना को लागू करने को लेकर कुलपति का जवाब चाहते हैं।

और पढ़ें:जेएनयू में दाखिले में कटौती नहीं, मीडिया रिपोर्ट को बताया गलत

इस अधिसूचना में मौखिक परीक्षा को 100 प्रतिशत वेटेज देने और प्रवेश परीक्षा को मात्र क्वोलिफाइंग मानक बनाने का प्रस्ताव है। इस अधिसूचना को जेएनयू अकादमिक परिषद ने पिछले वर्ष 26 दिसंबर की अपनी बैठक में मंजूरी दे दी थी, जबकि परिषद के आधे से अधिक सदस्य इसके खिलाफ थे।

कई शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों ने परिषद की बैठक में एकतरफा पारित आदेश पर अपना विरोध जताया है और प्रशासन से मांग की है कि इस अधिसूचना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए परिषद की बैठक फिर से बुलाई जाए।

और पढ़ें:जेएनयू के लापता छात्र नजीब अहमद को नेपाल में देखा गया, भारत-नेपाल सीमा पर लगे पोस्टर

विश्वविद्यालय ने विद्यार्थियों से कहा है कि प्रवेश नीति में जेएनयू की समतामूलक भावना का पालन किया जएगा, जिसमें मौखिक परीक्षा को 20 प्रतिशत वेटेज और पिछड़े क्षेत्रों के उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक आवंटित किए जाएंगे।लेकिन प्रशासन उस बिंदु के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता, जिसमें किसी प्रोफेसर के अधीन पीएच.डी. या एम.फिल करने वाले विद्यार्थियों की संख्या सीमित कर दी गई है।

और पढ़ें:विश्वविद्यालयों में खतरे में है अभिव्यक्ति की आजादी:पूर्व पीएम मनमोहन सिंह