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जानिए क्या हुआ था उस रोज, जब अहिंसा के पुजारी गांधी हिंसा के शिकार हुए

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। यानी एक अकेला नेता जो अपने नैतिक बल के बदौलत न सिर्फ ब्रिटिश साम्रराज्य की चूलें हिलाई बल्कि आजाद भारत में उन्होंने कट्टर धार्मिक, परंपरावादी और कठमुल्लों के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन छेड़ी। लेकिन 30 जनवरी 1948, वो काला दिन, जब गांधी ने हमेशा के लिए अपनी आंखें तो बंद कर ली लेकिन वह एक ऐसा अध्याय खोल गए जिसका हम सभी हर दिन दर्शन करते हैं।

Updated on: 02 Oct 2016, 06:35 PM

नई दिल्ली:

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। यानी एक अकेला नेता जो अपने नैतिक बल के बदौलत न सिर्फ ब्रिटिश साम्रराज्य की चूलें हिलाई बल्कि आजाद भारत में उन्होंने कट्टर धार्मिक, परंपरावादी और कठमुल्लों के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन छेड़ी। लेकिन 30 जनवरी 1948, वो काला दिन, जब गांधी ने हमेशा के लिए अपनी आंखें तो बंद कर ली लेकिन वह एक ऐसा अध्याय खोल गए जिसका हम सभी हर दिन दर्शन करते हैं। चाहे वह शांति-स्वच्छता की बात हो, नेताओं के भाषण की बात हो या फिर सादगी भरी जिंदगी की हर समय हम उन्हें याद करते हैं।

हमेशा 'अहिंसा परमो धर्म:' (अहिंसा सबसे बड़ा धर्म) के रास्ते पर चलने वाले गांधी की 30 जनवरी 1948 को राजधानी दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर हत्या कर दी गई। मारने वाला था एक धर्मांद्ध नाथूराम गोडसे। राष्ट्रपिता के मौत की खबर सुनते ही पूरा देश शोक में डूब गया। देश ही नहीं सीमा पार से लोगों की भीड़ दिल्ली में जुटने लगी।

इस शोक के अवसर पर महान साहित्यकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था कि गांधी की हत्या बताती है कि 'अच्छा होना कितना खतरनाक है।' मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था, 'हिंदू समाज को गहरी क्षति पहुंची है।' किंग जॉर्ज षष्टम ने संदेश भेजा, 'गांधी की मौत से भारत ही नहीं संपूर्ण मानवता का नुकसान हुआ है।'

बापू की मौत के समय देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति थी। हिंदू-मुस्लिम-सिख की लड़ाई चरम पर थी। जिसे शांत कराने का प्रयास महात्मा गांधी ने कभी बंगाल के नोआखली जाकर, कभी दिल्ली, कभी पंजाब तो कभी बिहार जाकर किया। जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए लेकिन यही प्रयास उनके मौत का कारण भी बना। तब तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने कहा था, 'यह हमारे लिए शर्म की बात है कि दुनिया के सबसे महान आदमी को अपनी जान की कीमत उस पाप के लिए चुकानी पड़ी जो पाप हमने किया है।'

बापू का वो आखिरी दिन

> हमेशा की तरह महात्मा गांधी 30 जनवरी 1948 को तड़के साढ़े तीन बजे उठे। प्रार्थना की, करीब 2 घंटे तक पार्टी से जुड़े काम को निपटाकर बापू फिर छह बजे सोने चले गए।

> फिर वह दोबारा सुबह आठ बजे उठे। अखबारों पर नजर दौड़ाने के साथ उन्होंने नास्ता किया।

> नास्ते के बाद वह हर दिन की तरह लोगों ने मिलने-जुलने लगे। उन्होंने डरबन से आए अपने पुराने साथी रुस्तम सोराबजी से मुलाकात की।

> शाम के करीब 4 बजे सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी बेटी मनीबेन के साथ गांधी जी मुलाकात की। यह मुलाकात करीब एक घंटे तक चली।

> प्रार्थना सभा के लिए देर हो रहे गांधी ने पटेल से मुलाकात खत्म होते ही चप्पल पहनी और मनु और आभा के साथ प्रार्थना सभा की ओर चल पड़े। और वह करीब 10 मीनट की देरी से वहां पहुंचे।

> लेकिन वहीं मौजूद था गांधी जी के मौत का काल नाथूराम गोडसे। गोडसे पहले गांधी जी की तरफ झुका तो उनके साथ मौजूद मनु को लगा कि वह गांधी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है। वहीं आभा ने चिढ़कर कहा कि उन्हें जाने दिया जाए। लेकिन गोडसे ने मनु को धक्का दिया और उनके हाथ से माला और पुस्तक नीचे गिर गई।

> जबतक वह उठाने के लिए नीचे झुकीं तभी गोडसे ने पिस्टल निकाला और तीन गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं। उनके मुंह से निकला, "राम.....रा.....म।"

> गांधी की हत्या के कुछ देर के भीतर वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन वहां पहुंचे। गांधी की मौत की खबर आग की तरह फैली। अगले दिन सुबह दिल्ली की सड़कों पर केवल लोगों की भीड़ दिखाई दे रही थी। जिसकी आंखों में आंसू था। देश ने राष्ट्रपिता को जो खोया था।

> उनका अंतिम संस्कार यमुना के तट पर किया गया। जो आज राजघाट के नाम से मशहूर है।

महात्मा गांधी के महान योगदान को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। 15 जून 2007 के संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के अनुसार अंतरराष्ट्रीय अंहिसा दिवस शिक्षा एवं जन जागरुकता के माध्यम से अहिंसा के संदेश को प्रसारित करने का अवसर है।