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एक्सक्लूसिव: भारतीय हॉकी को फर्श से अर्श तक ले जाने वाले जूनियर हॉकी टीम के कोच हरेंद्र सिंह ने खोले जीत के कई राज़

पेश है जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम के कोच हरेंद्र सिंह से बातचीत के कुछ एक्सक्लूसिव अंश-

Updated on: 10 Jan 2017, 02:34 PM

नई दिल्ली:

जब कोई टीम किसी खिताब को नाम करती है तो कप्तान और खिलाड़ियों की जमकर वाहवाही होती है। चारों तरफ इनके चर्चे होते है लेकिन एक ऐसा नाम जो टीम को उस मुकाम तक पहुंचाने के लिए सबसे अहम किरदार निभाता है वह होता है उस कोच का। जो पर्दे के पीछे रह कर टीम का मार्गदर्शन करता है। 15 साल बाद जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप का खिताब जीतने वाली जूनियर भारतीय हॉकी टीम के पीछे उस शख्स का नाम है हरेंद्र सिंह।

जिसने पर्दे के पीछे रहते हुए टीम को विश्व चैपिंयन बनाया। 2013 में खेले गए जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में 13वें स्थान पर रहने वाली टीम को अगले ही वर्ल्ड कप में फर्श से अर्श तक पहुंचाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। जोश और जज्बे से भरपूर जूनियर हॉकी टीम ने 2001 के 15 साल बाद कोच हरेंद्र सिंह की कोचिंग में विश्व कप का खिताब जीता।

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भारत की जीत की इस कहानी की शुरुआत ढ़ाई साल पहले हुई थी जब हरेंद्र सिंह नई दिल्ली के ध्यान चंद्र स्टेडियम में जोश से भरपूर युवा टीम को कोचिंग देने के लिए ज्वाइन किया। वह सिर्फ एक भाषा को जानते थे वह थी हॉकी की भाषा। पेश है जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम के कोच हरेंद्र सिंह से बातचीत के कुछ एक्सक्लूसिव अंश-

जीवन का यादगार पल

मैं जिस जगह से आया हूं वहां हॉकी के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। तो राष्ट्रीय स्तर पर आने के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ा। 1990 में भारतीय जर्सी को पहनकर राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व करना जीवन का सबसे यादगार पल है।

धनराज पिल्लै ने की मदद

मुझे खेलने के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। जिसके बाद मैंने भारतीय कोचिंग सिस्टम में कुछ बदलाव के बारें में सोचा। मैंने भारतीय हॉकी के परंपरागत ढर्रे में कुछ बदलाव के बारें में निश्चय किया। भारतीय हॉकी टीम पिछले काफी समय से जूझ रही थी कुछ समस्या से जूझ रही थी उसमें बदलाव करते हुए खेल के मॉर्डन स्टाइल को अपनाया। करियर और कोचिंग में मदद करने के लिए मैं धनराज पिल्लै और अपने परिवार को धन्यवाद देना चाहूंगा। 

जूनियर हॉकी टीम की जीत का राज

टीम में बेहद फोकस और अनुशासन था। टीम के सभी खिलाड़ियों में जीत की भूख थी, हर कोई बस जीत के लिए खेलना चाहता था। यात्रा महत्वपूर्ण होती है ना कि परिणाम। सबकी मेहनत और लगन रंग लाई जिसकी परिणाम आप सबके सामने है।

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उन्होंने आगे बताया कि हॉकी इंडिया और साई की मदद के बिना यह मुमकिन नहीं था। उन्होंने खिलाड़ियों को 3सी3 का मंत्र दिया यानि कूल, काम और कंपोस्ड (Cool, Calm and Composed) जो भारतीय टीम की जीत में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ।

कौन होगा अगला भारतीय सितारा

मैं किसी भी स्टार खिलाड़ी कॉन्सेप्ट में विश्वास नहीं रखता हूं। सफलता पूरे टीम की मेहनत से आती है। सभी खिलाड़ियों ने बेहतरीन रोल अदा किया। खिलाड़ियों ने एक होकर खेला और टीम को सफलता का स्वाद चखाया।

टोक्यो ओलंपिक अगला लक्ष्य

जब मैंने पदभार संभाला तब हम अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में 13वें स्थान पर थे। आज हम विश्व की टॉप 10 टीम में शामिल हैं। अगर हम जीत का सिलसिला बरकारार रखने में कामयाब रहे तो हम टोक्यो ओलंपिक और 2018 वर्ल्ड कप हॉकी में पदक जीतने के मजबूत दावेदार होंगे।

भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करना गर्व की बात

यह पूछे जाने पर कि क्या भारतीय हॉकी खिलाड़ियों को जीत के बाद पर्याप्त ईनाम मिलता है इस पर कोच ने कहा कि एक खिलाड़ी एक जवान के समान है जिसका मुख्य उद्देश्य देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है। जब कोई खिलाड़ी भारतीय टीम का प्रतिनित्धव करता है वह उसके लिए सबसे बड़े गर्व की बात है ना कि नाम और राशि।

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