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सेना दिवस: जानें 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहरेदारी से शुरु, तीसरी सबसे बड़ी सेना बनने का सफ़र

फील्ड मार्शल, पहले आर्मी इन चीफ के एम करियप्पा के अदम्य वीरता, दृढ संकल्प, पराक्रम, साहस और समर्पण की जलाई आग देश के सैनिकों के दिलों में बदस्तूर जल रही है।

Updated on: 15 Jan 2018, 09:47 AM

नई दिल्ली:

भारतीय सेना जिसकी आन बान शान के हम कायल है, जिसकी देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चा होती है। जिसकी जांबाजी के कसीदे पढ़े जाते हैं। जिसके जागने से हम चैन की नींद सो पाते हैं, जो सजग प्रहरी बन हर दिन, हर रात, हर हाल में देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। आज इन्हीं जांबाजों का दिन है।

15 जनवरी यह तारीख अन्नतकाल तक ऐसे ही मनाती जाती रहेगी। यह तारीख जिसने देश की सेना को आज़ादी दिलाई, यह तारीख जिसने और मज़बूत और बेहत और आधुनिक भारतीय आर्मी की आगे की राह प्रशस्त की। यह वो तारीख है जिसे हम हर साल भारतीय सेना दिवस के रुप में मनाते हैं। 

यह वो दिन है जब दिल्ली समेत सेना के सभी मुख्यालयों पर परेड का आयोजन होता है और पूरे दमखम के साथ भारतीय सेना जांबाज हौसले, जोश और जुनून का प्रदर्शन करती है। 

इतिहास 

68 साल से देश की सेवा में लगी भारतीय सेना का अगर इतिहास देखें तो यह करीब 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से जुड़ा हुआ मिलता है। शुरूआत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक ठिकानों की सुरक्षा में तैनात भारतीय कामगारों के रुप में शुरु हुआ भारतीय सेना का सफर कई रास्तों से होकर गुज़रा है। जैसे ही ब्रिटिश हुकुमत ने हिंदुस्तान में अपनी जड़ें फैलानी शुरु की वैसे ही भारतीय सेना का भी विस्तार होता चला गया। 1748 में मेजर जनरल श्रींगर लॉरेन्स की कमान में भारतीय सैनिक ब्रिटिश हुकुमत के लिए अपने काम को अंजाम देने लगे।

किचनर काल

1903 में लॉर्ड कर्जन के काल में किचनर को भारत का कमांडर इन चीफ नियुक्त किया गया। इस दौरान सेना में अहम सुधार हुए। इसमें प्रेसीडेंसी की तीनों सेनाओं को एकीकृत कर संयुक्त सैन्य बल बनाया गया। उच्च स्तरीय सेनाओं के साथ ही 10 आर्मी डिविजनों का भी गठन किया गया।

प्रथम विश्व युद्ध में सेना  

1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना के पास करीब 1,50,000 सैनिक थे। जबकि कुल सैनिक शक्ति का पांचवा हिस्सा घुड़सवार सैनिकों का था। प्रथम विश्व युद्द में ब्रिटिश इंडिया के लिए लड़ रही भारतीय सेना के पास तोपें नहीं थी।इसीलिए 1914-18 के बीच तोपें 10 गुना बढ़ाई गई। प्रथम विश्व युद्ध तक भारतीय अधिकारियों के लिए कमीशन्ड पद नहीं थे। लेकिन कांग्रेस की पुरजोर मांग पर 1919 में इंदौर के मिलट्री स्कूल से भारतीय अधिकारियों का पहला बैच निकला। इनमें से बाद में 33 कैडेट्स को 1920 में किंग्स कमीशन के लिए चुना गया। प्रथम फील्ड मार्शल और आज़ाद भारत के पहले आर्मी प्रमुख के एम करियप्पा इसी बैच के सदस्य थे।

पहली सैन्य अकादमी

1920 के दशक में चीफ ऑफ स्टॉफ जनरल एंड्रयू की अध्यक्षता में गठित कमेटी में सैन्य अकादमी खोलने की सिफारिश की गई। इस कमेटी में पंडित मोती लाल नेहरु और मोहम्मद अली जिन्ना भी सदस्य थे। इसके बाद 1 अक्टूबर 1932 को देहरादून में इंडियन मिलट्री एकेडमी यानि IMA की स्थापना की गई। यह एकेडमी आज भी भारतीय सेना के नए अधिकारियों को ट्रेनिंग देती है।

दूसरा विश्व युद्ध में सेना 

1939 में हुए दूसरे विश्व युद्ध के वक्त भारतीय सेना में करीब 1,94,373 सैनिक थे। अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए भारतीय सेना की तारीफ दुनिया भर में हुई और भारतीय सेना को दूसरे विश्व युद्द में साहस और वीरता के लिए करीब 6300 पुरस्कार मिले थे। जिनमें से 4800 सिर्फ वीरता के लिए थे और इनमें 31 विक्टोरिया क्रॉस, 4 जॉर्ज क्रॉस शामिल थे।

पहला स्वतंत्रता आंदोलन

कहा जाता है कि ब्रिटिश इंडिया के लिए काम करते हुए भारतीय सैनिकों में विद्रोह के स्वर फूटने लगे थे और पहली बार 1857 में बैरकपुर और बहराम पुर में सैनिक असंतोष के बाद मेरठ में भी सैनिकों ने विद्रोही रुख अख़्तियार कर लिया। इसे ही भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। यही वजह थी कि नवंबर 1858 में ख़तरे को भांपते हुए ब्रिटेन की महारानी ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथों में ले लिया था और सेना की आर्टिलियरी इकाइयों को शाही तोपखाने में मिला दिया।

ब्रिटिश सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय सेना में स्वतंत्रता आंदोलन के बीज पड़ चुके थे। ब्रिटिश राज के लिए समर्पण के साथ काम करते हुए भी भारतीय सैनिक आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। आज़ादी के लिए अप्रत्यक्ष रुप से भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज़ाद हिंद फौज जैसी देशभक्त सेनाओं में भर्ती लेने के लिए करीब 20 हज़ार सैनिक सेना से ही गए थे। वहीं, 1930 में हवलदार मेजर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में रॉयल गढ़वाल रायफल्स ने देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था। इससे पता चलता है कि भारतीय सेना ने आज़ादी की लड़ाई में भी अहम योगदान दिया।

आज़ादी के वक्त भारतीय सेना में करीब 2.5 लाख सैनिक थे। जो आज बढ़कर 13,25,000 हो चुकी है और संख्या के हिसाब से यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना बन चुकी है। लेकिन भारतीय सेना का जोश और जज़्बा इसे दुनिया की सबसे उत्कर्षठ और अदम्य साहसी सेना बनाते है।