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नीतीश का दावा गलत, शराबबंदी के बाद बिहार में बढ़े अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसे मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी

बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध में आई गिरावट को लेकर नीतीश कुमार का दावा झूठा साबित हुआ है। शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसी वारदातों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।

Updated on: 13 Jan 2017, 07:08 AM

highlights

  • बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध में आई गिरावट को लेकर नीतीश कुमार का दावा झूठा साबित हुआ है
  • शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसी वारदातों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है
  • शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसे अपराधों की संख्या में 13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है

New Delhi:

बिहार में शराबबंदी के बाद अपराध में आई गिरावट को लेकर नीतीश कुमार का दावा झूठा साबित हुआ है। शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसी वारदातों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। 

शराबबंदी के 30 दिनों के बाद नीतीश ने दावा किया था कि अपराधों में 27 फीसदी तक की कमी आई है। यह आंकड़ा नीतीश ने अप्रैल, 2015 से अप्रैल 2016 के बीच के अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के आधार पर दिया था।

शराबबंदी के नौ महीनों के बाद बिहार में अपराध, हत्या, अपहरण और दंगे जैसे संज्ञेय अपराधों की संख्या में 13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। संज्ञेय अपराध के मामलों में पुलिस को जांच के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की जरूरत नहीं होती है।

इंडिया स्पेंड के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2016 से अक्टूबर 2016 के बीच बिहार में ऐसे अपराधों की संख्या 14,279 से बढ़कर 16,153 हो गई। शराबंदी के ठीक एक महीने बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में अपराध में 27 फीसदी कमी आने का दावा किया था।

नीतीश कुमार ने चुनावी वादे पर अमल करते हुए अप्रैल 2016 में बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बिहार में शराबबंदी का वादा किया था।
हालांकि आंकड़ों के मुताबिक बिहार में नए कानून के बाद भी अपराध में कोई कमी नहीं आई है। शराबबंदी के नए कानून को लेकर पटना हाई कोर्ट भी सरकार को फटकार लगा चुका है। मौजूदा कानून के ऐसे कई प्रावधान हैं जो सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हैं।

इंडियास्पेंड की मई, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, इन आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि इस दौरान अपराधियों को सजा दिए जाने में 68 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। 2010 में जहां 14,311 अपराधियों को सजा सुनाई गई, वहीं 2015 में सिर्फ 4,513 अपराधियों को सजा दी गई। इसी अवधि में संज्ञेय अपराधों में 42 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
शराबबंदी के दौरान हत्या, दुष्कर्म, अपहरण और दंगे-फसाद जैसे संगीन अपराधों में वृद्धि हुई है।

इंडियास्पेंड की मई, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार ही कम आबादी वाले अपेक्षाकृत धनी राज्यों, जैसे गुजरात, केरल, राजस्थान और मध्य प्रदेश की अपेक्षा बिहार में अपराध दर कम रहा है, हालांकि इसके पीछे कारण अपराधों की शिकायत न करना रहा।

पटना उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2016 में शराबबंदी के फैसले को रद्द कर दिया था और बिहार आबकारी (संशोधन) विधेयक-2016 को अवैध करार दिया था। नए विधेयक में शराब का भंडार करने या सेवन करने का अपराधी पाए जाने पर परिवार के सभी वयस्क सदस्यों के खिलाफ जेल की सजा का प्रावधान रखा गया था।

शराबबंदी का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 10 वर्ष तक की जेल और 10 लाख रुपये तक की सजा का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि अदालतों द्वारा सरकार के किसी विधेयक पर रोक लगाया जाता है, तो विधानमंडल की मंजूरी से उस पर कानून बनाया जा सकता है, जिससे कि अदालत उसमें हस्तक्षेप न कर सके। बिहार में भी यही हुआ।

पटना उच्च न्यायालय का आदेश आने के दो दिनों के भीतर बिहार सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर नया कानून बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम-2016 बना दिया।