सुप्रीम कोर्ट में बजट टालने की याचिका पर सुनवाई अब 23 जनवरी को, कानून को लेकर जारी है उलझन
सरकार ने इस बार आम बजट को एक फरवरी को पेश करने की बात कही है। जबकि विपक्षी दलों की मांग है कि पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव को देखते हुए आम बजट को टाला जाए।
highlights
- याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने जवाब देने के लिए मांगा और समय
- पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में बजट को रोकने को लेकर कोई प्रावधान नहीं
नई दिल्ली:
आम बजट को मार्च के बाद पेश करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 23 जनवरी तक के लिए टाल दिया है। इस मसले पर याचिका दायर करने वाले वकील मनोहर लाल शर्मा ने कोर्ट के सवाल पर जवाब देने के लिए और ज्यादा समय की मांग की है।
दरअसल, 13 जनवरी को हुई पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि वह कानून में इस तरह का कोई प्रावधान बताएं जिसके चलते सरकार को बजट समय से पहले पेश करने से रोका जा सके।
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता वकील एम.एल.शर्मा से कानून के उन प्रावधानों का उल्लेख करने को कहा था जिससे केंद्र सरकार को एक फरवरी को बजट पेश करने से रोका जा सके।
बता दें कि केंद्र सरकार ने इस बार आम बजट को एक फरवरी को पेश करने की बात कही है। जबकि विपक्षी दलों की मांग है कि पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव को देखते हुए आम बजट को टाला जाए। हाल में चीफ जस्टिस के पद पर नियुक्त हुए जगदीश सिंह खेहर की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है।
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बजट को टालने की याचिका वकील मनोहर लाल शर्मा की ओर से दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल की शुरुआत में बजट को मार्च तक टालने की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार कर दिया था।
इसके बाद कैबिनेट सचिव ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सरकार के रूख की जानकारी दी थी। दरअसल, चुनाव आयोग ने विपक्षी पार्टियों के विरोध को देखते हुए सरकार से अपना मत बताने को कहा था।
इसी पर सरकार ने साफ किया कि आम बजट संवैधानिक प्रक्रिया है और इसका महत्व केवल कुछ राज्यों तक सीमित न रहकर पूरे देश के लिए है। दूसरी ओर, विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार बजट के जरिए वोटरों को लुभाने का प्रयास कर सकती है।
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वहीं, सरकार का मानना है कि बजट को पेश करना जरूरी है ताकि सभी क्षेत्रों में जरूर बदलाव और नई योजनाएं 1 अप्रैल से लागू हो जाएं।
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