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सेल्फी लेने की लत युवाओं को बना रही है मानसिक रोगी, लोग लगा रहे हैं अस्पतालों के चक्कर

सेल्फी की वजह से होने वाली एक बीमारी के मरीज दिल्ली के अस्पतालों में चक्कर लगा रहे हैं। इस बीमारी का नाम है ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर।

Updated on: 11 Jan 2017, 09:18 AM

नई दिल्ली:

आज के दौर में सेल्फी लेना आम बात हो गई है। क्या बच्चा, क्या बड़ा और क्या बूढ़ा हर कोई अपने कैमरे एक अदद सेल्फी की तलाश में रहता है। लेकिन सेल्फी लेना बेहद खतरनाक भी साबित हो रहा है। सेल्फी की वजह से होने वाली एक बीमारी के मरीज दिल्ली के अस्पतालों में चक्कर लगा रहे हैं। इस बीमारी का नाम है ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर।

दिल्ली के एम्स में इस बीमारी से पीड़ित तीन ऐसे मरीजों की पहचान हुई है। साथ ही गंगाराम अस्पताल में तो हर महीने चार-पांच ऐसे टीन एजर्स इलाज के लिए पहुंच रहे हैं, जिनमें सेल्फी से जुड़ी बीमारी देखी जा रही है। यह बीमारी ज्यादातर लड़कियों में पाई जा रही है। शहरों में यह बीमारी तेजी से युवाओं को अपने प्रकोप में ले रही है। इंटरनेशनल स्टडी के अनुसार 60 प्रतिशत महिलाएं इससे अनजान होती हैं।

क्या होता है ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर

एम्स के सायकायट्री डिपार्टमेंट के डॉक्टर नंद कुमार ने कहा कि यह सच है कि हाल में तीन ऐसी लड़कियों का इलाज एम्स में हुआ है, जिसमें सेल्फीसाइटिस की प्रॉब्लम देखी गई थी। सेल्फीसाइटिस एक ऐसी कंडीशन होती है, जब इंसान अगर कोई सेल्फी नहीं ले या उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करे तो उसे बेचैनी होने लगती है। इसे ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर कहा जाता है।

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क्या होते हैं इसके लक्षण

- कुछ लोग नहीं चाहते हुए भी लोग सेल्फी से खुद को रोक नहीं पाते हैं।
- जरूरत से ज्यादा सेल्फी लेने की चाहत बॉडी में डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर नाम की बीमारी को भी जन्म देती है।
- इस बीमारी से लोगों को लगने लगता है कि वे अच्छे नहीं दिखते हैं। माना जाता है कि सेल्फी के दौर ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की संख्या बढ़ा दी है।
- जब एक इंसान को अपने रोज के काम में कोई एक आदत बाधा डालने लगे तो समझ में आता है कि वह ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर का शिकार है।
- पढ़ने वाले को पढ़ाई में मन नहीं लगे, काम वाले को काम में मन नहीं लगे, तो यह बीमारी की शुरुआत है। अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह बढ़ती जाती है।

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इस बारे में गंगाराम अस्पताल की सायकायट्रिस्ट डॉक्टर रोमा कुमार ने कहा कि हर महीने ऐसे चार-पांच मरीज आते हैं, जो टीनएजर्स होते हैं। उनमें सेल्फी की लत देखी जाती है। सेल्फी लेना एक नॉर्मल बात है, लेकिन बार-बार सेल्फी लेना और खुद को प्रोजेक्ट करना एडिक्शन बन जाता है।