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एमजीआर फिल्मों के हीरो ही नहीं राजनीति में जयललिता के गुरु भी थे

उनके फिल्मी करियर और राजनीति में एम जी रामचंद्रन यानि एमजीआर ने काफी योगदान दिया। एमजीआर के साथ जयललिता ने 28 फिल्मों में काम किया।

Updated on: 06 Dec 2016, 02:08 AM

नई दिल्ली:

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता राजनीति में आने से पहले फिल्मों में काम करती थीं और दक्षिण भारतीय फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री थीं। उनके फिल्मी करियर और राजनीति में एम जी रामचंद्रन यानि एमजीआर ने काफी योगदान दिया। एमजीआर के साथ जयललिता ने 28 फिल्मों में काम किया।

एमजीआर और जयललिता की कई फिल्में सुपर हिट भी रहीं जिनमें अयिराथिल ओरुवन, रहस्य पुलिस 115, एंगल थंगम और चंद्रोदयम जैसी कई फिल्में हैं जो हिट रहीं।

एमजीआर ने न सिर्फ फिल्मों में बल्कि राजनीति में भी जयललिता के गुरू रहे। एमजीआर के फिल्मों से राजनीति में आने के बाद जयललिता भी राजनीति में आ गईं। या यूं कहें एमजीआर उन्हें भी राजनीति में अपने साथ लेकर आए।

अपने राजनीतिक जीवन को लेकर जयललिता भी मानती रही हैं कि एमजीआर ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने जयललिता को राजनीति में लाया। एमजीआर 1977 से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे। 1982 में एमजीआर ने एआईएडीएमके गठित की जयललिता को उसका सदस्य बनाया गया। 1983 में एआईएडीएमके की प्रचार का काम उन्हें दिया गया और इसी साल उन्हें तिरुचेंदूर विधानसभा के लिये उन्हें उम्मीदवार घोषित किया गया।

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1984 में एमजीआर ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। दोनों के संबंध राजनीति से इतर भी रहे और इन संबंधों को लेकर विवाद भी काफी हुआ। तत्कालीन अखबारों के अनुसार दोनों के संबंध काफी गहरे रहे। ऐसा माना जाता है कि इन संबंधों के कारण ही एमजीआर ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित किया। हालांकि कि दोनों के संबंधों को लेकर छपी खबरों का सचाई पर संशय भी है।

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1987 में एमजीआर के निधन के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई और एक धड़ा जयललिता को और दूसरा धड़ा एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन के समर्थन में आ गया। तल्खी इतनी थी कि एमजीआर के अंतिम संस्कार के समय उन्हें उस एमजीआर का शव ले जा रहे गाड़ी से उतार दिया गया। इसके बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'इसके लिये उनके परिवार के ही सदस्य का हाथ था। एक और धड़ा था जो मुझे उनकी अंत्येष्टि से भी दूर रखना चाहता था।'

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भारी विरोध के बाद भी जयललिता को 1989 के विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला और वो तमिलनाडु की पहली महिला नेता विपक्ष बनीं। लेकिन सत्तारूढ़ दल डीएमके के सदस्यों और अन्ना द्रमुक के सदस्यों के बीच सदन में हाथापाई हुई। जयललिता ने विधानसभा से बाहर आकर कहा कि वे मुख्यमंत्री बन कर ही सदन में लौटेंगी वर्ना नहीं। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में जयललिता ने कांग्रेस से चुनावी समझौता किया और 234 में से 225 सीटें जीत दर्ज़ की और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं।

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एक बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, 'मेरी ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्से पर मेरी माँ का प्रभाव रहा है और ज़िंदगी के दूसरे तिहाई हिस्से पर एमजीआर का। मेरी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक तिहाई हिस्सा ही मेरा है। मुझे इसी में बहुत सारी ज़िम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरा करना है।'