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सोली सोराबजी ने पूछा, क्या बस खड़े होकर होता है राष्ट्रगान का सम्मान

सोली सोराबजी ने कहा है कि ऐसे मसलों में दखल देना अदालत का काम नहीं है।

Updated on: 02 Dec 2016, 02:25 PM

नई दिल्ली:

पूर्व अटॉर्नी जनरल और जाने-माने वकील सोली सोराबजी ने कहा है कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाये जाने का आदेश न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ऐसे मसलों में दखल देना अदालत का काम नहीं है। उनके हिसाब से यह फैसला 'पर इंक्यूरियम' है मतलब ऐसा आदेश जो उचित प्राधिकार की उपेक्षा करता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगली सुनवाई में बेंच इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी।

सोराबजी ने सवाल किया कि क्या लोग खड़े होकर ही राष्ट्रगान के लिए सम्मान दिखा सकते हैं। हो सकता है कि कोई शारीरिक रूप से अक्षम हो और खड़ा ना हो सके। कई लोग अपनी धार्मिक और बौद्धिक वजहों से भी खड़ा ना होने का निर्णय कर सकते हैं।

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उन्होंने कहा कि एक बात तो यह भी है कि यह आदेश लागू कैसे होगा। कौन गिनेगा कि राष्ट्रगान के दौरान कितने लोग खड़े हैं और कितने बैठे हुए हैं। अगर कोई आपात परिस्थिति आ जाय या किसी को तत्काल ही शौचालय जाना हो तो क्या होगा।

सोराबजी ने कहा कि बेंच ने बिजॉय एमानुएल केस को भी रेफर नहीं किया। इस केस में हुआ कुछ यूं था कि केरल में तीन बच्चों को यह कहकर निकाल दिया गया था कि उन्होंने राष्ट्रगान नहीं गाया। बच्चों ने इसकी वजह बताई कि उनका धार्मिक विश्वास किसी और गाने की इजाज़त नहीं देता। इस पर अदालत ने कहा था कि क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत राष्ट्रगान गाना ज़रूरी हो। अदालत ने बच्चो को वापस एडमिशन देने का फ़ैसला सुनाया था।