इलाहाबाद में डॉक्टर की हत्या के बाद फिर उठा सवाल, अखिलेश अपने शासन में क्यों नहीं लगा सके अपराध पर अंकुश?
सपा के शासन में हमेशा अपराध के बढ़ने की बात कही जाती रही है। अखिलेश शायह इस बार अलग छवि बनाना चाहते थे। हालांकि, मुख्यमंत्री रहते वह राज्य में अपराध पर बहुत अंकुश नहीं लगा सके।
नई दिल्ली:
जब भी उत्तर प्रदेश में चुनाव का समय आता है, राज्य में अपराध एक बड़ी चर्चा का विषय बन जाता है। इलाहाबाद में गुरुवार को शहर के जानेमाने डॉक्टर ए के बंसल की गोली मारकर हत्या के बाद एक बार फिर यूपी में क्राइम को लेकर बातें होने लगी हैं।
डॉक्टर बंसल की हत्या के कारणों का अभी तक पता नहीं चल सका है। लेकिन बताया यह भी जा रहा है कि उनके बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से बेहद करीबी रिश्ते थे। हत्या राजनीतिक है या डॉक्टर बंसल किसी आपसी रंजिश का शिकार हुए, यह जांच के बाद ही पता चल सकेगा लेकिन राज्य में क्राइम को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है।
वैसे, उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी में जो घमासान मचा है उसकी जड़ भी कहीं न कहीं अपराध और आपराधिक छवि ही है। अखिलेश यादव ने अतीक अहमद का विरोध किया और कौमी एकता दल के मुख्तार के बारे में कहा कि उन्हें ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। हालांकि, अब भले ही अखिलेश का अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी का विरोध उन्हें एक नए रास्ते पर ले आया है।
सपा के शासन में हमेशा राज्य में अपराध के बढ़ने की बात कही जाती रही है। अखिलेश संभवत: इस बार पार्टी की इससे अलग छवि बनाना चाहते थे। हालांकि, मुख्यमंत्री रहते वह राज्य में अपराध पर बहुत अंकुश नहीं लगा सके। साढे तीन मुख्यमंत्रियों के बीच यूपी की राजनीति उसी पुराने अपराधिकरण के ढर्रे पर पांच साल चलती रही।
यूपी में अपराध का आंकड़ा
राज्य में आकड़ों के लिहाज से अगर अपराध दर की बात करें तो बेहद अजीबोगरीब स्थति नजर आती है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आने वाले अपराधों का आंकड़ा देखने से पता चलता है कि यूपी में क्राइम रेट बहुत कम है। पिछले साल प्रति एक लाख लोगों पर आईपीसी के तहत 112 मामले दर्ज किए गए।
यह दिल्ली, केरल, मध्य प्रदेश, असम, हरियाणा जैसे राज्यों से बहुत नीचे है। इस मामले में दिल्ली सबसे ऊपर रहा। दिल्ली में यह आंकड़ा 917 का रहा।
हालांकि पूरी कहानी तब उलट जाती है जब आप स्पेशल और स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज होने वाले मामलों की भी गिनती शुरू कर देते हैं। फिर यही आंकड़ा उछलकर प्रति एक लाख 1,293 तक पहुंच जाता है। यह आईपीसी के तहत दर्ज मामलों से 10 गुना ज्यादा है। दिल्ली में यही क्राइम रेट 958 है।
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यह सभी आंकड़े 2015 के हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठते रहे हैं कि क्या यूपी पुलिस आंकड़ों में ठीक दिखने के लिए आईपीसी के तहत कम मामलों को दर्ज करती है या एफआईआर नहीं करती?
पिछले साल आई कैग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यूपी पुलिस जानबूझकर लड़कियों के अपहरण और रेप के कई मामले दर्ज नहीं करती।
उत्तर प्रदेश में अपराध के आंकड़ों के जिस तस्वीर को दिखाने की कोशिश हो रही है, वह कही ज्यादा अलग और चौंकाने वाला है। NCRB के मुताबिक पिछले साल हर रोज यूपी में 250 से अधिक छोटी-मोटी और संगीन आपराधिक घटनाएं घटीं।
यही नहीं, उत्तर प्रदेश में हर रोज 24 रेप, 21 रेप की कोशिश के मामले, 13 हत्या, 33 अपहरण, 19 दंगे 136 चोरी के मामले दर्ज होते हैं।
पिछले साल यूपी सभी तरह के अपराधों को मिला कर टॉप पर रहा। आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार साल में 93 लाख से ज्यादा आपराधिक घटनायें हुई हैं। सिर्फ लखनऊ में एक साल में 2.78 लाख आपराधिक घटनायें हुईं।
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