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उपहार अग्निकांड में इंसाफ़ मिलते मिलते लग गए 20 साल, हादसे में 59 लोगों की जान गयी थी

अदालत ने सिनेमा के मालिकों गोपाल अंसल और सुशील अंसल को अग्निकांड के लिए दोषी माना और हर्जाना देने का आदेश दिया।

Updated on: 09 Feb 2017, 01:08 PM

नई दिल्ली:

साउथ दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में शुक्रवार 13 जून, 1997 को 'बॉर्डर' फिल्म के प्रदर्शन के दौरान आग लग गई थी। इस घटना में 59 लोगों की जान चली गई थी और सौ से ज़्यादा लोग घायल हो गए थे। जांच के दौरान ऐसा पाया गया कि इस घटना के पीछे सिनेमा मालिकों की जबरदस्त लापरवाही थी। सिनेमा हॉल में क्षमता से अधिक लोग बैठे थे। इसके साथ ही सिनेमा हॉल में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी नहीं किये गये थे।

आग सिनेमा हाल के बेसमेंट में रखे जनरेटर से शुरू हुई थी और धीरे-धीरे पूरे हॉल में फैल गई। हादसे के बाद हॉल में भगदड़ मची और 59 लोग आग में जिंदा जल गए। मरने वालों में महिलाओं और छोटे बच्चों की संख्या अधिक थी।

अदालत ने सिनेमा के मालिकों गोपाल अंसल और सुशील अंसल को अग्निकांड के लिए दोषी माना और हर्जाना देने का आदेश दिया।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल अंसल को एक साल कैद की सज़ा सुनाई। गोपाल अंसल चार महीने जेल में काट चुके हैं, यानी अब उन्हें आठ महीने और जेल में बिताने होंगे। वहीं सुशील अंसल अपनी जेल की सजा पूरी कर चुके हैं, लिहाजा उन्हें अब जेल नहीं भेजा जाएगा।

एक नज़र इस भीषण हादसे की पूरी कहानी पर

  • 13 जून 1997- उपहार सिनेमा में बार्डर फिल्म के प्रसारण के दौरान आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई।
  • 22 जुलाई 1997- पुलिस ने उपहार सिनेमा मालिक सुशील अंसल व उसके बेटे प्रणव अंसल को मुंबई से गिरफ्तार किया।
  • 24 जुलाई 1997- मामले की जांच दिल्ली पुलिस से सीबीआइ को सौंपी गई।
  • 15 नवंबर 1997- सीबीआइ ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल सहित 16 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की।
  • 10 मार्च 1999- सेशन कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हुआ।
  • 27 फरवरी 2001- अदालत ने सभी आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या, लापरवाही व अन्य मामलों के तहत आरोप तय किए।
  • 23 मई 2001- गवाहों की गवाही का दौर शुरू हुआ।
  • 4 अप्रैल 2002- दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत को मामले का जल्द निपटारा करने का आदेश दिया।
  • 27 जनवरी 2003- अदालत ने अंसल बंधुओं की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने उपहार सिनेमा को वापस उसे सौंपे जाने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि यह केस का अहम सबूत है और मामले के निपटारे तक सौंपा नहीं जाएगा।
  • 24 अप्रैल 2003- हाईकोर्ट ने 18 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ितों के परिवार वालों को दिए जाने का आदेश जारी किया।
  • 4 सितंबर 2004- अदालत ने आरोपियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की।
  • 5 नवंबर 2005- बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही शुरू हुई।
  • 2 अगस्त 2006- बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही पूरी।
  • 9 अगस्त 2006- सेशन कोर्ट जज ममता सहगल ने उपहार सिनेमा का निरीक्षण किया।
  • 14 फरवरी 2007- केस में अंतिम जिरह शुरू हुई।
  • 21 अगस्त 2007- उपहार कांड पीड़ितों के संगठन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मामले का जल्द निपटारा किए जाने की मांग की।
  • 21 अगस्त 2007- सेशन कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।
  • 20 नवंबर 2007- अदालत ने सुशील व गोपाल अंसल सहित 12 आरोपियों को दोषी करार दिया। सभी को दो साल कैद की सजा सुनाई।
  • 4 जनवरी 2008- हाईकोर्ट से अंसल बंधुओं व दो अन्य को जमानत मिली।
  • 11 सितंबर 2008- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की जमानत रद की और उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया।
  • 17 नवंबर 2008- दिल्ली हाईकोर्ट ने अंसल बंधुओं की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
  • 19 दिसंबर 2008- हाईकोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया और छह अन्य आरोपियों की सजा को बरकरार रखा।
  • 30 जनवरी 2009- उपहार कांड पीड़ितों के संगठन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट अंसल बंधुओं को नोटिस जारी किया।
  • 31 जनवरी 2009- सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में भी अभियुक्तों की सजा को बढ़ाए जाने की मांग की।
  • 17 अप्रैल 2013- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं, उपहार कांड पीड़ितों व सीबीआइ की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • 5 मार्च 2014- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा।
  • 19 अगस्त 2014- सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं पर 30-30 लाख का जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया।