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वीडियो: बेनक़ाब हुआ 3700 करोड़ रूपये की ऑनलाइन ठगी का फ़ार्मूला

नोएडा में 3 डब्ल्यू डिजिटल के नाम से दफ्तर खोलने वाली ये कंपनी ने सोशल मीडिया ट्रेड के लिए अगस्त 2016 में काम शुरू किया था।

Updated on: 03 Feb 2017, 07:20 PM

highlights

  • पहले इस कंपनी में मेंबर बनना पड़ता था
  • जिसके लिए कंपनी 5 से लेकर 57 हजार रुपये तक में अपनी मेंबरशिप बेचती थी।
  • ऑनलाइन 'लाइक' करने का काम देखकर लाखों लोग इस काम में जुड़ते चले गए।

नई दिल्ली:

एक तरफ सरकार लोगों से डिजिटल होने की बात कर रही है वहीं दूसरी तरफ दिल्ली-एनसीआर के नोएडा में ऑनलाइन ठगी का बहुत बड़ा मामला सामने आया है। शुक्रवार को इस सिलसिल में पुलिस ने कंपनी के मालिक अनुभव मित्तल सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

ऑनलाइन ठगी का ये जाल कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 7 लाख़ से ज़्यादा लोग फ़र्ज़ीवाड़े के शिकार हुए हैं। सवाल उठता है कि आख़िर ये ठगी कैसे की गई। कैसे 7 लाख़ लोगों को कंपनी ने अपना शिकार बनाया। इस रिपोर्ट के ज़रिए आपको दिखाते हैं कि इस द ग्रेट ऑनलाइन ठगी की मोडस ऑपरेंडी क्या थी।

कंपनी की शुरुआत

नोएडा में 3 डब्ल्यू डिजिटल के नाम से दफ्तर खोलने वाली ये कंपनी सिर्फ पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को लाख़ो कमाने का झंसा देती थी। इस कंपनी ने सोशल मीडिया ट्रेड के लिए अगस्त 2016 में काम शुरू किया था।

पहले इस कंपनी में मेंबर बनना पड़ता था जिसके लिए कंपनी 5 से लेकर 57 हजार रुपये तक में अपनी मेंबरशिप बेचती थी। उनकी वेबसाइट पर आने वाले लिंक को ऑनलाइन 'लाइक' करने का काम देखकर लाखों लोग इस काम में जुड़ते चले गए।

यही वजह है कि मात्र सात महीने में 6.30 लाख लोग इस कंपनी में सीधे तौर पर सदस्य बन चुके हैं जबकि एसटीएफ को कंपनी में छापे के दौरान 9 लाख़ पहचान पत्र मिले हैं।

एसटीएफ की गिरफ़्त में आए अनुभव मित्तल ने साल 2010 में अब्लेज इन्फो सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी की शुरुआत की। कंपनी ने लोगों को कम समय में पैसे दोगुना करने का लालच देकर लोगों को जोड़ना शुरू किया। लोगों को उनकी एंट्रेस फीस के हिसाब से लिंक दिये गए।

कैसे हुई द ग्रेट ऑनलाइन ठगी

कंपनी हर लिंक को लाइक करने के मेहनताने के रूप में अपने सदस्य को पांच रुपये का भुगतान करती थी।

फ़र्ज़ कीजिये, अगर किसी सदस्य ने 57500 रुपये की सदस्यता ली है तो कंपनी उसे रोजाना 125 लिंक देती थी। इसके बाद यदि कोई सदस्य अपने नीचे दो सदस्य इतनी ही धनराशि देकर बनवाता था तो उसके लिंक दो गुने यानी रोजाना 250 के हो जाते थे। इतने लिंक लाइक करने पर रोजाना पांच रुपये के हिसाब से 1250 रुपये का भुगतान बनता था लेकिन कंपनी एडमिन चार्ज और टीडीएस काटने के बाद सदस्य के खाते में 1060 रुपये का भुगतान करती थी।

5750 रुपये देने पर 25 लाइक
11500 रुपये देने पर 50 लाइक
28750 रुपये देने पर 75 लाइक
57500 रुपये देने पर 125 लाइक

कंपनी ने दावा किया कि ये लिंक्स दूसरी कंपनियों के हैं। जो अपने प्रमोशन के लिए उन्हें लिंक भेजती है। उन्हीं लिंक्स को लाइक करने पर 5 रुपये देने का ऑफर दिया गया। इसके अलावा कंपनी ने हर एक सदस्य को दो और सदस्यों को जोड़ने का लालच भी दिया।

मामले की जांच कर रही एसटीएफ के एसएसपी ने बताया कि लिंक्स को लाइक करने का ये खेल पूरी तरह से जालसाजी था।

एसटीएफ के मुताबिक किसी भी कंपनी ने मित्तल की कंपनी से ख़ुद को प्रमोट करने का करार नहीं किया था और जो लिंक्स लाइक किये जाते थे, वो अब्लेज इन्फो के सर्वर तक ही रह जाते थे। कंपनी ने शुरुआत में ख़ुद से जुड़ने वाले लोगों को पैसे भी दिये, ताकि बड़े पैमाने पर लोगों को फांसा जा सके।

जांच एजेंसियों को कैसे कर रहे थे गुमराह

इतना ही नहीं, जांच एजेंसियों की निगरानी से बचने के लिए इन जालसाजों ने लगातार कंपनी का नाम भी बदला। कंपनी को लगातार घाटे में भी दिखाया जा रहा था ताकि समय आने पर उसे दिवालिया घोषित कर सारी पूंजी बटोर कर फ़रार हुआ जा सके। लेकिन इससे पहले कि ये जालसाज लोगों की जमापूंजी लेकर भाग पाते, एसटीएफ ने उन्हें धर दबोचा।