क्या BJP और विश्व हिंदू परिषद में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, राम मंदिर पर चौंकाने वाला फैसला
विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण अभियान को चार महीने तक के लिए रोक दिया है.
नई दिल्ली:
विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण अभियान को चार महीने तक के लिए रोक दिया है. लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) के संपन्न होने तक विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) राम मंदिर (Ram Temple in Ayodhya) मुद्दे पर अब 4 महीने तक किसी तरह का कोई अभियान नहीं चलाने का निर्णय किया है. विश्व हिंदू परिषद (VHP) नहीं चाहता है कि राम मंदिर चुनावी मुद्दा बने. हलांकि प्रयागराज कुंभ (Kumbh 2019) में धर्मसभा (Dharm Sabha) की बैठक में साधु-संतों ने एक प्रस्ताव पास किया था. इसमें कहा गया था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण तक वो चैन से नहीं बैठेंगे.
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परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि विश्व हिंदू परिषद ने फैसला किया है कि लोकसभा चुनाव तक राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान नहीं चलाया जाएगा. क्योंकि राम मंदिर आस्था और पवित्रता से जुड़ा हुआ है. इसका इस्तेमाल चुनावी मुद्दा के रूप में नहीं होना चाहिए.
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जैन ने कहा कि अक्सर VHP पर किसी दल विशेष को राजनीतिक फायदा के लिए राम मंदिर निर्माण का अभियान चलाने का आरोप लगाया जाता है. ऐसे में हम इसें किसी राजनीतिक दलदल में इस मुद्दे को नहीं फंसाना चाहते हैं. इसे हम राजनीति से परे रखना चाहते हैं. इसीलिए हमने फैसला किया है कि इसे हम चार महीने तक कोई आंदोलन नहीं चलाएंगे.
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उन्होंने कहा कि राम मंदिर आंदोलन को रोकने की दूसरी बड़ी वजह ये है कि चुनाव घोषणा के साथ ही देश में आचार संहिता लागू हो जाती है. ऐसे में किसी तरह के आंदोलन से अनावश्यक रूप से संघर्ष और विवाद का निर्माण होते हैं. इसीलिए लोकतंत्र के इस पर्व का सम्मान का फैसला करते हुए निर्णय किया है कि हम किसी तरह के विवाद में न पड़े और आचार संहिता के उल्लघंन में बाधा न बने.
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बता दें कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ा केस अदालत में 1950 में चल रहा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर, 2010 में फैसला दिया था. हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. कोर्ट ने तीनों पक्षों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में 2.77 एकड़ जमीन को बराबर बांटने का आदेश दिया था. इसके बाद दोनों पक्षकारों ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तब से ये मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में है.
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