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चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश की तुलना कौरवों से की, खुद को पांडव बताकर कहा सीएम पद की लालसा नहीं

2019 लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाकर अपने ही भतीजे अखिलेश के खिलाफ ताल ठोक रहे चाचा शिवपाल ने आज एक बार फिर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश पर हमला बोला

Updated on: 11 Sep 2018, 04:19 PM

लखनऊ:

2019 लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाकर अपने ही भतीजे अखिलेश के खिलाफ ताल ठोक रहे चाचा शिवपाल ने आज एक बार फिर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश पर हमला बोला। खुद की तुलना पांडव से और अखिलेश गुट की तुलना कौरवों से करते हुए चाचा शिवपाल ने कहा, 'मैंने सोचा था कि अलग-अलग लड़ेंगे तो नुकसान सभी का होगा लेकिन विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लोग हमें ही हराने में लगे रहे, लेकिन फिर भी हम जीते। कुछ कम वोट जरूर मिले। पांडवों ने तो सिर्फ 5 गांव मांगे थे, हमने तो सम्मान के अलावा कुछ नहीं मांगा था। हमने कहा था कि हमें मुख्यमंत्री भी नहीं बनना है।'

अखिलेश को हो गया था सत्ता का अहंकार: शिवपाल

शिवपाल यादव यहीं नहीं रुके और अखिलेश को अहंकारी बताते हुए कहा, सत्ता पाकर लोगों में अभिमान आ जाता है, रावण, कंस और दुर्योधन को भी अभिमान आया था, तो फिर अहंकारी का नाश ही होता है। मैंने कभी कोई पद नहीं मांगा। कभी राजनीति में आने की नहीं सोची क्योंकि सरकारी नौकरी लग गई थी, लेकिन राजनीति में आना पड़ा। लेकिन तब लोग बेईमान नहीं थे,। हम लोग महीनों साइकिल चलाते थे आज कोई 2 घण्टे भी साइकिल चलाते हैं तो बड़ा प्रचार करते हैं। बहुत से लोग बिना मेहनत के सब कुछ चाहते हैं।

सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई लड़ेगी मेरी पार्टी: शिवपाल

अपनी नई पार्टी को लेकर शिवपाल यादव ने कहा, समाजवादी सेक्युलर मोर्चा सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन के साथ ही धर्म की भी लड़ाई लड़ेगा। मोर्चे के संघठन का बहुत जल्दी निर्माण करेंगे। अभी तो हमें 75 जिलाध्यक्ष, 75 जिलों के प्रभारी बनाएंगे, सोचो जब संगठन बनाएंगे तो क्या हाल होगा। हमारी पार्टी समाजिक न्याय की लड़ाई लड़ेगी।

कैसे शुरू हुआ विवाद

खुद शिवपाल यादव भी मंच से कई बार कह चुके थे कि अब पार्टी के अंदर मेरे कोई अहमियत नहीं रह गई है। पार्टी को नए तरीकों से चलाया जा रहा है। वरिष्ठ नोताओं को इज्जत नहीं मिल रही है।

समाजवादी घराने के अंदरखाने में कलह उस समय शुरू हुई थी जब अमर सिंह की वापसी हुई थी। अखिलेश और रामगोपाल यादव नहीं चाहते थे कि अमर सिंह को पार्टी में शामिल किया जाए।

हालांकि इस बारे में दोनों भाईयों मुलायम और शिवपाल की राय एक थी। वह अमर सिंह को न सिर्फ और पार्टी में शामिल करना चाहते थे बल्कि वरिष्ठ पद भी देना चाहते थे। लेकिन युवा मुख्यमंत्री को यह बात नागवार गुजरी। नतीजा, अमर सिंह पार्टी छोड़कर बाहर आ गए।

इस बीच कई तरह का विवाद सामने आया। कभी अखिलेश को पार्टी से निकाला गया तो कभी शिवपाल ने पार्टी छोड़ी लेकिन कठोर फैसले लेने वाले मुलायम 'राजनैतिक गृह युद्ध' में कमजोर नजर आए।

अखिलेश हो सकता है तगड़ा नुकसान

नतीजा वही हुआ जो कयास पॉलिटिकल पंडितों ने लागाए थे। विधानसभा चुनाव में समाजवादी धड़ा बूरी तरह से परास्त हो गई। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 सीटें जीतने वाली पार्टी 2017 में 47 सीटों पर सिमट गई।

अखिलेश यादव को ऐसा लग रहा था कि राज्य की जनता उनके कार्यों के आधार पर दोबार साइकिल पर ही मुहर लगाएगी लेकिन उनकी यह सोच ख्याली पुलाव साबित हुई। बीजेपी बाजी मार ले गई और 2012 के चुनाव में 29 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाने वाली पार्टी 22 प्रतिशत तक का आंकड़ा नहीं छू पाई।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आपसी कलक का नतीजा ही रहा कि इस विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भी समाजवादी कुनबा से ज्यादा वोट लाने में सफल रही।

लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट होते ही इस बार शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया और नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने बिना नाम लिए अखिलेश को चुनौती भी दे डाली।

खलेगी शिवपाल की गैरमौजूदगी

दरअसल समाजवादी सेक्युलर मोर्चा पार्टी के गठन के बाद बागपत पहुंचे शिवपाल यादव अपने कार्यकर्ताओं की बैठक की। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी यूपी की सभी 80 सीटों पर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव लड़ेगी।

साथ ही यह भी कह दिया कि जो लोग सपा में उपेक्षित और हासिये पर हैं उन्हें सेक्युलर मोर्चा में शामिल किया जाएगा। शिवपाल यादव ने कहा कि ऐसे लोगों को इकट्ठा करके बड़ी लड़ाई लड़ेंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश की किस्मत बदलना सेक्युलर मोर्चा के उद्देश्य है।

शिवपाल के छोड़ने का मतलब साफ है कि अब कहीं न कहीं सपा पहले से सांगठनिक तौर पर थोड़ा कमजोर हो सकती है। क्योंकि अभी तक शिवपाल ने संगठन को बखूबी संभाला रखा था।

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भतीजा को कितना नुकसान पहुंचाएंगे चाचा

शिवपाल के निकलने से सपा का कुछ वोट बैंक भी खिसकेगा जो कि अन्य पार्टियों को फायदा पहुंचाए न पहुंचाए अखिलेश को जरुर नुकसान पहुंचाएगा। अक्सर ऐसा देखने को मिला है कि सूबे में हार जीत का अंतर बहुत ही कम होता है। ऐसे में शिवपाल अखिलेश को तगड़ा नकुसान पहुंचा सकते हैं।

मतलब साफ है कि अब अखिलेश को अपने चाचा से ही चुनौती मिलेगी। पहले उन्हें घर से ही पार पाना होगा तभी वह किसी और नेता को चुनौती दे पाएंगे। उपेक्षित शिवपाल पूरी तरह से बागी हो चुके हैं और नुकसान पुहंचाने के मूड में आ गए हैं।