रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा सिर्फ मीडिया का उछाला हुआ, वीडियोग्राफी से मदरसों का सम्मान बढ़ा था: मंत्री
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर मीडिया को निशाना बनाया है।
highlights
- 15 अगस्त को रिकॉर्डिंग मदरसा शिक्षकों को सम्मानित करने के उद्देश्य से की गई थी: मंत्री
- केन्द्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हलफनामा दायर किया
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर मीडिया को निशाना बनाया है। उनके मुताबिक रोहिंग्या मुसलमानों को सरकार कहीं नहीं भेज रही है, यह सिर्फ मीडिया के द्वारा फैलाया गया मुद्दा है।
साथ ही उन्होंने 15 अगस्त के दिन राज्य के मदरसों की वीडियोग्राफी पर कहा कि वह किसी के अपमान के लिए नहीं, बल्कि मदरसा के शिक्षकों को सम्मान देने के लिए करवाया गया था।
जबकि सोमवार को ही केंद्र सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने संबंधी याचिका पर हलफनामा दाखिल कर कहा कि वह देश की सुरक्षा के लिए 'खतरा' हैं। इसके बाद मंत्री जी का बयान किसी के गले नहीं उतर रहा है।
एक तरफ जहां केन्द्र सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर भेजने की पुरजोर कोशिश कर रही है, उसी वक्त राज्य के मंत्री का यह बयान विरोधाभास पैदा कर रहा है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा, 'रोहिंग्या शरणार्थियों का देश में बने रहना जहां पूरी तरह से गैर कानूनी है, वहीं उनकी मौजूदगी देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है।'
इसके बाद मंत्री ने एक और विवादास्पद बयान देते हुए कहा, 'स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रदेश के सभी मदरसों में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत अनिवार्य रूप से गाने तथा उसकी वीडियो रिकार्डिंग कराने का फरमान उनका अपमान करने के लिए नहीं, बल्कि मदरसा शिक्षकों को सम्मानित करने के उद्देश्य से की गई थी।'
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इसके अलावा अल्पसंख्यक मन्त्री ने कहा कि जिन मदरसों के अनुदान को सरकार ने रोका है वह रिकार्डिंग न कराने की वजह से नहीं, बल्कि सरकारी मानकों पर खड़ा न उतरने की वजह से रोकी गयी है। उनको भी समय दिया गया है।
आपको बता दें कि स्वतंत्रता दिवस के दिन मदरसों में रिकॉर्डिंग के आदेश के बाद राज्य के मुसलमानों में जबरदस्त नाराजगी हुई थी और सरकार द्वारा इस कदम को उनकी देशभक्ति पर संदेह तक बताया गया था। साथ ही कई लोगों ने सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना भी की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के लिए 3 अक्टूबर का दिन तय किया है।
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