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तो NTPC हादसे की यह थी वजह, अब भी कई शव के दबे होने की आशंका

प्लांट में पहली खामी यह कि उसका ट्रायल तक नहीं किया गया था। दूसरी खामी यह कि निपुण विशेषज्ञों की राय लिए बिना ही प्लांट को सीधे काम के लिए चालू कर दिया गया।

Updated on: 04 Nov 2017, 09:30 AM

highlights

  • प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसे में मरने वालों की चीखें तक नहीं निकलीं
  • गरम राख ज्यादा जमा हो जाने के कारण दबाव बनने से फटा बॉयलर
  • बिना ट्रायल के ही शुरू कर दिया गया था प्लांट को, घटना के वक्त 400 कर्मचारी थे काम पर

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश गोरखपुर बीआरडी अस्पताल हादसे से अभी उबरा भी नहीं था कि बीते बुधवार को एक और बड़ा हादसा हो गया। रायबरेली के ऊंचाहार में एनटीपीसी के जिस नए थर्मल पावर प्लांट में यह भीषण हादसा हुआ, उसे हाल ही में स्थापित किया गया था।

हादसे में मरने वालों की चीखें तक नहीं निकलीं। कई शव आग में बुरी तरह जलकर दीवारों से टंगे थे। यह भयावह दृश्य देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए।

प्लांट में पहली खामी यह कि उसका ट्रायल तक नहीं किया गया था। दूसरी खामी यह कि निपुण विशेषज्ञों की राय लिए बिना ही प्लांट को सीधे काम के लिए चालू कर दिया गया।

एक और सबसे बड़ी गलती सामने आई है कि बॉयलर के नीचे जलने वाली आग की राख पाइप से छनकर नीचे गिरती है, लेकिन उसका पटला खोला ही नहीं गया। जब गरम राख ज्यादा जमा हो गई, तो दबाव के चलते भयंकर विस्फोट हो गया।

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अब भी कई शवों के दबे होने की आशंका

विस्फोट इतना भयानक था कि आसमान में 80 फीट ऊपर तक अंगारे उड़ने लगे। जब आग के गोले फटकर नीचे गिरे, तो भयंकर तबाही मची। सूचना मिलने पर एनडीआरएफ की टीम घटना की मुख्य जगह पर राहत-बचाव में अब भी लगी है, टीम के सदस्यों को संदेह है कि अभी भी राख में कई शव दबे हैं।

जब हादसा हुआ, उस दौरान पूरे प्लांट में करीब 400 कर्मचारी काम पर थे। ये कंपनी के बताए आंकड़े हैं। संख्या ज्यादा भी हो सकती है। ओएनजीसी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा खुद मानते हैं कि किसी भी प्लांट का डमी-ट्रायल किया जाता है, लेकिन रायबरेली जिले के ऊंचाहार स्थित अपनी छठी यूनिट में एनटीपीसी ने ट्रायल क्यों नहीं किया?

आधे घंटे कर गिरते रहे आग के गोले

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हादसे के बाद करीब आधे घंटे तक आसमान से आग के गोले गिरते रहे। उन गोलों की चपेट में जो कर्मचारी आता गया, वह मौत के गाल में समाता चला गया। बताया जा रहा है कि मरने वालों की चीखें तक नहीं निकलीं।

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मरने वालों का शुरुआती आंकड़ा गुरुवार को पहले 20, फिर 22, बाद में 26 और रात होते होते 32 बताया गया, लेकिन यह संख्या निश्चित तौर पर बढ़ेगी।

डेढ़ सौ से ज्यादा घायलों को रायबरेली व उसके आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। इसके अलावा ज्यादा गंभीर मरीजों को राजधानी लखनऊ रेफर कराया गया। कई घायलों को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेजा गया है।

घायलों की इतनी भारी तादाद को देखते हुए लखनऊ स्थित ट्रॉमा सेंटर, लोहिया हॉस्पिटल व सिविल हॉस्पिटल को अलर्ट पर रखा गया है। सभी डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ को तुरंत ड्यूटी पर पहुंचने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।

घटना स्थल पर घायलों की चीत्कार सुनकर आसपास के गांव वालों व प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों के मुंह से सिर्फ एक शब्द निकल रहा था कि यह क्या हो गया।

उन्होंने इस तरह का मंजर इससे पहले कभी नहीं देखा। कई घंटों तक अफरा-तफरी का माहौल रहा। हादसा और बड़ा हो सकता था, लेकिन गनीमत रही कि हादसे की तत्काल सूचना पर एनटीपीसी प्लांट की दूसरी यूनिटों में काम कर रहे अधिकारी, कर्मचारी और मजदूर आनन-फानन में वहां पहुंच गए।

उन्होंने आग पर काबू करने के बाद राख के नीचे दबे कर्मचारियों को बाहर निकाला। अगर थोड़ी ही देर हो जाती तो आग पूरे प्लांट में आग फैल सकती थी, उससे कोई भी नहीं बच सकता।

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दूसरे प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों ने घायलों को अपने कंधों पर लादकर सबसे पहले पास ही बने एनटीपीसी हॉस्पिटल में लेकर गए।

सवाल उठ रहे हैं कि प्लांट को लगाने में तकनीकी विशेषज्ञों की राय क्यों नहीं ली गई? दरअसल, अधिकारियों को इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि नई-नवेली 500 मेगावाट की छठी यूनिट इस तरह आग और शोलों से घिरकर मौत का मंजर दिखा देगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा।

हादसे के पीछे जिस किसी की भी लापरवाही सामने आए, उस पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। मरने वालों को 50 लाख रुपये तक मुआवजा दिया जाना चाहिए।

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