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यूपी चुनाव: मोदी के गढ़ में 'अपनों' व 'विरोधियों' के बीच फंसी बीजेपी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की लड़ाई अब अपने अंतिम मोड़ तक पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की साख बचाने के लिए पार्टी का पूरा केंद्रीय नेतृत्व जुटा हुआ है। बावजूद इसके बीजेपी प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ ही अपनों की भी चुनौती मिल रही है, जिससे कई सीटों पर लड़ाई रोचक होती नजर आ रही है।

Updated on: 05 Mar 2017, 05:09 PM

highlights

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बीजेपी की साख बचाने के लिए पार्टी का पूरा केंद्रीय नेतृत्व जुटा हुआ है
  • बीजेपी प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ ही अपनों की भी चुनौती मिल रही है, जिससे कई सीटों पर लड़ाई रोचक होती नजर आ रही है

New Delhi:

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की लड़ाई अब अपने अंतिम मोड़ तक पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की साख बचाने के लिए पार्टी का पूरा केंद्रीय नेतृत्व जुटा हुआ है। बावजूद इसके बीजेपी प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ ही अपनों की भी चुनौती मिल रही है, जिससे कई सीटों पर लड़ाई रोचक होती नजर आ रही है।

वाराणसी में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। सेवापुरी, शिवपुरी, अजगरा, पिंडरा, शहर उत्तरी, शहर दक्षिणी, बनारस कैंट और रोहनियां। पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में बनारस की तीन सीटों वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तरी और वाराणसी दक्षिणी सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा था।

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फिलहाल बनारस में भाजपा को इन अपनी तीनों सीटें बचाने के लिए एड़ी चोटी का संघर्ष करना पड् रहा है, जबकि सेवापुरी विधानसभा में भी कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है।

वाराणसी दक्षिणी सीट

मोदी के संसदीय क्षेत्र में यदि कोई सीट सबसे अधिक चर्चा में है तो वह वाराणसी दक्षिणी सीट है। इसकी वजह यहां से भाजपा के दिग्गज व वर्तमान विधायक विधायक और लगातार सात बार चुनाव जीत चुके श्यामदेव राय चौधरी का टिकट कटना है।

इस सीट को ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है। यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा है। इसी सीट से सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरफ से राजेश मिश्रा को टिकट मिला है। राजेश हालांकि बनारस से कांग्रेस के टिकट पर एक बार सांसद भी चुने जा चुके हैं। बावजूद इसके उन्हें भी मतदाताओं के बीच कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।

बसपा ने यहां से राकेश त्रिपाठी को मैदान में उतारा है। वह अपने विरोधियों को कडी टक्कर दे रहे हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि ब्राह्मण बहुल सीट पर जीत की कुंजी मुस्लिम व दलित मतदाताओं के पास है। यहां मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा की तरफ माना जा रहा है। ऐसे में राजेश मिश्रा भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

इधर, भाजपा के नेताओं का दावा है कि कड़ी मशक्कत के बाद पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं को मना लिया गया है। लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो कई बागी अंदरखाने ही भाजपा से भितरघात करने में जुटे हुए हैं।

वाराणसी उत्तरी सीट

वाराणसी उत्तरी सीट पर भी भाजपा विरोधियों और अपनों के बीच फंसी है। यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक रवींद्र जायसवाल को टिकट दिया है। सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरह से अब्दुल समद अंसारी चुनाव मैदान में हैं। बसपा ने सुजीत कुमार मौर्य को इस सीट से टिकट दिया है।

शहर उत्तरी से भाजपा के बागी उम्मीदवार सुजीत सिंह टीका मैदान में भाजपा का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं। पार्टी ने हालांकि उन्हें पार्टी से निकाल दिया है और वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। अब्दुल समद अंसारी के एकलौते मुस्लिम होने की वजह से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ माना जा रहा है।

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टीका ने हालांकि कहा कि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बजाय पार्टी से निष्कासित कर दिया। अब हम निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। जनता तय करेगी कि हमारा भविष्य क्या होगा। भाजपा को इस बार जनता ही सबक सिखाएगी।

इस सीट से भाजपा के ही एक और कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह भी चुनाव मैदान में हैं। वह भी प्रत्याशियों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हालांकि मतदाताओं का कितना समर्थन मिलेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी।

वाराणसी कैंट

मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में वाराणसी कैंट सीट पर भी कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। सपा और कांग्रेस गठबंधन ने इस बार हालांकि अनिल श्रीवास्तव को यहां से टिकट दिया है। अनिल पहले भी कांग्रेस से ही इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। तब उन्हें लगभग 50 हजार मत मिले थे। इस बार वह गठबंधन के भरोसे भाजपा को धूल चटाने का दावा कर रहे हैं। 

अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि काशी ने देश को एक प्रधानमंत्री दिया लेकिन तीन वर्षो बाद भी यहां की स्थिति जस की तस है। विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यहां काफी काम कराये हैं और सबसे बड़ा काम तो बनारस को 24 घंटे बिजली मुहैया कराना है।

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अनिल श्रीवास्तव को हालांकि इस बार वाराणसी से दमदार प्रत्याशी के तौर पर देखा जा रहा है। इलाके के लोग बताते हैं कि भाजपा ने इस बार पिछली बार की विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव के बेटे सौरभ श्रीवास्तव को टिकट दिया है। इलाके के लोग एक तरफ जहां परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं वहीं दूसरी और अनिल श्रीवास्तव जैसे मंझे हुए खिलाड़ी के सामने सौरभ अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं।

बसपा ने इस सीट से रिजवान अहमद को मैदान में उतारा है। कैंट में हालांकि मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है, लेकिन यहां के जानकार बताते हैं कि भाजपा को हराने के लिये मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ हो सकता है।

सेवापुरी विधानसभा सीट

बनारस की सेवापुरी सीट पर भी विरोधियों ने भाजपा की तगड़ी घेरेबंदी की है। यूं तो इस सीट पर भाजपा के सहयोगी पार्टी अपना दल (अनुप्रिया पटेल) के उम्मीदवार नीलरतन पटेल हैं। जबकि इसी सीट से अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल ने अपने गुट की तरफ से विभूति नारायण सिंह को टिकट दिया है।

विभूति नारायण सिंह लंबे समय तक भाजपा के नेता रहे हैं और इलाके के मतदाताओं के बीच अच्छी खासी पैठ है। दूसरी ओर सपा और कांग्रेस गठबंधन की तरफ से मंत्री सुरेंद्र पटेल चुनाव मैदान में हैं। पिछली बार भी वह इस सीट से अच्छे अंतर से जीते थे।

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