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कर्मचारीगण कृपया ध्‍यान दें! 9 घंटे की शिफ्ट करने जा रही है मोदी सरकार

भारत सरकार ने वेज कोड रूल्स का ड्राफ्ट (Wage Code Rule Draft) में नौ घंटे का सामान्य कार्य दिवस करने का प्रस्ताव किया है. हालांकि, मसौदे में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी की दरें नहीं निर्धारित की गई हैं.

नई दिल्‍ली:

मौजूदा समय में चल रहा 8 घंटे रोजाना कामकाज के नियम को लेकर मोदी सरकार अब बड़े बदलाव की तैयारी में है. भारत सरकार ने वेज कोड रूल्स का ड्राफ्ट (Wage Code Rule Draft) में नौ घंटे का सामान्य कार्य दिवस करने का प्रस्ताव किया है. हालांकि, मसौदे में राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी की दरें नहीं निर्धारित की गई हैं.

प्रस्‍ताव में कहा गया है कि एक विशेषज्ञ समिति भविष्य में न्यूनतम मजदूरी पर सरकार के सामने अपनी राय रखेगी. इस मसौदे पर आम जनता इस पर विचार जाहिर कर सकती है. दिसंबर में मसौदे को अंतिम रूप देने की योजना है. इस मसौदे में कहा गया है, ‘एक सामान्य कार्य दिवस नौ घंटे का होगा. हालांकि, मासिक वेतन के निर्धारण के समय 26 दिनों के लिए आठ घंटे के कामकाज को मानक माना जाएगा.'

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इस मौसदे के तहत राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतन तय करने के लिए देश को तीन भौगोलिक श्रेणियों में बांटा जाएगा. पहली श्रेणी महानगर की है. ऐसे शहर जिसकी आबादी 40 लाख या उससे अधिक है वह महानगर की श्रेणी में आएगा. दस से 40 लाख की आबादी वाले शहर गैर-महानगर की श्रेणी में आएंगे और 10 लाख के नीचे वाले ग्रामीण कहलाएंगे.

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दस फीसद होगा आवास भत्ता

मसौदे के मुताबिक आवास भत्ता न्यूनतम मजदूरी का दस फीसदी होगा. पेट्रोल-डीजल, बिजली व अन्य वस्तुओं पर खर्च की राशि न्यूनतम मजदूरी का 20 प्रतिशत हिस्सा रखी गई है. मसौदे में ‘फ्लोर वेज' की हर पांच साल या उससे कम समय में समीक्षा करने का प्रस्ताव किया गया है. ‘फ्लोर वेज' उस सीमा को कहते हैं, जिससे कम वेतन कोई भी नियोक्ता अपने किसी भी कर्मचारी को नहीं दे सकता.

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श्रम मंत्रालय के आंतरिक पैनल ने जनवरी में पेश रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर 375 रुपये प्रति कार्य दिवस के हिसाब से न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की सिफारिश की थी. उसने शहरों में बसे कर्मचारियों को 1430 रुपये आवास भत्ता देने को भी कहा था.

2700 कैलोरी की खपत आधार बनेगी

मसौदे में यह भी साफ किया गया है कि न्यूनतम मजदूरी की गणना करते समय एक मानक परिवार के लिए 2700 कैलोरी प्रतिदिन और 66 मीटर कपड़ा सालाना खपत को आधार बनाया जाएगा. इन मानकों पर 1957 से अमल हो रहा है, जब पहली बार न्यूनतम मजदूरी की गणना की गई थी.