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सावधानः महंगाई से खाना-पीना हुआ दुश्वार, अब इलाज कराना भी हो जाएगा महंगा

दवाओं की कीमत पर नियंत्रण रखने वाली संस्था ने दवाओं के सीलिंग प्राइस को 50 फीसदी बढ़ा दिया है. इस तरह देखा जाए तो सामान्य रूप से प्रयोग की जाने वाली दवाइयों के दाम जल्द बढ़ सकते हैं.

Updated on: 14 Dec 2019, 05:34 PM

highlights

  • दवाओं के सीलिंग प्राइस 50 फीसदी बढ़े.
  • एनपीपीए ने जनहित में उठा कदम बताया.
  • चीन से आने वाले तत्वों के दाम 200 गुना के बढ़े.

New Delhi:

भारतीय अर्थव्यवस्था पर छाए संकट के बादलों के बीच महंगाई ने आम आदमी की जिंदगी पर बुरा असर डाला है. प्याज, लहसुन और मौसमी सब्जियों ने खाने की थाली का स्वाद पहले ही बेमजा कर दिया है कि अब एक और बुरी खबर सामने आ रही है. दवाओं की कीमत पर नियंत्रण रखने वाली संस्था ने दवाओं के सीलिंग प्राइस को 50 फीसदी बढ़ा दिया है. इस तरह देखा जाए तो सामान्य रूप से प्रयोग की जाने वाली दवाइयों के दाम जल्द बढ़ सकते हैं. इन दवाइयों में एंटीबायोटिक्स, एंटी-एलर्जी, एंटी-मलेरिया ड्रग और बीसीजी वैक्सीन और विटामिन सी शामिल हैं.

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एनपीपीए ने दवाओं के सीलिंग प्राइस बढ़ाए
प्राप्त जानकारी के मुताबिक दवाइयों की कीमत के रेग्युलेटर नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी यानी एनपीपीए (NPPA) ने शुक्रवार को सीलिंग प्राइस (वो कीमत जिससे अधिक पर दवा बिक्री नहीं हो सकती) पर लगी रोक को 50 फीसदी से बढ़ा दिया है. एनपीपीए का कहना है कि यह जनहित में किया गया है. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि दवाइयों की उपलब्धता को बनाया रखा जा सके. यह अलग बात है कि अभी तक इसका प्रयोग दवाइयों के दाम को कंट्रोल करने के लिए ही किया गया है.

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  • एनपीपीए ने यह कदम फार्मा इंडस्ट्री की मांग पर लिया है. फार्मा इंडस्ट्री ने एनपीपीए से मांग की थी कि चूंकि दवाइयों को बनाने में प्रयोग किए जाने वाली सामग्री के दाम ज्यादा हैं इसलिए दवाइयों की ऊपरी कीमत को बढ़ाया जाए.
  • आपको बता दें कि चीन से आने वाले तत्वों के दाम पर्यावर्णीय कारणों से 200 गुना के लगभग बढ़ गए हैं. शुक्रवार को हुई एनपीपीए की मीटिंग में कुल 12 दवाओं को लेकर ये फैसला किया गया है. ये दवाएं लगातार प्राइस कंट्रोल में रही हैं.
  • अपने फैसले में एनपीपीए ने कहा कि ये दवाएं फर्स्ट लाइन ट्रीटमेंट की कैटेगरी में आती हैं और देश में लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी जरूरी हैं. काफी कंपनियां विचार कर रही थीं कि इन दवाओं को बनाना बंद कर दिया जाए.
  • दवाओं की उपलब्धता को सस्ती कीमतों पर बनाए रखना जरूरी है लेकिन इसकी वजह से ऐसा नहीं होना चाहिए कि दवाओं में इस्तेमाल में होने वाले कच्चे माल (रॉ इन्ग्रेडिएंट्स) की वजह से दवाएं ही मार्केट में उपलब्ध न रह जाएं. क्योंकि ऐसा होने पर लोगों को उनके विकल्प वाली दूसरी महंगी दवाओं को खरीदना पड़ेगा.