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दिवाली से पहले आप होंगे मालामाल, बरसेंगी खुशियां अब पूरे साल, पढ़ें क्यों

भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व है और हर त्‍योहार उसी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है जैसे की होली और दिवाली. भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है.कहते हैं कि 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है.

Updated on: 06 Nov 2018, 03:40 PM

नई दिल्ली:

भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व है और हर त्‍योहार उसी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है जैसे की होली और दिवाली. भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है.कहते हैं कि 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है.कहते हैं इस दिन धन और आरोग्य जीवन के लिए भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा की जाती है और उन्हीं की कृपा से लोगों को धन की प्राप्ति होती है.

दीपावली और धनतेरस दोनों ही त्‍योहार का विशेष महत्व है.इन दोनों त्‍योहार पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है.माना जाता है कि इस दिन समृद्धि प्राप्ति के लिए किया गया कोई भी उपाय ज्यादा फलदायी होता है.दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व है और इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि पूजे जाते हैं. इस दिन धन के राजा कुबेर की पूजा की जाती है.कहते हैं इसी दिन भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है. धनतेरस के दिन सोने-चांदी के बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है.कहते हैं इस दन धातु खरीदने से इंसान की किस्मत चमक जाती है..

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हिंदू पंचांग के अनुसार धनतेरस कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन यानि दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है. धन का मतलब होता है समृद्धि और तेरस का मतलब है तेरहवां दिन.धनतेरस यानी अपने धन को तेरह गुणा बनाने और उसमें वृद्धि करने का द‌िन.कारोबारियों के लिए धनतेरस का खास महत्व होता है.मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी पूजा से समृद्धि, खुशियां और सफलता प्राप्त होती है.

इसलिए मनाते हैं धनतेरस

धनतेरस को लेकर एक पौराणिक मान्यता भी है.कहते हैं कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी.मान्यता है कि देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए.शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना.वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं.

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राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी.और भगवान वामन द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से ज को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के लघु रूप धारण कर लिया और कमंडल में घुस गए.जिससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया.वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए.और तभी भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई.जिससे की शुक्राचार्य छटपटागए और कमण्डल से बाहर आ गए.

इसके बाद राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया.उसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को.तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया.और तभी राजा बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठे.और इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को प्राप्त हुई.

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धन प्राप्ति और स्वास्थ्य सुख पाने के लिए धन तेरस का त्‍योहार बेहद ही शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन से दीपावली के पावन पर्व और मां लक्षमी की पूजा उपासना की साधना आरम्भ होती है.कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है और कहते हैं इस दिन आयुर्वेदाचार्य धन्वं‍तरी के साथ यम देवता का भी पूजन किया जाता है.महाभारत के अनुसार भगवान श्री हरी नारायण की समुद्र मंथन लीला के समय ही आचार्य धन्वं‍तरी का प्राकट्य हुआ.और धन्वं‍तरी को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है.चिकित्सा महाविज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान श्री हरी विष्णु ने धन्वं‍तरी के रूप में अवतार लिया.

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लक्ष्मी के पूजन से पहले धन के देवता कुबेर की पूजा करना महत्वपूर्ण 

धनतेरस पर खरीददारी करना बेहद शुभ माना जाता है.मां लक्ष्मी के पूजन से पहले धन के देवता कुबेर की पूजा करना महत्वपूर्ण माना गया है.दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार होता है.जिसमें देव वैद्य धनवंतरि और लक्ष्मी जी के खजांची माने जाने वाले कुबेर की जाती है.मान्यताहै कि कुबेर धन का जोड़−घटाव रखने वाले हैं. वहीं धनवंतरि ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैद्य माने गए हैं.माना जाता है कि अगर सच्चे मन से धनतेरस की पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी घर में ठहर जाती हैं.और हमेशा धन-धान्य से भंडार भरे रखती हैं.

चांदी खरीदने से इनमें 13 गुना बढ़ती है संपत्‍त्‍िा

इस साल दीपोत्सव की धूम 5 नवंबर से 9 नवंबर तक रहेगी.दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है.और भाई दूज तक इसकी धूम रहती है.इस उत्सव में पांच दिन होते हैं.इसमे धनतेरस, छोटी दिवाली.बड़ी दिवाली.गोवर्धन पूजा और भाई दूज शामिल है.दीपोत्सव के पांचों दिन का अपना खास महत्व है.और हर दिन को एक अलग और खास तरह से मनाया जाता है.दीपोत्सव के पहले दिन 13 दीप जलाए जाते है.जिससे धन और आरोग्यता की प्राप्ति होती है.दूसरे दिन 14 दीप जलाकर यमदेव की पूजा की जाती है.दीपावली के दिन हर जगह दीए जलाकर पूरे घर को रौशन किया जाता है.वहीं गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत बनाकर उनकी पूजा की जाती है.और दीपोत्सव के आखिरी दिन बहन भाई के स्नेह का पर्व भाई दूज मनाया जाता है. धनतेरस हिंदुओं का बड़ा त्‍योहार है.हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन खरीदारी करने का खास महत्व है.इस दिन सोना, चांदी, और बरतन खरीदना विशेष शुभ माना जाता है. कहते हैं धनतेरस के दिन बर्तन, चांदी खरीदने से इनमें 13 गुना वृद्धि हो जाती है.