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सोनभद्र उम्भा मर्डर केस में अधिकारियों की भूमिका पर सवाल, जांच पूरी

सोनभद्र (Sonbhadra) के उभ्भा कांड (Umbha Murder Case) में राजस्व व जिला प्रशासन के कई अधिकारियों की भूमिका भी कटघरे में है.

Updated on: 15 Feb 2020, 11:46 AM

highlights

  • सोनभद्र के उभ्भा कांड में राजस्व व जिला प्रशासन के कई अधिकारियों की भूमिका भी कटघरे में है.
  • SIT जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. 
  • एसआईटी ने करीब 64 साल पुराने दस्तावेज भी खंगाले हैं.

नई दिल्ली:

सोनभद्र (Sonbhadra) के उभ्भा कांड (Umbha Murder Case) में राजस्व व जिला प्रशासन के कई अधिकारियों की भूमिका भी कटघरे में है. विशेष जांच दल (Special Investigation team) या एसआईटी की पड़ताल में नियमों को दरकिनार कर एक पक्ष को जमीन दिए जाने के तथ्य भी सामने आए हैं. सूत्रों का कहना है कि जल्द ही इस मामले में जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी जाएगी. इस नरसंहार के पीछे जमीन विवाद की जांच कर रही एसआईटी ने करीब 64 साल पुराने दस्तावेज भी खंगाले हैं.

सूत्रों का कहना है कि जमीन को एक पक्ष को स्थानांतरित किए जाने के दौरान भी आधार वर्ष खतौनी को नहीं देखा गया था. इस मामले को लेकर दर्ज कराई गई FIR में नामजद आरोपी तत्कालीन एसडीएम विजय प्रकाश तिवारी, सहायक भूलेख अधिकारी राजकुमार और साल 1989 में विवादित जमीन के स्थानांतरण का आदेश देने वाले तत्कालीन एसडीएम राबर्ट्सगंज अशोक कुमार श्रीवास्तव समेत कुछ अन्य की भूमिका कठघरे में है. इनके खिलाफ दस्तावेजी साक्ष्य विशेष जांच दल द्वारा जुटाए गए हैं.

अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व विभाग) की अगुआई वाले पैनल को यह जांच करनी थी कि कैसे तीन गांवों- उभा, सपाई और मूर्तिया में ग्राम सभा की जमीन एक समिति के नाम कर दी गई थी और इसके बाद ग्राम प्रधान ने इस पर कब्जा कर लिया था.


निचली अदालत में तीनों गांवों के गोंड आदिवासियों की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता नित्यानंद द्विवेदी ने कहा कि जमींदारी प्रथा के अंत के बाद बधार के राजा आनंद ब्रह्म साहा की 600 बीघा जमीन को राजस्व विभाग में बंजर घोषित कर दिया गया और इसे ग्राम सभा की भूमि के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया जिसे खेती करने के लिए गोंड आदिवासियों को दिया गया.
साल 1952 में आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा मिर्जापुर में तैनात थे. उन्होंने एक आदर्श सहकारी समिति लिमिटेड नाम की एक समिति बनाई, और बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी अपने ससुर महेश्वरी प्रसाद सिन्हा को इसका अध्यक्ष तथा अपनी पत्नी आशा मिश्रा को पदाधिकारी बनाया.
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इसके बाद 17 दिसंबर 1955 को लगभग 463 बीघा जमीन समिति के नाम स्थानांतरित हो गई, जिसके दस्तावेज गायब हो गए. सिन्हा की मौत होने तक जमीन उनके नाम पंजीकृत थी. छह सितंबर 1989 को 200 बीघा जमीन सिन्हा की बेटी आशा मिश्रा और पोती विनीता के नाम कर दी गई, जिन्होंने 144 बीघा जमीन दो करोड़ रुपये में ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त गुर्जर को बेच दी.
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सोनभद्र के जिला अधिकारी अंकित अग्रवाल ने कहा, "हमारे पास 1995 की फाइल को छोड़कर सभी संबंधित दस्तावेज हैं." उन्होंने कहा कि फाइल सोनभद्र के राजस्व विभाग में जमा नहीं कराई गई थी, जो 1989 में मिर्जापुर से निकाल कर अलग किया गया था.

गौर करने वाली बात है कि 1955 के दस्तावेजों के आधार पर योगी आदित्यनाथ ने जमीन विवाद के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है. उन्होंने कहा था, "कांग्रेस इन सबके लिए जिम्मेदार है क्योंकि यही पार्टी 1955 तथा 1989 में सत्ता में थी."