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उपचुनाव के नतीजों से उत्साहित समाजवादी पार्टी उतरेगी जमीन पर, 2022 के लिए बनाई यह रणनीति

सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2022 आम चुनाव से पहले पार्टी संगठन को गतिशील बनाने के साथ कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए खुद कई जिलों के दौरे पर निकलेंगे.

Updated on: 27 Oct 2019, 09:48 AM

लखनऊ:

समाजवादी पार्टी (सपा) ने उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में बड़ी सफलता हासिल की. इस चुनाव में सपा ने रामपुर की अपनी परंपरागत सीट जीतकर आजम खान का किला तो बचाया ही, साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सीटें छीनकर अपने को 'मुख्य विपक्षी दल' साबित कर दिया. उपचुनाव में आए नतीजों से उत्साहित समाजवादी पार्टी अब जमीन पर उतरेगी. समाजवादी पार्टी विधानसभा के आगामी चुनाव के लिए 2 साल पहले से ही 2022 के प्रचार में जुटेगी. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2022 आम चुनाव से पहले पार्टी संगठन को गतिशील बनाने के साथ कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए खुद कई जिलों के दौरे पर निकलेंगे. अखिलेश कई जिलों में साइकिल यात्रा का भी नेतृत्व कर सकते हैं.

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बीजेपी ने इस चुनाव को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी, जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सिर्फ रामपुर सीट पर प्रचार करने गए. इसके बावजूद सपा रामपुर, जलालपुर, जैदपुर सीट जीतने में कामयाब रही.बाराबंकी सीट पर 2014 के बीजेपी का ही कब्जा था. जिस पर समाजवादी पार्टी ने आज के चुनाव में हथिया लिया. इस सीट पर पहली बार वर्ष 2017 में भाजपा के उपेंद्र सिंह रावत ने जीत हासिल कर रिकॉर्ड बनाया था. उनके सांसद चुने जाने के बाद हुए उप चुनाव में बीजेपी लोगों का विश्वास नहीं हासिल कर सकी, जबकि सपा कामयाब रही.

अंबेडकर नगर की जलालपुर सीट पर सपा ने बसपा के गढ़ में सेंध लगाकर बड़ी कामयाबी हासिल की. यह बसपा के वर्तमान सांसद रितेश पांडेय के लोकसभा में जाने के कारण खाली हुई थी. जहां पर बसपा ने अपने विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा की पुत्री छाया वर्मा को मैदान में उतारा था, जो महज 709 वोटों से चुनाव हार गईं. रामपुर सीट सपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय थी. इस सीट पर सबकी निगाहें थीं. बीजेपी ने यहां पर पूरी ताकत झोंक रखी थी. इसे जीतकर सपा ने यहां पर अपना कब्जा जमाए रखा है. यहां से आजम खां की पत्नी तंजीन फातमा ने जीत दर्ज की है.

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समाजवादी पार्टी पहले ही अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर चुकी है, क्योंकि उसे गठबंधन पर यकीन नहीं है. वजह यह है कि गठबंधन के साथ समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और उस वक्त उन्हें न केवल सत्ता से बाहर किया गया, बल्कि राज्य विधानसभा में उन्हें केवल 47 सीट ही मिले, जिसके 403 सदस्य थे. साल 2019 में सपा ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया और इसे एक गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा था. हालांकि इस बार भी समाजवादी पार्टी को पांच सीटें ही मिली और बसपा ने सपा कार्यकर्ताओं पर बसपा प्रत्याशियों का समर्थन नहीं करने का आरोप लगाते हुए इस गठबंधन को तोड़ दिया. गठबंधन के साथ किया गया दोनों ही प्रयोग गलत साबित हुई, सपा का अब अन्य किसी भी विपक्षी दल के साथ कोई संबंध नहीं है.