इलाहाबाद कुलपति के समर्थन में आए प्रोफेसर, कहा- 'ईमानदारी से काम करने की सजा मिली'
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दबाव में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति ने इस्तीफा दे दिया है. जिसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय और संघटक महाविद्यालयों के शिक्षकों ने मंत्रालय के इस रवैये का विरोध किया
प्रयागराज:
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दबाव में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति ने इस्तीफा दे दिया है. जिसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय और संघटक महाविद्यालयों के शिक्षकों ने मंत्रालय के इस रवैये का विरोध किया, और इसे विश्वविद्यालय की स्वायत्तता में दखल बताते हुए राष्ट्रपति से अपील की है कि कुलपति के इस्तीफा को मंजूर ना किया जाए.
कुलपति रतन लाल हंगलू के कार्यकाल में अभी एक साल शेष था. लेकिन इन चार सालों में वह विवादों से घिरे रहे. जिससे आजिज आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया. यूनिवर्सिटी से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रोफेसर हंगलू विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के साथ समझौता नहीं करना चाहते थे.
गुरुवार की शाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉक्टर चितरंजन कुमार ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. कुलपति को संबोधित अपने त्यागपत्र में उन्होंने लिखा कि " ऐसे अशांत और कोलाहलपूर्ण वातावरण में किसी के लिए सहज भाव से कार्य करना संभव नहीं है. 2005 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था तब से आज तक के मात्र 14 वर्षों में विश्वविद्यालय में आठ कुलपतियों ने दायित्व संभाला. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्वविद्यालय में कुलपति का औसत कार्यकाल दो वर्ष से भी कम रहा. इलाहाबाद विश्वविद्यालय को अस्थिर करने वाली ताकतें हमेशा नेपथ्य में सक्रिय रहती हैं.
" पीआरओ ने त्यागपत्र में यह भी लिखा कि "कुलपति प्रोफेसर रतनलाल हांगलू पर न तो वितीय अनियमितता के आरोप थे न प्रशासनिक मनमानी के. कुलपति ने निस्वार्थ भाव से विश्वविद्यालय की सेवा की शायद यही उनका दोष है? कुलपति ने विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेज में पीजी और पीएचडी की कक्षाएं आरंभ करवाई क्या यही उनका दोष है? कुलपति ने 22 वर्षों बाद विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह संपन्न करवाया क्या यही उनका दोष है? क्या यह मान लिया जाए कि ईमानदारी से काम करने वाला व्यक्ति अंततः प्रताड़ित ही होता है? कुलपति ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय को यथास्थतिवाद और जड़ता से निकाला क्या यही उनका दोष है? कुलपति प्रो रतनलाल हांगलू का त्यागपत्र देना विश्वविद्यालय के लिए काला दिन है. ऐसे अशांत माहौल में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्य करना मेरे लिए संभव नहीं है."
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