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उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) को बांटने की पैरवी सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने की थी, फिर भी नहीं बांट पाई कांग्रेस

आजकल उत्‍तर प्रदेश के बंटवारे को लेकर चहुंओर चर्चा है. सोशल मीडिया से लेकर नुक्‍कड़ तक प्रस्‍तावित बंटवारे की खबर हर जुबां पर तैर रही है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि उत्‍तर प्रदेश के विशाल आकार को लेकर हमारे पुराने नेताओं की क्‍या सोच थी.

Updated on: 29 Sep 2019, 03:49 PM

highlights

  • राज्‍य पुनर्गठन आयोग के सदस्‍य केएम पणिक्‍कर भी उत्‍तर प्रदेश के आकार को लेकर थे चिंतित
  • बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने अपने किताब में भाषायी आधार पर राज्‍यों को बांटने की वकालत की थी
  • अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार उत्‍तर प्रदेश को बांटा था, नवंबर 2000 में अलग राज्‍य बना था उत्‍तराखंड

नई दिल्‍ली:

आजकल उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बंटवारे को लेकर चहुंओर चर्चा है. सोशल मीडिया (Social Media) से लेकर नुक्‍कड़ तक प्रस्‍तावित बंटवारे की खबर हर जुबां पर तैर रही है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि उत्‍तर प्रदेश के विशाल आकार को लेकर हमारे पुराने नेताओं की क्‍या सोच थी. बात करते हैं पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt Jawaharlal Nehru) की. पंडित नेहरू (Pandit Nehru) ने उत्‍तर प्रदेश के बारे में कहा था, मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमत हूं कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा (Uttar Pradesh Partition) होना चाहिए. इसे चार राज्यों में विभाजित किया जा सकता है. हालांकि मुझे संदेह है कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कुछ साथी मेरे विचार को पसंद करेंगे. संभवत: मुझसे विपरीत राय रखने वाले साथी इसके लिए अन्य राज्यों के हिस्सों को शामिल करने की बात कहें. 7 जुलाई 1952 को पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit JawaharLal Nehru) ने लोकसभा (Lok Sabha) में यह बात कही थी.

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1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग (State Re-Structuring Commission) का गठन किया गया था. तब राज्‍य पुनर्गठन आयोग ने उत्तर प्रदेश के विभाजन (Partition Of Uttar Pradesh) की सिफारिश नहीं की, लेकिन आयोग के एक सदस्य केएम पणिक्कर (KM Pannikkar) इस राज्‍य के विशाल आकार को लेकर चिंतित थे. पणिक्‍कर ने कहा था, भारतीय संविधान (Indian Constitution) की सबसे बड़ी और मूलभूत कमजोरी किसी एक राज्य विशेष और शेष अन्य के बीच व्यापक असमानता का होना है.

पणिक्‍कर ने नए राज्य आगरा के निर्माण का प्रस्ताव दिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के मेरठ, आगरा, रुहेलखंड और झांसी मंडल को शामिल करने का प्रस्‍ताव था. उन्होंने मेरठ मंडल में देहरादून और रुहेलखंड मंडल में पीलीभीत को शामिल नहीं करने सुझाव दिया था. उन्होंने भिंड के चार जिलों समेत विंध्य प्रदेश से दतिया, मुरैना, ग्वालियर और मध्य भारत के शिवपुरी को नए राज्य आगरा में शामिल करने की बात कही थी, लेकिन पुनर्गठन आयोग के अन्य सदस्यों एस फजल अली और एचएन कुंजरू ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया था.

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संविधान सभा के अध्‍यक्ष रहे बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने 1955 में आई किताब "थॉट्स एंड लिंग्विस्टिक स्टेट्स" में भाषायी आधार पर राज्यों के विभाजन को लेकर विचार व्‍यक्‍त किए थे. उन्होंने प्रशासकीय कुशलता, राजव्यवस्था पर इतने बड़े राज्य के असमान प्रभाव को घटाने और छोटे राज्यों में अल्पसंख्यकों के हित को ध्‍यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के तीन टुकड़े किए जाने की बात कही थी.

इन नेताओं के बाद उत्‍तर प्रदेश के बंटवारे को लेकर कोई भी नेता गंभीर नहीं दिखा. 21वीं सदी की शुरुआत में तत्‍कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 9 नवंबर 2000 को उत्‍तर प्रदेश का बंटवारा किया और उत्‍तराखंड एक अलग भारत का 27वां राज्‍य बना. हालांकि अलग बुंदेलखंड की मांग को अब तक नजरंदाज ही किया जाता रहा है.

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2012 में मायावती की सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यूपी को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजा था. मायावती सरकार ने अवध प्रदेश, बुंदेलखण्ड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश के रूप में उत्‍तर प्रदेश को बांटने की पैरवी की थी, जो परवान नहीं चढ़ सकी.