पुलवामा के एक साल : PM मोदी के वाराणसी से शहीद हुए थे रमेश यादव, परिवार ने कहा 'कुछ वादे अभी भी अधूरे'
पिछले साल पुलवामा हमले (Pulwama Attack) में रमेश यादव (Ramesh Yadav) को शहीद हुए एक साल गुजर गए. लेकिन शहीद रमेश यादव के घरवालों का हाल आज भी बेहाल है.
वाराणसी:
पिछले साल पुलवामा हमले (Pulwama Attack) में रमेश यादव (Ramesh Yadav) को शहीद हुए एक साल गुजर गए. लेकिन शहीद रमेश यादव के घरवालों का हाल आज भी बेहाल है. उस समय तमाम वादे सरकार और जनप्रतिनिधियों ने किये थे लेकिन उसमे से अधिकाँश वादे पुरे ही नहीं हुए नहीं हुए. किसी ने दोबारा रमेश के परिवार वालों की सुध लेने की जहमत नहीं उठायी. सरकारी मदद के अलावा नेताओं के वादे और शहीद रमेश की मूर्ति और गांव का रास्ता, तमाम वादे सिर्फ वादे ही रह गए.
शाहदत के एक साल बाद ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर न्यूज़ स्टेट / न्यूज़ नेशन ने जाना शहीद परिवार का हाल. वाराणसी शहर से 20 किलोमीटर दूर चौबेपुर थाना अंतर्गत तोफापुर गांव जहां की सड़कें आज भी नहीं बनी हैं और रमेश के वृद्ध पिता श्याम नारायण यादव पेट भरने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत करते हैं और दूध बेचने साइकिल से शहर जाते हैं. एक साल कैसे गुजरा इस सवाल पर बड़े दर्द से उन्होंने कहा कि ''सरकार और उसके नुमाइंदे तो हमको भूल ही गए हैं और उनके अधिकांश आश्वासन और वादे पूरे ही नहीं हुए. सरकार ने कहा था की शहीद रमेश यादव की मूर्ति लगेगी उनके नाम से सड़क बनेगी लेकिन कुछ नहीं हुआ. कोई झांकने तक नहीं आता कि कैसे हम गुजर बसर कर रहे हैं. रात दिन हम अपने बेटे के दुःख में हम जल रहे हैं. जो सरकारी मदद थी उसके अलावा कुछ भी नहीं मिला.''
शहीद रमेश यादव की मां और बेटा।
शहीद रमेश यादव की माँ राजमती यादव आज भी अपने बेटे को याद करके सिसक उठती हैं. गोद में रमेश के बेटे को लिए आँसुओं के साथ ये सवाल करती हैं कि हम लोगो की जिंदगी कैसे कटेगी? बेटा ही एक सहारा था जो चला गया और हमारे बेटे का एक भी सपना पूरा नहीं हुआ. उसके नाम से गेट बनाना था वो भी नहीं बना. उन्होंने बताया कि बेटे ने कहा था जब आऊंगा तो घर बनवाऊंगा.
शहीद रमेश यादव की पत्नी रेनू।
शहीद रमेश यादव की पत्नी रेनू को सरकारी नौकरी तो मिल गयी है. आज वो उसी के सहारे दिन काट रही हैं. वो कहती हैं कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वो देश के लिए शहीद हो गये. लेकिन इस नौकरी के अलावा सरकार ने कुछ नहीं दिया. कोई भी वादा पूरा नहीं किया. किसी तरह उनकी यादों के सहारे जिंदगी कट रही है. उन्होंने कहा कि यह भी वादा किया गया था कि शहीद के नाम से स्मारक और ग्राउंड बनेगा. लेकिन कुछ नहीं हुआ. सारे वादे अधूरे रह गए. अपना घर बनवाने का जो सपना उन्होंने देखा था वो भी अधूरा रह गया. अपनी आखिरी मुलाकात याद करते हुए रेनू कहती हैं कि उनके पति ने कहा था कि एक महीने बाद लौटेंगे. लेकिन वह दो दिन बाद ही शहीद हो गए. उनके सारे सपने अधूरे रह गए.
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