logo-image

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में बालू खदानों में लगती है आदिवासी मजदूरों की 'मंडी'

जहां सिर्फ मजबूत कद-काठी वाले मजदूरों की छंटनी पर ही काम मिलता है. उत्तर प्रदेश में सोनभद्र ही एकलौता जिला है, जहां 60 से 65 फीसदी आबादी आदिवासियों की है.

Updated on: 28 Feb 2020, 09:29 AM

Lucknow:

उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल सोनभद्र जिले में सरकारी और गैर सरकारी तमाम कारखाने होने के बाद भी बेरोजगारी का आलम यह है कि दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए बालू खदानों में मजदूरी के लिए आदिवासियों की 'मंडी' लगती है. जहां सिर्फ मजबूत कद-काठी वाले मजदूरों की छंटनी पर ही काम मिलता है. उत्तर प्रदेश में सोनभद्र ही एकलौता जिला है, जहां 60 से 65 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. यहां बिजली उत्पादन के अलावा अन्य कई सरकारी एवं गैर सरकारी कारखाने भी हैं. फिर भी बेरोजगारी का आलम यह है कि गरीबी का दंश झेल रहे आदिवासियों के मजदूरी के लिए वैध और अवैध रूप से चल रही बालू की खदानों में 'मजदूर मंडी' लगती है.

ज्यादातर खदानों में भारी-भरकम मशीनों से बालू का खनन होता है, जहां कुछ मजबूत कद-काठी वाले आदिवासी युवकों को चिह्नित कर काम पर लगा लिया जाता है. बानगी के तौर पर दुधी तहसील क्षेत्र की कनहर नदी के कोरगी, पिपराडीह और नगवा बालू घाट को ही ले लीजिए. यहां खनिज विभाग ने हाल ही में बालू खनन का आवंटन इस प्रतिबंध के साथ किया है कि भारी-भरकम मशीनों से नदी की बीच जलधारा में बालू का खनन न किया जाए, लेकिन माफिया खनन नीति को दरकिनार अपने हिसाब से कार्य को अंजाम दे रहे हैं. और तो और, जेसीबी जैसी भारी-भरकम मशीनों की रखवाली के लिए 'दिहाड़ी' पर पुलिसकर्मी भी तैनात हैं.

यह भी पढ़ें- इलाज के अभाव में महिला ने अस्पताल के सामने सड़क पर दिया बच्चे को जन्म

इसी नदी की कोरगी बालू घाट पर काम की तलाश में जाने वाले डुमरा गांव के असरफी, सोमारू, अमर शाह, शाहगंज का मेवालाल, पिपराडीह गांव के रूप शाह, विजय, दिलबरन और मान सिंह जैसे दर्जनों आदिवासी मजदूर प्रतिदिन सुबह 'मजदूर मंडी' में हाजिर होते हैं, लेकिन बमुश्किल कुछ मजबूत कद-काठी वाले युवकों को ही खदान में काम मिल पाता है.

डुमरा गांव के आदिवासी मजदूर सोमारू ने गुरुवार को बताया कि वह लगातार पांच दिन से अपने साथियों के साथ कोरगी बालू खदान की मजदूर मंडी में जा रहे हैं, लेकिन खनन पट्टाधारक यह कहकर काम नहीं दे रहा कि अभी मशीनों से काम हो रहा है, जब मजदूरों की जरूरत होगी, तब बुलाया जाएगा.

उन्होंने बताया, "गांव में मनरेगा योजना के तहत भी कोई काम नहीं मिल रहा, ऐसी स्थिति में बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं. अब पलायन के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा."

शाहगंज गांव के मेवालाल ने बताया, "मजदूरों ने मशीनों से बालू खनन का विरोध किया तो ठेकेदार ने मशीनों की रखवाली के लिए 'दिहाड़ी' पर पुलिसकर्मी तैनात करवा लिए हैं. ज्यादा विरोध करने पर पुलिस उनके साथ मारपीट भी करती है. दो दिन पूर्व कोरगी घाट में पुलिस ने एक मजदूर को बुरी तरह पीटा है, उसका अब भी अस्पताल में इलाज चल रहा है."

गुरुवार को जब आईएएनएस ने खनिज अधिकारी के.के. राय से जिले की नदियों में चल रही बालू की खदानों के बारे में जानकारी चाहा तो उन्होंने कहा, "ऊपर के अधिकारियों ने मीडिया को कुछ भी बताने या बाइट देने से मना किया है, हम कुछ भी जानकारी नहीं देंगे."

सोन और हरदी पहाड़ी में तीन हजार टन सोना मिलने की पुष्टि सबसे पहले मीडिया से इन्हीं अधिकारी ने की थी, जिससे सोनभद्र अचानक से जिला विश्वभर में चर्चा में आ गया था और बाद में जीएसआई को विज्ञप्ति जारी कर 'सोना नहीं, स्वर्ण अयस्क' मिलने की बात कहकर खंडन करना पड़ा था. शायद इस गलत बयानी की वजह से उन्हें मुंह बंद करने के लिए कहा गया होगा.

अलबत्ता, दुधी तहसील के उपजिलाधिकारी (एसडीएम) सुशील कुमार यादव ने कहा, "खनन नीति के तहत आवंटित बालू खदानों में नियमानुसार बालू का खनन हो रहा है. समय-समय पर खदानों का निरीक्षण भी किया जाता है."

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "आदिवासियों की आर्थिक स्थिति कुछ ज्यादा ही कमजोर है, इसलिए हो सकता है कि बड़ी तादाद में मजदूरों के पहुंचने पर खदान मालिक सबको काम न दे पा रहे हों."