BHU में प्रदर्शन खत्म, लेकिन छात्रों ने पूछे ये 10 सवाल
काशी हिंदू विश्वविद्याल में संस्कृत के प्रफेसर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में 15 दिनों से चल रहा छात्रों का धरना खत्म जरूर हो गया है. लेकिन छात्रों ने आगे भी आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है.
लखनऊ:
काशी हिंदू विश्वविद्याल में संस्कृत के प्रफेसर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में 15 दिनों से चल रहा छात्रों का धरना खत्म जरूर हो गया है. लेकिन छात्रों ने आगे भी आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है. छात्र फिलहाल पठन पाठन का विरोध कर रहे हैं. छात्रों ने बीएचयू प्रशासन से नियुक्तियों पर नियमों को लेकर सवाल पूछा है. छात्रों का कहना है कि इन सवालों के जवाब मिलने के बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी. छात्रों ने पीएम मोदी के जनसम्पर्क कार्यालय में अपना ज्ञापन भी सौंपा.
छात्रों ने कुलपति से पूछा है कि इस नियुक्ति प्रक्रिया में विश्वविद्यालय ने यूजीसी के किस शार्ट लिस्टिंग प्रक्रिया को अपनाया है? विश्वविद्यालय संविधान के अनुसार नियुक्ति प्रक्रिया सम्पन्न हुई है? क्या बीएचयू ऐक्ट के 1904, 1096, 1915, 1955, 1966 और 1969 ऐक्ट को केंद्र में रखकर यह नियुक्ति की गई है?
संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग में क्या संकाय के अन्य सभी विभागों के अनुरूप ही शार्ट लिस्टिंग हुई है? क्या संकाय के सनातन धर्म के नियमों को ध्यान में रखकर शार्ट लिस्टिंग की गई है? बीएचयू प्रशासन ने आंदोलनरत छात्रों की ओर से पूछे गए इन सवालों का 10 दिन के अंदर लिखित जवाब देने का आश्वासन दिया है.
बीएचयू प्रशासन की तरफ से बताया गया कि धर्म विज्ञान संकाय के सहित्य विभाग में फिरोज खान का सहायक प्रोफेसर के रूप में चयन हुआ है. चीफ प्रॉक्टर ओ पी राय ने न्यूज़ स्टेट से बात करते हुए साफ़ कहा की डॉ फिरोज खान की नियुक्ति यूजीसी के नियमो के तहत की गयी है और इस पर कोई संदेह नहीं है. जिन नियमों के तहत विरोध किया गया था वह आजादी के पहले से बने थे. आजादी के बाद जो केंद्र सरकार ने नियम बनाये उसे फॉलो किया गया क्योंकि ये विश्वविद्यालय केंद्र शासित विश्वविद्यालय है.
क्यों प्रदर्शन कर रहे थे छात्र
डॉ फिरोज की नियुक्ति के विरोध में छात्रों ने 16 दिनों तक प्रदर्शन किया. धरने की अगुवाई कर रहे PHD स्कॉलर चक्रपाणि ओझा के मुताबिक यह प्रदर्शन आगे भी जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि वह फिरोज खान का विरोध नहीं कर रहे हैं. अगर उनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय के किसी भी अन्य विभाग में एक संस्कृत अध्यापक के रूप में होती तो वह इसका विरोध नहीं करते. यह समझने की जरूरत है कि संस्कृत विद्या कोई भी पढ़ और पढ़ा सकता है. लेकिन धर्म विज्ञान की बात जब कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति करेगा तो आखिर उसकी विश्वसनीयता कैसे बरकरार रहेगी.
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