मॉब लिंचिंग पर यूपी में आजीवन कारावास की सजा, लापरवाह अधिकारी भी नहीं बचेंगे!
राज्य विधि आयोग ने ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया है. इसमें मॉब लिंचिंग के दोषियों को सात साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा की सिफारिश की गई है.
highlights
- विधि आयोग ने सजा के प्रावधानों का मसौदा सीएम योगी को सौंपा.
- लापरवाह सरकारी अधिकारी भी होंगे सजा के हकदार.
- 128 पन्नों की रिपोर्ट मसविदे समेत सीएम को दी गई.
नई दिल्ली.:
उत्तर प्रदेश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेहद गंभीरता से लिया है. उनकी पहल पर राज्य विधि आयोग ने ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया है. इसमें मॉब लिंचिंग के दोषियों को सात साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा की सिफारिश की गई है. इसके साथ ही काम में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारी या जिलाधिकारी को भी कम से कम तीन साल की सजा देने की बात कही है.
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विद्यमान कानून नाकाफी
विधि आयोग के अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) आदित्य नाथ मित्तल ने मॉब लिंचिंग की रिपोर्ट के साथ तैयार मसौदा विधेयक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष पेश किया है. इस 128 पन्नों की रिपोर्ट में यूपी में मॉब लिंचिंग के अलग-अलग मामलों का जिक्र है. इसमें 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कानून को तत्काल लागू करने की संस्तुति की गई है. आयोग ने रिपोर्ट में इस बात का खासतौर पर जिक्र किया है कि वर्तमान कानून मॉब लिंचिंग से निपटने में सक्षम नहीं है. ऐसी दुस्साहसिक घटनाओं के लिए एक अलग कानून होना चाहिए.
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आजीवन कारावास तक की सजा
आयोग ने मॉब लिंचिंग की प्रकृति के अनुरूप अपराधी को 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का सुझाव दिया है. आयोग ने कहा है कि इस कानून को उत्तर प्रदेश मॉब लिंचिंग निषेध एक्ट नाम दिया जा सकता है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों और जिला अधिकारियों की जिम्मेदारियों को भी निर्धारित किया है. मॉब लिंचिंग के दौरान यदि इनकी ड्यूटी में लापरवाही बरतने की बात सामने आती है, तो उन्हें दंडित करने का प्रावधान भी है. साथ ही कहा गया है कि पीड़ित व्यक्ति के परिवार को चोट या जान-माल के नुकसान पर मुआवजे का भी प्रावधान होना चाहिए.
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7 सालों में मॉब लिंचिंग के 50 मामले
साल 2012 से 2019 से आंकड़ों पर नजर डालें तो यूपी में मॉब लिंचिंग के 50 मामले सामने आए हैं. इसमें से 11 में पीड़ित की मौत हो गई. 25 बड़े मामलों में गोरक्षकों द्वारा हमले भी शामिल थे. कानून आयोग की सचिव सपना चौधरी का कहना है कि आयोग ने गहराई से अध्ययन करने के बाद इस जरूरी कानून की सिफारिश की है. इस रिपोर्ट में गोमांस की खपत के संदेह में मोहम्मद अखलाक की 2015 की हत्या सहित राज्य में लिंचिंग और भीड़ हिंसा के विभिन्न मामले शामिल किए गए हैं.
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बुलंदशहर हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध सिंह का भी जिक्र
आयोग की रिपोर्ट में दिसंबर में बुलंदशहर हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या भी शामिल है. मॉब लिंचिंग की घटनाएं फरुखाबाद, उन्नाव, कानपुर, हापुड़ और मुजफ्फरनगर में हुई हैं. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन घटनाओं में पुलिस भी शिकार बन रही है क्योंकि लोग उन्हें अपना दुश्मन समझने लगे हैं. पैनल ने मसौदा विधेयक तैयार करते समय विभिन्न देशों और राज्यों के कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का अध्ययन किया.
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