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फरीदाबाद डीसीपी आत्महत्या : ब्लैकमेल की 'वजह' क्यों छिपा गए कपूर?

एनआईटी फरीबाद में पदस्थ हरियाणा पुलिस के डीसीपी विक्रमजीत सिंह कपूर ने 'आत्महत्या' जैसा आत्मघाती कदम अचानक नहीं उठाया. इसकी शुरुआत नवंबर, 2018 के शुरू में हो गई थी.

Updated on: 15 Aug 2019, 06:18 PM

फरीदाबाद:

एनआईटी फरीबाद में पदस्थ हरियाणा पुलिस के डीसीपी विक्रमजीत सिंह कपूर ने 'आत्महत्या' जैसा आत्मघाती कदम अचानक नहीं उठाया. इसकी शुरुआत नवंबर, 2018 के शुरू में हो गई थी.

पुलिस अपने डीसीपी की इस भयावह मौत की जांच कर ही रही है, साथ ही यह भी पता लगाने की कोशिश में है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही, जिसके चलते विक्रमजीत सिंह इतना खतरनाक कदम उठाने से ठीक पहले लिखे गए सुसाइड नोट में खुद को ब्लैकमेल किए जाने की 'वजह' को साफ-साफ छिपा ले गए.

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विक्रमजीत ने सुसाइड नोट में मातहत इंस्पेक्टर अब्दुल शाहिद और एक आम नागरिक द्वारा उन्हें ब्लैकमेल किए जाने की बात का जब खुलकर जिक्र किया है, तो फिर उन्हें ब्लैकमेल किए जाने की वजह भला विक्रमजीत से ज्यादा बेहतर कोई दूसरा क्यों और कैसे जान सकता है? ये तमाम सवाल आईएएनएस की पड़ताल में उभरकर सामने आए हैं.

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घटना के बाद हरियाणा पुलिस विभाग में जिस तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है, उन्हें आसानी से नजरंदाज कर पाना आसान नहीं. इसी बीच गुरुवार को दोपहर करीब साढ़े तीन बजे फरीदाबाद पुलिस के प्रवक्ता सूबे सिंह ने भी आईएएनएस से बातचीत के दौरान दबी जुबान में स्वीकार किया है कि शायद शाम तक आरोपी एसएचओ थाना भूपानी (नहरपार), फरीदाबाद इंस्पेक्टर अब्दुल शाहिद की अधिकृत गिरफ्तारी का खुलासा कर दिया जाए. फिलहाल आरोपी और महकमे का यह विवादित और हाईप्रोफाइल इंस्पेक्टर फरीदाबाद पुलिस की हिरासत में है.

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हरियाणा पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के बाद आईएएनएस ने फरीदाबाद से प्रकाशित होने वाले इस साप्ताहिक हिंदी अखबार को खोजा, जिसमें छपी खबरों को इस पूरे घटनाक्रम की 'धुरी' समझा जा रहा है.

फरीदाबाद पुलिस के प्रवक्त सूबे सिंह के मुताबिक, संबंधित अखबार का संपादक/ रिपोर्टर अभी पुलिस की पकड़ से बाहर है. सुसाइड नोट में डीसीपी कपूर ने जिस 'सिविलियन' का जिक्र किया है, वह यही वांछित शख्स है. इस साप्ताहिक अखबार के 2 से 8 जून, 2019 के संस्करण में 'अपराध नियंत्रण की जगह सट्टा व्यापारी में डीसीपी कपूर की ज्यादा रुचि' शीर्षक से तीन-चार कॉलम की एक खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई है. खबर के साथ इनसेट में बी-वर्दी आईपीएस विक्रमजीत सिंह कपूर की तस्वीर भी लगी है.

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खबर में लेखक/रिपोर्टर ने अपने पास एक सनसनीखेज वीडियो होने का जिक्र किया है. खबर के मुताबिक, वीडियो चार दिन (4-5 नवंबर, 2018 से) तक शूट किए जाने का जिक्र है. खबर में दावा किया गया है कि संबंधित वीडियो डीसीपी कपूर के ऑफिस कैंपस में उन चार दिनों में रोजाना 10 से 1 बजे के बीच बनाया गया. इन चार दिनों में करीब 35 सट्टेबाजों और 18 शराब तस्करों द्वारा डीसीपी ऑफिस परिसर में हो रही 'मंथली' वसूली का जिक्र खुद सट्टेबाज करते हुए दिखाई सुनाई दे रहे हैं. (आईएएनएस इस वीडियो और उसके आधार पर प्रकाशित इस खबर की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है).

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खबर के मुताबिक, एक सट्टेबाज को वीडियो में कहते सुना जा रहा है कि वे लोग (शराब तस्कर और सट्टेबाज) साहब (डीसीपी कपूर) को खुद ही डायरेक्ट अपने हाथ से रिश्वत देते हैं. हांलांकि खबर में कहीं भी इसकी पुष्टि के लिए लेखक/ पत्रकार ने डीसीपी विक्रजीत सिंह कपूर से बात करके उनका पक्ष जानने का जिक्र नहीं किया है. यानी खबर एकतरफा लिखी गई है. ऐसे में वीडियो की सत्यता पर भी सवाल पैदा होता है. साथ ही यह तथ्य भी संदेह के घेरे में आ जाता है कि वीडियो में जिन लोगों को सट्टेबाज या शराब तस्कर के रूप में दिखाया या बताया गया है, वास्तव में वे शराब तस्कर या सट्टेबाज हैं भी या नहीं!

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साप्ताहिक अखबार, सट्टेबाजों और शराब तस्करों के हवाले से इसी खबर में आगे लिखता है कि "डीसीपी के इस सीधे लेन-देन से साहब के नीचे वाले, यानी मातहत पुलिस अफसरों की ऊपरी कमाई पर सीधा और विपरीत प्रभाव पड़ने लगा. डीसीपी की इस हरकत से बौखलाए मातहतों (एसएचओ/थानेदार-हवलदार-सिपाही) ने जब इलाके के तस्करों को धमकाना शुरू किया, तो इससे उनमें हड़कंप मच गया." इसके बाद ही डीसीपी के नीचे वाले पुलिसकर्मी, सट्टेबाज-शराब तस्कर सब डीसीपी कपूर के खिलाफ लामबंद हो गए.

इतना ही नहीं, खबर में तो वीडियो में कैप्चर हुए सट्टेबाजों के हवाले से यहां तक जिक्र किया गया है कि "डीसीपी कपूर चार-चार महीने की मंथली एक साथ मांगने लगे थे. इसके पीछे सट्टेबाजों की दलील थी कि कल को डीसीपी साहब का चार महीने से पहले ही कहीं और ट्रांसफर हो गया तो उनकी बाकी मंथली की रकम फंस जाएगी."

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इसी तरह उस साप्ताहिक अखबार के 24 से 30 मार्च, 2019 के संस्करण में भी डीसीपी कपूर साहब को सीधे निशाने पर लेते हुए 'पुलिस लूटमारी में मस्त, जनता गुंडागर्दी से त्रस्त' शीर्षक खबर प्रकाशित हुई है. इसमें भी इनसेट में डीसीपी कपूर की वर्दी वाली फोटो लगाई गई है.

अगर इन तमाम बिंदुओं को देखा जाए तो साफ हो जाता है कि हरियाणा पुलिस के इस प्रमोटी आईपीएस ने सुसाइड की योजना यूं ही अचानक नहीं बना डाली! साथ ही ऐसे में सवाल यह भी पैदा होता है कि जब सुसाइड नोट में मातहत एसएचओ इंस्पेक्टर अब्दुल शाहिद और एक सिविलियन (संभवत: हिंदी साप्ताहिक अखबार संचालक/ रिपोर्टर) द्वारा ब्लैकमेल किए जाने का खुलासा डीसीपी कपूर ने किया, तो फिर वे ब्लैकमेल किए जाने की वजहों को भला क्यों छिपा या फिर दबा गए? उनके द्वारा सुसाइड नोट में उन्हें ब्लैकमेल किए जाने की वजहों का भी खुलासा दो-टूक किया जाना चाहिए था.