मंदिर प्रबंधन का मामला: न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लिया
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य में मंदिरों और धर्मार्थ संस्थाओं के प्रबंधन के बारे में कई तीखे सवाल पूछे और टिप्पणी की कि राज्य में ‘अराजकता’ की स्थिति है.
नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य में मंदिरों और धर्मार्थ संस्थाओं के प्रबंधन के बारे में कई तीखे सवाल पूछे और टिप्पणी की कि राज्य में ‘अराजकता’ की स्थिति है. न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उप्र के बुलंदशहर में एक प्राचीन मंदिर के प्रबंधन से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आड़े हाथ लिया. पीठ ने सवाल किया कि क्या आप अपने शासकीय आदेश से कुछ भी कर सकते हैं? यह तो अराजकता है.
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पीठ ने सवाल किया कि क्या राज्य में कोई भी व्यक्ति मंदिर का निर्माण करके जनता से धन एकत्र कर सकता है. पीठ ने राज्य सरकार को छह सप्ताह के बीच इस तथ्य से अवगत कराने का निर्देश दिया कि क्या वह मंदिरों और धर्मार्थ संस्थाओं प्रबंधक से संबंधित मसलों के लिये कोई कानून बनायेगी ? शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से सवाल किया कि उसने प्रदेश में मंदिरों और धर्मार्थ संस्थाओं के प्रबंधन के लिये अभी तक कोई कानून क्यों नहीं बनाया? न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि राज्य ने इस बारे में अभी तक केन्द्रीय कानून को क्यों नहीं अंगीकार किया?
पीठ ने पिछले सप्ताह अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि यद्यपि यह मामला 2010 से लंबित है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता यह बताने की स्थिति में ही नहीं थे कि क्या इस बारे में कोई कानून बनाया गया है. पीठ ने 17 अक्टूबर को अपने आदेश में कहा था, 'इस तथ्य के मद्देनजर, हमारे पास उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव/संबंधित सचिव को व्यक्तिगत रूप से 22 अक्टूबर को उपस्थित होने का निर्देश देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.'
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शीर्ष अदालत बुलंदशहर में करीब 300 साल पुराने इस मंदिर में श्रृद्धालुओं द्वारा दिए गए चढ़ावे को ‘पंडों’ में वितरित करने का आदेश देने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
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