लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाएगा CAA का पाठ, सिलेबस में शामिल करने की तैयारी
यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस में भारतीय राजनीति में सम-सामयिक मुद्दे के नाम से एक पेपर को शामिल करने के प्रस्ताव की तैयारी है.
लखनऊ:
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर देशभर में बहस हो रही है. एक तरफ इसके विरोध में स्वर उभर रहे हैं तो वहीं इसके समर्थन में भी एक बड़ा समूह खड़ा है. इन सब के बीच अब सीएए को लखनऊ यूनिवर्सिटी (Lucknow University) के पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस में एक टॉपिक के रूप में शामिल करने की तैयारी हो रही है. इसको सिलेबस (Syllabus) में शामिल करने के लिए एक प्रस्ताव बनाने की तैयारी हो रही है.
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दरअसल, यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस में भारतीय राजनीति में सम-सामयिक मुद्दे के नाम से एक पेपर को शामिल करने के प्रस्ताव की तैयारी है. जिसमें नागरिकता संशोधन को एक टॉपिक के रूप में इस पेपर में शामिल करने का भी प्रस्ताव तैयार किया जाएगा. इस प्रस्ताव को बोर्ड ऑफ स्टडीज में भेजा जाएगा, वहां से ये प्रस्ताव पास होने के बाद इसे बोर्ड ऑफ फैकल्टी में भेजा जाएगा. यहां से इस प्रस्ताव के पास होने के बाद इसे एकेडमिक काउंसिल के पास भेजा जाएगा. अगर यहां से ये प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के छात्रों को नागरिकता संशोधन का कानून पढ़ाया जाएगा.
हालांकि उससे पहले इस मुद्दे को लेकर अगले महीने लखनऊ विश्वविद्यालय में वाद विवाद की प्रतियोगिता होने जा रही है. जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ लखनऊ के और कई कॉलेजों के छात्र हिस्सा लेंगे. लखनऊ विश्वविद्यालय की पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट की हेड शशि शुक्ल के मुताबिक, इस बार छात्रों की तरफ से ये प्रस्ताव आया था कि वार्षिक वाद विवाद प्रतियोगिता को नागरिकता संशोधन के मुद्दे पर कराया जाए. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर डिबेट कराने का मकसद ये है कि लोगों को पता चले कि वास्तव में ये मुद्दा क्या है.
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वही लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस में नागरिकता संशोधन कानून को शामिल करने की तैयारी पर यहां के छात्रों का भी कहना है कि इसे सिलेबस में शामिल किया जाए, ताकि इस मुद्दे के बारे में छात्रों के साथ-साथ लोगों को भी पता चले. छात्रों का ये भी कहना है कि जिस कानून को लेकर कई लोगों में भ्रम जैसा माहौल है. उसकी सही जानकारी के लिए इस विषय को सिलेबस में शामिल करना बहुत ज़रूरी है. वही कुछ छात्रों का ये भी कहना है कि इसे दूसरे विश्वविद्यालयों के सिलेबस में भी शामिल करने की जरूरत है.
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