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'बाबर नहीं बल्कि औरंगजेब ने ढहाया मंदिर'

अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राममंदिर के विवाद की सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन सुनवाई के बीच एक पूर्व आईपीएस अधिकारी द्वारा लिखी गई किताब में दावा किया गया है कि राम मंदिर बाबर के शासन में नहीं औरंगजेब के शासनकाल में गिराया गया था.

Updated on: 01 Sep 2019, 06:59 PM

अयोध्या:

अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राममंदिर के विवाद की सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन सुनवाई के बीच एक पूर्व आईपीएस अधिकारी द्वारा लिखी गई किताब में दावा किया गया है कि राम मंदिर बाबर के शासन में नहीं औरंगजेब के शासनकाल में गिराया गया था. किताब में ब्रिटिशकाल के पिछले पुराने रिकॉर्ड, पुराने संस्कृत लेख और पुरातात्विक खुदाई की समीक्षाएं हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि अयोध्या में भगवान राम के जन्म के स्थान पर मंदिर मौजूद था, जिस पर बाद में मस्जिद बनाई गई.

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अयोध्या रीविजिटेड शीर्षक की किताब को 1972 बैच के सेवा निवृत्त आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने लिखी है.

कुणाल बिहार के मूल निवासी हैं और अपने कार्यकाल में एक पुलिस अधिकारी के साथ-साथ एक प्रशासक और बिहार बोर्ड ऑफ रिलीजियस ट्रस्ट्स के अध्यक्ष के तौर पर जाने जाते हैं. वे गृह मंत्रालय में ऑफीसर ऑन स्पेशल ड्यूटी थे और 1990 में अयोध्या मामले से आधिकारिक रूप से जुड़े थे, इसके बाद विवादित ढांचा ढहा दिया गया.

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सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें दरभंगा में केएसडी संस्कृति यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में नियुक्त कर दिया गया. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी.बी. पटनायक ने किताब की प्रस्तावना लिखी है, जिसमें उन्होंने कहा कि लेखक ने अयोध्या के इतिहास को नया आयाम दिया है और कई तथ्य बताए हैं, जो आम मान्यताओं के साथ-साथ कई इतिहासकारों के विचारों से विपरीत हैं.

किताब के अनुसार, मंदिर को 1528 ईसा पूर्व (बाबर के शासन काल) में नहीं बल्कि 1660 ईसा पूर्व में ढहाया गया, जब अयोध्या में फेदाई खान औरंगजेब का गवर्नर था.

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किताब के अनुसार, "यह कहना गलत है कि अयोध्या में राम मंदिर को ढहाने का आदेश बाबर ने दिया. वह अयोध्या कभी गया ही नहीं. इतिहासकारों के दावे- जिनमें कहा गया है कि अवध के तत्कालीन गवर्नर मीर बाकी को 1528 में बाबरी मस्जिद बनी हुई मिली- काल्पनिक हैं."

किताब में जोर देकर कहा गया कि विवादित स्थल पर शिलालेख झूठे हैं और इसलिए इन पर आधारित कई इतिहासकारों के निष्कर्ष गलत हैं. किताब में आगे कहा गया कि बाबर से शाहजहां तक के मुगल शासक सभी धर्मो के लिए समान रूप से उदार थे और उन्हें संरक्षण देते थे. किताब में आगे कहा गया, "बाबर से शाहजहां तक सभी मुगल शासक उदार थे और अयोध्या के बैरागियों को अवध के पहले चार नवाबों का संरक्षण प्राप्त था."

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किताब में कहा गया कि बाबर अयोध्या कभी गया ही नहीं या वहां राम जन्मभूमि मंदिर को ढहाने का आदेश नहीं दिया. किताब में भारत आकर यहां लगभग दो दशकों तक रहने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई यात्री फादर जोसेफ तीफेंथेलर के बयान का भी हवाला दिया. संस्कृत, अंग्रेजी और फ्रेंस विद्वानों के बयानों का हवाला देकर कुणा ने यह साबित करने की कोशिश की है कि अयोध्या में एक मंदिर मौजूद था.

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पटनायक ने प्रस्तावना में यह भी कहा कि अयोध्या का इतिहास लिखने के मौके पर पहली बार विदेशियों के यात्रा विवरणों और पुरातात्विक खुदाई का उल्लेख किया गया है. लेखक ने उम्मीद जताई है कि पहली बार 2016 में प्रकाशित हुई यह किताब अयोध्या मुद्दे पर फैली भ्रांतियों को खत्म करेगी और लोगों की सोच बदलेगी.