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Karnataka Crisis: राज्यपाल वजुभाई बर्खास्त कर सकते हैं सीएम कुमारस्वामी की सरकार

अब यह राज्यपाल के विवेक पर आ गया है कि वह सीधे-सीधे कुमारस्वामी की सरकार को बर्खास्त कर दें या उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए सोमवार तक वक्त दें.

Updated on: 20 Jul 2019, 10:51 AM

highlights

  • संविधान का अनुच्छेद 175 (2) के मुताबिक राज्यपाल के पास सदन को संदेश भेजने का अधिकार है.
  • राज्यपाल विश्वास मत हासिल करने में आनाकानी पर कुमारस्वामी सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं.
  • अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश भी कर सकते हैं राज्यपाल.

नई दिल्ली.:

कर्नाटक का सियासी संकट अब संवैधानिक शुचिता की दहलीज पर आ पहुंचा है. राज्य में चल रहे नाटक के तीन अहम किरदारों यानी मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार और राज्यपाल वजुभाई राजनीतिक शह-मात की इस बिसात पर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर आमने-सामने हैं. एक तरफ मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने विश्वास मत पर राज्यपाल के 'लव लेटर' को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात की है, तो स्पीकर रमेश कुमार ने राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के स्पष्ट निर्देश को सिरे से नजरअंदाज कर विधानसभा की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. अब यह राज्यपाल के विवेक पर आ गया है कि वह सीधे-सीधे कुमारस्वामी की सरकार को बर्खास्त कर दें या उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए सोमवार तक वक्त दें.

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राज्यपाल के पास निर्देश देने का अधिकार
राज्यपाल वजुभाई के फ्लोर टेस्ट के बाबत दिए गए निर्देश की बात करें तो संविधान का अनुच्छेद 175 (2) के मुताबिक राज्यपाल के पास सदन को संदेश भेजने का अधिकार है. इसी के तहत कर्नाटक के राज्यपाल ने पहले पत्र लिख दोपहर डेढ़ बजे और फिर दूसरी बार शाम 6 बजे तक सीएम से विश्वास मत हासिल करने को कहा था. ऐसे में अब जब कुमारस्वामी ने स्पीकर रमेश कुमार की मदद से सदन को सोमवार तक टाल दिया है, तो निर्णय का अधिकार राज्यपाल के पास है. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार वजुभाई बतौर राज्यपाल विश्वास मत हासिल करने में आनाकानी करने पर कुमारस्वामी सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं. यही नहीं, राज्यपाल के पास बहुमत साबित नहीं होने की स्थिति में सीएम कुमारस्वामी को पद से हटाकर दूसरे दल को सरकार बनाने का न्योता देने का भी अधिकार है.

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राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भी विकल्प
कर्नाटक के सियासी संकट में अब यही स्थिति आती दिख रही है, जहां राज्यपाल पर ही सारी उम्मीदें आकर टिक रही हैं. संविधान ने राज्यपाल को यह अधिकार दिया हुआ है कि राज्य की संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाने की स्थिति में वह अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश कर सकता है. हालांकि इसके लिए राज्यपाल को राजनीतिक हालातों को बारीकी से विश्लेषण करना होगा. इन संवैधानिक प्रावधानों के तहत साफ है कि राज्यपाल वजुभाई पर नजीर स्थापित करने का मौका है. हालांकि इतना तय है कि एक पक्ष उन्हें संविधान का रक्षक मानेगा, तो दूसरा संविधान के भक्षक के तौर पर.

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पैदा हो गया संवैधानिक संकट
गौरतलब है कि शुक्रवार का दिन कर्नाटक के लिए किसी बड़े सियासी नाटक की तरह ही रहा. राज्यपाल वजुभाई ने मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को पत्र लिखकर विश्वास मत प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिया था, लेकिन उसे नजरअंदाज करते हुए विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार ने सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. यही नहीं, सीएम कुमारस्वामी ने राज्यपाल के निर्देश को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह दी. इनके बीच कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने चेतावनी भरे स्वर में कहा है कि सोमवार एचडी कुमारस्वामी सरकार का आखिरी दिन होगा. यहां यह भी गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि बागी विधायकों को विधानसभा सत्र में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. इन्हीं बागी विधायकों की विधानसभा में नामौजूदगी से सारा सियासी संकट खड़ा हुआ हो, जो अब संवैधानिक संकट की शक्ल अख्तियार कर चुका है.