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राजस्थान: जोधपुर के दो अस्पतालों में 100 से अधिक नवजातों की मौत, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

राजस्थान के कोटा के अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर जारी घमासान के बीच एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पिछले साल दिसंबर में जोधपुर के दो अस्पतालों में 100 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो गई.

Updated on: 05 Jan 2020, 04:06 PM

जोधपुर:

राजस्थान के कोटा के अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर जारी घमासान के बीच एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पिछले साल दिसंबर में जोधपुर के दो अस्पतालों में 100 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर में उमैद और एमडीएम अस्पतालों में 146 बच्चों की मौत हुई, जिनमें से 102 शिशुओं की मौत नवजात गहन चिकित्सा इकाई में हुई.

कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के मद्देनजर एसएन मेडिकल कॉलेज द्वारा तैयार रिपोर्ट में जोधपुर में नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा दिया गया है. कोटा के सरकारी अस्पताल में 100 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हुई है. हालांकि, एसएन मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य एसएस राठौड़ ने कहा कि यह आंकड़ा शिशु मृत्युदर के अंतरराष्ट्रीय मानकों के दायरे में आता है.

राठौड़ ने बताया, ‘कुल 47,815 बच्चों को 2019 में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इनमें से 754 बच्चों की मौत हुई.’ दिसंबर में 4,689 बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिनमें से 3,002 बच्चों को एनआईसीयू और आईसीयू में भर्ती किया गया था और इनमें से 146 बच्चों की मौत हुई थी. उन्होंने बताया कि मरने वाले बच्चों में से अधिकतर वैसे बच्चे थे जिन्हें जिले के अन्य जगहों से गंभीर हालत में रेफर किया गया था.

राठौड़ ने बताया, ‘ये अस्पताल समूचे पश्चिम राजस्थान से आए मरीजों को देखते हैं और एम्स जैसे अस्पतालों से भी यहां बच्चों को रेफर किया जाता है.’ उन्होंने बताया कि अपनी बेहतर चिकित्सा एवं देखभाल व्यवस्था की वजह से अस्पताल की गहन देखभाल इकाई लगातार दो वर्ष समूचे राज्य में सबसे अच्छी मानी गई. राठौड़ ने अस्पताल में ‘दबाव’ से निपटने के लिए संसाधन की कमी से इनकार किया. हालांकि, ऐसी खबरें हैं कि कई वरिष्ठ डॉक्टर अपना निजी अस्पताल चलाते हैं. हाल में उन डॉक्टरों को नोटिस जारी किया गया. इनमें वो डॉक्टर भी शामिल हैं जो अपने आवास पर मेडिकल दुकानें चलाते हैं.

वहीं, उदयपुर के महाराणा भूपाल चिकित्सालय के दिन चलने वाले बाल चिकित्सालय में भी बच्चों की मौत का सिलसिला लगातार देखा जा रहा है. रिकॉर्ड की अगर बात की जाए तो रोजाना 4 से 5 बच्चों की मौतें औसतन इस अस्पताल में हो रही है. दिसंबर महीने की बात की जाए तो 142 नौनिहालों ने चिकित्सालय प्रबंधन की बदइंतजामी के चलते दम तोड़ दिया है.

दरअसल, उदयपुर संभाग के आदिवासी अंचल होने की वजह से आज भी इस इलाके की महिलाएं अशिक्षित हैं. यही नहीं अशिक्षा और जागरूकता की कमी होने के चलते इस क्षेत्र की महिलाएं घर पर ही अपने बच्चे को जन्म देती है, जिससे उनमें सक्रमण तेजी से फैलता है और वे अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ देते हैं. इसके अलावा एक दूसरी महत्वपूर्ण चीज ऑक्सीजन सप्लाई की भी है. बाल चिकित्सलाय के आईसीयू में ऑक्सीजन की सेंट्रलाइज्ड सप्लाई नहीं है, जिसे बच्चों की मौतों का मुख्य कारण माना जा रहा है. हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बच्चों की मौत के आंकड़े में कमी आई है.

एमबी चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. आरएल सुमन का कहना है कि अधिकतर बच्चे चिकित्सा के अभाव में बाल चिकित्सालय में रेफर होते हैं और जब तक उन्हें उचित चिकित्सा मुहैया कराई जाती है तब तक वह दम तोड़ देते हैं. बाल चिकित्सालय में हो रही इन मौतों के पीछे कोई गंभीर बीमारी नहीं बल्कि लोगों में जागरूकता की कमी सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सिस्टम का नहीं होना मुख्य है.