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Success Story: राजस्थान के पहले नेत्रहीन जज की कहानी किसी मिसाल से कम नहीं

ये कहानी है राजस्थान के पहले दृष्टिहीन न्यायधीश बह्मानंद शर्मा की. ब्रह्मानंद राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मोट्राल गांव से हैं

Updated on: 28 Aug 2019, 09:38 AM

नई दिल्ली:

'मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है.' ये लाइनें आज तक कई लोगों ने पढ़ी सुनी होंगी, लेकिन राजस्थान के एक शख्स ने इन्हें साबित भी कर दिया है. आज हम आपकों बताने जा रहे हैं एक ऐसे शख्स की कहानी जिन्होंने अपनी कमियों को अपने लक्ष्य के रास्ते में नहीं आने दिया और आखिरकार अपना सपना पूरा किया.

ये कहानी है राजस्थान के पहले दृष्टिहीन न्यायधीश बह्मानंद शर्मा की. ब्रह्मानंद राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मोट्राल गांव से हैं. फिलहाल वे अजमेर जिले के सरवर शहर में सिविल न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर हैं. बचपन से ही उनका सपना जज बनने का था जो हमेशा उनकी आंखों में दिखता रहता था. इसके लिए वो मेहनत भी कर रहे थे. लेकिन उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब 22 साल की उम्र में ग्लेकोमा बीमारी के चलते उनकी आंखो की रौशनी चली गई.

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इसके बाद उनके सामने परिवार की जिम्मेदारी भी थी. इसलिए आर्थिक तंगी को देखते हुए उन्हें जो नौकरी मिली, वो उन्होंने कर ली. उन्होंने 1996 में भीलवाड़ा में सार्वजनिक निर्माण विभाग के दफ्तर में एलडीसी के पद के नौकरी की. लेकिन कहते हैं न कि अगर हौसले बुलंद हो तो इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता. बस ऐसा ही कुछ ब्रह्मानंद के साथ था जिन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लग गए. एलडीसी के पद पर नौकरी करते वक्त ही उन्होंने राजस्थान जुडिशल सर्विस (RJS) की परीक्षा की तैयारी शुरू की. 2008 में वह आरजेएस की परीक्षा में पास नहीं हो पाए. इसके बाद उन्होंने कोचिंग सेंटर जाकर तैयारी करने का फैसला किया, लेकिन दृष्टिहीन होने के चलते कोचिंग सेंटर में उन्हें भर्ती नहीं किया गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पत्नी और भतीजे की मदद से तैयारी में लग गए.

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इस दौरान उनकी पत्नी और भतीजे किताबों में लिखी बातों तो रिकॉर्ड करते और ब्रह्मानंद रात में उन्हें सुनकर याद करते. इस तरह मेहनत कर 2013 में उन्होंने आरजेएस परीक्षा में सफलता हासिल की. उन्हें इस परीक्षा में 83वा रैंक मिला. लेकिन उनके सामने एक और चुनौती तब आई जब दृष्टिहीन होने की वजह से उनकी नियुक्ति फंस गई. ममाला हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट की सिफारिश पर आखिरकार ब्रह्मानंद को सफलता मिली और वो राजस्थान के पहले नेत्रहीन जज बन गए.

बताया जाता है कि ब्रह्मानंद केवल वकीलों की आवाज सुनकर ही उन्हें पहचान लेते हैं. दोनों पक्षों की बातों को सुनने के लिए वो ई-स्पीक डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं. ई-स्पीक ऐक ऐसा डिवाइस है जो नोट्स को पढ़कर सुनाता है.