logo-image

Dussehra 2019: यहां नहीं किया जाता रावण दहन (Ravan Dehan) बल्कि लोग उसके मरने पर मनाते हैं शोक

आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में एक ऐसा जगह भी हैं जहां आज के दिन रावण दहन का शोक मनाया जाता है.

Updated on: 08 Oct 2019, 02:16 PM

highlights

  • आज देश में मनाया जा रहा है दशहरा. 
  • दशहरा पर लोग रावण को असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक में मनाया जाता है. 
  • लेकिन देश में एक ऐसा जगह भी है जहां रावण के मरने पर शोक मनाया जाता है. 

नई दिल्ली:

Dussehra 2019, Ravan Dehan: आज देश में विजयादशमी की धूम है. लोग आज पूरे देश में असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा कर पूरे देश में मनाया जाता है. आज असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में रावण का दहन भी किया जाता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में एक ऐसा जगह भी हैं जहां आज के दिन रावण दहन का शोक मनाया जाता है.

जी हां राजस्थान के जोधपुर में ऐसी ही परंपरा है जहां लोग रावण दहन नहीं करते बल्कि उसके मरने पर मातम या शोक तक मनाते हैं. ये लोग स्वयं को रावण का वंशज मानते है. ऐसी मान्यता है कि मंदोदरी के साथ रावण का विवाह जोधपुर में हुआ था. उस समय बारात में आए ये लोग यहीं पर बस गए. इन लोगों ने रावण का मंदिर बनवा रखा है और नियमित रूप से रावण की पूजा करते है.

यह भी पढ़ें: Dussehra Special: आज के दिन को क्यों कहा जाता है दशहरा या विजयदशमी, जानें

सहर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर स्थित है. गोधा गौत्र के ब्राह्मणों ने यह मंदिर बनवा रखा है. इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित है. दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है. पुजारी कमलेश कुमार दवे बताया कि पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए. पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे मंदिर का निर्माण कराया गया हम लोग रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को लेने का प्रयास करते है. दवे ने बताया कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे.

यह भी पढ़ें: Dussehra 2019: 3 पत्नी वाले रावण के थे 7 पुत्र, जानें उसके पूरे परिवार के बारे में

ऐसे में कई संगीतज्ञ व वेद का पढाई करने वाले छात्रा रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते है. दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है. इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते है. शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है.

यह भी पढ़ें: पेड़ कटने से नाराज पक्षी 2 दिन तक वहीं आंसू बहाते रहे, 100 से ज्यादा घोंसले थे, केस दर्ज

इस दिन को विजय दशमी के नाम से भी जाना जाता है जो जो 9 दिनों के नवरात्र के बाद आता है. दरअसल धर्मग्रंथों की मानें तो अश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी को दो अलग-अलग घटनाओं के लिए भी मनाया जाता है पहला महिषासुर के वध के लिए और दूसरा रावण पर राम की विजय के लिए.बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व के दिन जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाते हैं.