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कर्नाटक संकट: सुप्रीम कोर्ट का आदेश- स्पीकर विधायकों की अयोग्यता और इस्तीफे पर अभी नहीं लेंगे फैसला

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा कि इस मामले में कई संवैधानिक मसले जुड़े हैं और इसकी विस्तार से सुनवाई की जरूरत है

Updated on: 12 Jul 2019, 02:50 PM

नई दिल्ली:

कर्नाटक में बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है. यानि, स्पीकर न तो बागी 10 विधायकों के इस्तीफ़े पर कोई फैसला लेंगे और न ही कांग्रेस द्वारा इन विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग पर कोई निर्णय लिया जाएगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा कि इस मामले में कई संवैधानिक मसले जुड़े हैं और इसकी विस्तार से सुनवाई की जरूरत है. कोर्ट इस मामले में 16 जुलाई को फिर सुनवाई करेगा.

विधायकों की ओर से मुकुल रोहतगी की दलील

इससे पहले विधायकों की तरफ से पेश हुए मुकुल रोहतगी ने आरोप लगाया कि स्पीकर जान बूझ कर कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं. कोर्ट के आदेश के बावजूद स्पीकर ने इस्तीफों पर कोई फैसला नहीं लिया. हकीकत तो ये है कि इस्तीफे पर फैसला लेने का, विधानसभा में स्पीकर के अधिकार से कोई लेना देना नहीं है. उनका मकसद इस्तीफे को पेंडिंग रखकर विधायकों को अयोग्य करार देने का है ताकि ऐसी सूरत में इस्तीफे निष्प्रभावी हो जाएं. रोहतगी ने कहा, 'अगर स्पीकर इस्तीफे पर फैसला नहीं लेते तो सीधे-सीधे अदालत की अवमानना है.

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विधानसभा स्पीकर की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी की दलील

विधानसभा स्पीकर के आर रमेश कुमार की ओर से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए।सिंघवी ने कहा कि विधायकों के इस्तीफे देने का मकसद अयोग्य करार दिए जाने की कार्रवाई से बचने का है।1974 में संविधान संसोधन के जरिये ये साफ कर दिया गया था कि इस्तीफे यू ही स्वीकार नहीं किये जा सकते। कोई फैसला लेने से पहले ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि वो सही है, बिना दबाव के अपनी इच्छा से दिए गए है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सिंघवी से पूछा कि क्या आप ये कहना चाहते है कि ये संविधानिक बाध्यता है कि इस्तीफे पर कोई फैसला लेने से पहले , अयोग्य करार दिए जाने वाली मांग पर फैसला लेना जरूरी है.सिंघवी ने इस पर सहमति जताई. सिंघवी ने कहा कि दो विधायकों ने तब इस्तीफा दिया जब अयोग्य करार दिए जाने की प्रकिया शुरू हो गई.

आठ विधायकों ने इसे शुरू होने से पहले इस्तीफे सौपें पर स्पीकर के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं हुए.सिंघवी ने कहा कि अगर कल को कोई दूसरी सरकार बनती है, तो इन विधायकों को मंत्री पद के लिए आमंत्रित किया जाएगा. उन्होंने कोर्ट के पुराने फैसके का हवाला दिया जिसके मुताबिक स्पीकर को इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए एक समयसीमा में नहीं बांधा जा सकता. चीफ जस्टिस ने इस पर सिंघवी से सवाल किया कि क्या स्पीकर इस कोर्ट की ऑथोरिटी को चुनौती दे रहे है. क्या वो ये कहना चाहते है कि कोर्ट को इस मामले से दूर रहना चाहिए सिंघवीने जवाब देते हुए कहा, ऐसा नहीं है उनका आशय ऐसा नहीं है।दरअसल मेरे (स्पीकर) के अधिकारों की रक्षा करना भी कोर्ट का दायित्व है.

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कर्नाटक CM की ओर से राजीव धवन की दलील

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन पेश हुए. धवन ने दलील दी कि बागी विधायकों की ये याचिका आर्टिकल 32 के तहत सुनी नहीं जा सकती. राजीव धवन ने सवाल उठाया कि इस मामले में आखिर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के दखल की मांग विधायकों की ओर से की गई है. उनका कहना है कि स्पीकर बदनीयती से काम कर रहे है सरकार बहुमत खो चुकी है. घोटालो में फंसी है. क्या इन आधार पर आर्टिकल 32 के तहत कोर्ट के दखल का औचित्य बनता है. राजीव धवन ने कहा कि ये स्पीकर का दायित्व है कि वो ये सुनिश्चित करे कि वो इस्तीफे पर कोई फैसला लेने से पहले ये सुनिश्चित करे कि ये इस्तीफे सही है.  राजीव धवन ने कहा इस याचिका के जरिये कोर्ट को बेवजह राजनीति में घसीटा गया है. स्पीकर ने खुद साफ किया है कि वो विधायको के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य करार दिए जाने की मांग पर जल्द से जल्द फैसला लेंगे. लिहाज़ा इसमे कोर्ट के आदेश की कोई ज़रूरत नहीं है.